बा छोरी भोळी ही। मा-बाप री लाडली। दो छोरा अर अेक छोरी, इण खातर खूब लाड मांय पळी। लाड रै कारण ई भोळी रैयगी। पढ़ नीं सकी। रंग-रूप ई साधारण हा पण घर री लाडेसर। बा ई हरेक री बात मानती। मा-बाप अर भायां सूं हियै-तणो लगाव हो। घरआळा ई उणरी थोड़ी’क पीड़ ई सैन नीं करता। बीं रो पूरो-पूरो ध्यान राखता। उणरी हर डिमांड नै पूरी करता।
पूरै घर नै बीं रै ब्यांव रो कोड हो। इण खातर अठारै साल तक पूगतां ई ब्यांव री त्यारी करणी सरू कर दी। घरआळा छोरो जोवण मांय लागग्या। केई लोगां सूं पूछताछ करी। छोरो बतावण री कैयी। परिवार आळां नै ई इण काम मांय लगाया। अेक दिन भाई अर मा-बाप बैठा हा। बै आपरी लाडली सुनीता नै हेलो कर्यो। बा दौड़ती-दौड़ती आयगी।
“बेटा, कांई करती ही।”
“टीवी देखती ही।”
“दिनूगै-दिनूगै ई..!”
“हां आस्था चैनल पर भगवान आवता हा। सुणती ही।”
“अजै तांई भजन ई सुणै..?”
“राम रै नांव मांय ई सार है, मा। सुणना ई चाईजै। थे काम बतावो, कियां बुलायी हो..?”
“काम हुवै जणै ई बुलाय सकां..?”
“फेरूं ई।”
“बस इयां ई पूछ लियो।”
“पण हेलो कियां कर्यो..?”
“सगळा जणा बैठा हा। थारै भाई कैयो सुनीता री कमी है तो म्हैं हेलो मार लियो।”
“भाईसा तो म्हारो भ्होत ध्यान राखै। बै नीं तो कुण याद करसी।”
“अरे थूं म्हारी लाडेसर बैन है। थनैं याद करण री कांई जरूरत, तूं तो हर टैम याद रैवै।”
“म्हे तो सगळा ब्यांव री बात करता हा।”
“भाईसा रै ब्यांव री। जल्दी करो नीं। म्हनैं बौत कोड है इणां रै ब्यांव मांय सामल हुवण रो।”
“अरे नीं बेटा, म्हैं तो थारै ब्यांव री बात करता।”
“म्हारै ब्यांव री..! अबार ई...! पैलां तो भाईसा रो ब्यांव हुसी।”
“बेटी धन मोटो हुवै, इण खातर पैलां ब्यांव बीं रो ई करीजै।”
सुनीता कीं नीं बोली। नसड़ी नीचै घाल’र बैठगी। उणरी समझ मांय ई नीं आयो कै कांई जबाब दूं। बालपणो तो बीं रो गयो ई नीं हो। ब्यांव हुवैला, आ तो जाणती ही। मन मांय ब्यांव री बात सूं लाडू तो फूट्या ई हा। पण मन मांयली बात बारै नीं आवण दी।
“बोल लाडेसर, ब्यांव करां तो थनैं कोई अैतराज तो नीं है।”
“हां भई, अैतराज हुवै तो पैलां ई बताय दियै..!”
“जगहंसाई सूं तो बच जावांला।”
“इणरै अलावा थारी बात ई म्हां लोगां खातर सवाई है। उण खातर म्हैं कीं ई कर सका हां।”
“म्हारै खातर थां सू बेसी कीं नीं है।”
“मून राख्यां पार ई नीं पड़ैली। बोल तो सरी..!”
सुनीता सोच मांय पड़गी। कांई कैवै। ना कैवै तो मा-बाप नै चोखो नीं लागैला अर हां कैवैला तो आ लागसी कै ब्यांव री उंतावळ है। बा इण दोनूं सूं बचणो चांवती ही। भाई अर मा-बाप बीं रो मूंढो खुलण री उडीक मांय हा। बा खड़ी हुयगी।
“म्हैं म्हारै मा-बाप अर भायां री बात नीं तो कदैई टाळी है अर नीं कदैई टाळूंला। म्हारो भलो हुसी बा ई सोचोला थे लोग। इण खातर म्हनैं कीं नीं कैवणो। जिको थांनै चोखो लागै, बो करो। म्हैं तो थांरी बात नीं जावण देऊंला।”
आ कैय’र सुनीता तो दौड़गी आपरै कमरै पासी। मा-बाप राजी हा अर भायां रा तो चैरा ई खिलग्या। बैन री आ बात बांरो खून बधाय दियो।
“भगवान सबनै सुनीता जैड़ी बैन देवै।”
“बेटी भी तो इसी ई देवै।” – सुनीता रै मांय जावतां ई मा बोली।
“म्हारी लाडेसर नैं जे थे आ बात नीं पूछता नीं तो ई चालती। म्हैं जाणूं, बा ना तो कैवती ई कोनी।”
“मा रैवण दै, म्हनैं ई म्हारी बैन माथै भरोसो हो। औ तो बीं रो मन राखण खातर बुलाय’र बात करी। जवाब तो म्हनैं ई ठाह हो।”
पण नूंवो जमानो है बेटा, इण खातर अेकर कान मांय सूं ब्यांव री बात काढ लेवणी ई ठीक रैवै।”
“आज री छोर्यां दांई म्हारी सुनीता नीं तो मोबाइल चलावै अर नीं घणी घर सूं बारै निकळै। टाळवीं है सबसूं आ तो।”
“थारी बात म्हैं माना हां, मा।”
“अबै इणरै सगपण रै आयोड़ै छोरां माथै तो बात करां। फैसलो लेवणो है अर ब्यांव जल्दी सूं जल्दी तय करणो है।”
केई फोटू आयोड़ा हा, जिका टेबल माथै राख्या। बारणै रै लारै लुक्योड़ी सुनीता सब देखती ही अर घरआळां री बातां ई सुणै ही। पण घरआळां नै आ बात ठाह नीं ही। फोटूवां राखीज्यां सुनीता रै मन मांय बांनै देखण री हूंस उठी पण बारै नीं जाय सकी। ओलै-छानै ई सब देखती रैयी।
“औ सोहनजी रो बेटो है। बाप मास्टर है अर ओ पढै।”
“पापा इणरै बारै में कीं आछी खबर नीं है। रोळा सागै रैवै, म्हैं ठाह करी ही।”
“तो जावण दो। दूजा ई घणाई छोरा है।”
“गिरधारीजी रै बेटै सारू कांई विचार है थां लोगां रा।”
“छोरो तो ठीक है। आपरी दुकान सूं कमावै अर धंधो ई ठीक चालै। अैब ई कोनी। सुणी तो आई है।”
“अरे नीं, म्हैं गिरधारी जी री लुगाई नै जाणूं। लड़ाकू है। आपरी सासू नै ई घणा दुख दिया। म्हारी सुनीता नै तो तंग कर देसी।”
इण तरै सूं चार जणां माथै विचार हुयो पण अेक ई दाय नीं आयो। मा-बाप अर छोरै रो ब्यौरो भेळो कर्योड़ो हो, इण खातर कीं-न-कीं बात नीं जचती।
अंत मांय रमेस नांव रै छोरै पर कीं मन मान्योष भाई पूछ्यो इणरी कांई खासियत है, तो बाप बताई पूरी बात।
“औ गरीब है।”
“कियां..?”
“अेक छोटी-सी दुकान है। छोरो रमेश कैयै मांय है। दुकान पर बाप मोहनदास सागै ई बैठे। दाळ-रोटी आराम सूं खावै।
“पण घणो सुख कियां देसी। साधन तो है ई कोनी। सुनीता नै तकलीफ हुसी नीं।”
“इणरै गरीब होवण री बात ई मोटी है।”
“कियां ठीक रैवेला।”
“आपां सब साधन देस्यां। आपां रै पईसां रै जोर सूं बै दबाव मांय रैसी। घर मांय ई सुनीता री चलसी। पईसै रो घणो जोर हुवै। घरआळां री इणरै सामनै बोलण री हिम्मत नीं हुवैला।”
“हां, राज करसी सुनीता।”
“बात तो म्हारै ई जचगी।”
सुनीता सुणली ही सब बातां। उणनै ई पापा री बात ठीक लागी। अबै रमेश रो फोटू देखण री मन मांय हूंस उठी। कियां जावै बारै। छेकड़ तरकीब सोचली।
“मा-मा..!”
कैवती थकी सुनीता मा कनै आई। उणरै हाथ मांय ई फोटू हो।
“बोल तो, कांई हुयो..?”
“भूख लागगी।”
बात तो भूख री कैवती ही पण आंख्यां मा रै हाथ आळै फोटू माथै ही। हीरो टाइप छोरै रो फोटू हो। देखतां ई सुनीता नै ई पसंद आयग्यो। सुपना मांय खोवण लागगी।
“चाल, रोटी खवाऊं।”
“म्हैं चालूं, थूं मांय आय’र रोटी घाल दै।”
उणरौ काम हुयग्यो हो। छोरै रो फोटू देख लियो। जच ई गयो हो। उणनै किसी भूख लागी ही।
मा-बाप अर भाई रमेश रो सलेक्शन कर लियो।
“म्हैं काल ही जासूं अर मोहनजी सूं बात कर सूं।”
“जे हां भरै तो मिलणी ई हाथूंहाथ दै दिया। छोरै नै सागै लेय’र जाया।”
“ठीक है भागवान, बेटां पर म्हारो ई हक है, तू घणी उंतावळ ना कर।”
दूजै दिन दोनूं मोहनजी रै घरै गया। सगपण री बात राखी। मोहनजी नै घणो अचंभो हुयो।
“म्हारा बडा भाग कै थे चलाय’र लिछमी देवण आया। म्हारा तो भाग खुलग्या।”
“आप हामळ भर’र तो म्हारो मान बधाय दियो।”
“आपरी छोरी इण घर मांय राज करसी। म्हैं थांनै भरोसो दिराऊं।”
“म्हारै कनै तो कन्या-कुं-कुं है। आप बडा हो, म्हांनै परोट लिया।”
“औ तो थांरो बडपण है। छोटा तो म्हैं हां। थांरो समाज मांय लूंठो नांव है। थांसूं संबंध बणियां तो म्हारो मान बधसी।”
“लो सा। सगुन खातर मिलणी लेयलो।”
“मिनखां री बात तो मूंढै सूं ई तय हुवै। जुबान ई मिनख री पिछाण हुवै।”
“बेटी रो बाप हूं। मिलणी लियां म्हारै जी नै थावस हुय जासी।”
“जो हुकुम आपरो।”
रमेश रै मा-बाप नै मिलणी देय’र ब्यांव तय कर लियो।
“अबै हाथ जोड़’र अेक अरदास ई है।”
“हुकुम करो थे।”
“ब्यांव री तारीख ई तय हुय जावै। बेटी रा हाथ पीळा करण री बाप री उंतावळ थे समझ सको हो।”
“म्हारै ई अठै खटाव कठै है, काल ई तारीख तय कर बता देस्यूं। नैड़ी तारीख ई राखसां।”
“पगै लागणा सा।”
सगाई पक्की कर’र बाप-बेटा घरै आयग्या। सुनीता री मा बौत राजी ही। उणी टैम सूं ब्यांव री त्यारी मांय लागगी। परिवार अर समाज रै सगळा घरां मांय सगाई री बात पूगती करदी। न्यारा-न्यारा विचार हा, पण सुनीता रा घरआळा राजी हा।
पांच महीना बाद सुनीता रो ब्यांव हुयग्यो। गाजै-बाजै सूं ब्यांव कर्यो। खूब खरचो कर्यो। इयां लाग्यो, जाणै कोई रईस री बेटी रो ब्यांव हुयौ। समाज मांय इण तरै रो ब्यांव पैला किणी नीं कर्यो हो। छोरै नै स्कूटर दियो। गैणां-गांठा ई खूब दिया। इणरै अलावा अेक मकान, अेक दुकान रा कागज ई रमेश अर सुनीता रै नांव रा हा। सुनीता रै सासरै आळा घणाई राजी हा। बराती ई राजी हा। बांनै चांदी री अेक-अेक गिलास दी। मा-बाप अर भायां दिल खोल’र खरचो कर्यो।
सुनीता री विदाई हुई जणै खूब रोया सब जणा। हाथ जोड़’र सुनीता अर बीं रै सासरै आळां नै भोळावण दी। सुनीता सासरै व्हीर हुयगी।
सासरै मांय ई बीं रा घणाई लाड-कोड हुया। पईसै आळां री बेटी ही अर खूब दायजो लाई ही। माथै चढायां राखता सासरै आळा। पलंग सूं नीचै ई नीं उतरण देंवता। बठैई खाणो, चाय सब देंवता। सासू ई बरोबर पूछती रैवती, बीनणी कांई इंच्छा है। तीन महीनां तांई इणी तरह रो माहौल रैयो। बीच-बीच मांय भाई ई आपरी बैन रो हाल पूछण आय जावता। आवता तो खाली हाथ नीं आवता। दो बार मा-बाप ई आया। बार-बार आपरी बेटी री भोळावण देंवता रैवता। सुनीता सूं अेकलै मांय ई पूछ्यो। बा ई आ इज बताई कै सब ठीक है। दो बार तो पीहरै ई जाय आई बा। भाई राजी हा, बांरी बैन चोखै घर मांय गई ही। रमेश ई छोरो ठीक हो। टैमसर दुकान जावणो अर सुनीता रो पूरो ध्यान राखणो। अेक-दो बार सासरै सूं मिल्योड़ै स्कूटर माथै घुमावण नै ई लेयग्यो।
मोहल्लै आळा ई रोज चौकी पर बैठता तो ब्यांव नै याद करता। गजब री आव भगत, हरेक नै चांदी री गिलास, इसो ब्यांव नीं देख्यो। आसै-पासै रै घरआळा ई सुनीता सूं बंतळ करण सारू आवता। हंसी-मजाक चलता। सुनीता रो सुपनो साच हुयो हो, इण खातर उणनै तो घणो हरख हो। सासू पैलां तो लड़ाईखोर मानीजती पण आपरी बहू आगै वैवार आछो हो। आ गळी आळां खातर इचरज री बात ही। बेटो ई मा-बाप रो आज्ञाकारी हो। सब ठीक-ठाक ई दीखतो। सुनीता रा मा-बाप ई राजी हा।
उण दिन जद सासू कमरै मांय सुनीता सूं मिलण आई तो वा सूती ही। आवाज लगा’र सुनीता नै उठाई।
“पगै लागू, सासू मा..!”
“बै तो लागती रैयै। आखी उमर लागणा इज है।”
“म्हैं आप सूं आज अेक अरदास करणी चांवती।”
“करदै। सुणन खातर त्यार हूं।”
आज सुनीता नै आपरी सासू री बातां अटपटी लागी। बोली मांय ई अजीब ई करड़ाई ही। पैलां तो नीं ही। वैवार मांय ई साव रूखोपण हो। सुनीता नै सगळी बातां समझ आय रैयी ही।
“घणा दिन हुयग्या बैठ्यां बैठ्यां। अबै म्हनैं घर रा काम करावण री हामळ भरो। काम करसूं तो मन लाग्योड़ो रैसी।
“ठीक ही तैवड़ी है थें। घणा दिन हुयग्या आराम फरमावतै।”
“आज इयां-कियां बोलो हो सासू मा।”
“घणी हुंसियारी नईं। गाळ कोनी काढी है थनैं।”
“रीस ई लागी आज थांरी बातां मांय।”
“ठीक लागी थनैं। लुगाई रो धरम काम करणो है। तूं तो तीन महीनां सूं पड़ी है बिस्तर माथै। आखिर कद तांई सैन करूं।”
“म्हनैं तो थे कैवता जद ई काम सरू कर देवती। थे कदैई कैयो ई कोनी।”
“थारै कनै माथो कोनी..? इणमें कैवण री कांई बात है, लुगाई सासरै मांय काम करती ई चोखी लागै। बिस्तरां में पड़ी रैवै बा बीमारी हुवै, बीनणी नीं।”
“काम सूं म्हनैं डर थोड़ी लागै।”
“घणी भचर-भचर ना कर अर कान खोल’र अेक बात और सुणलै।”
“कांई..?”
“घर री बात घर मांय रैवै। अठीनै-बठीनै करण सूं घर मांय भांगो पड़ै अर फोड़ा थनैं इज घणा भुगतणा पड़ैला।”
“म्हैं समझी कोनी।”
“डोफी है कांई। साफ सुणलै, अठै री बात जे पीहर आळां नै कैयी तो म्हासूं भूंडो कोई नीं। रमेश ई म्हारै ही सागै रैवैला। थनैं पूरी उमर अठै काढणी है। इण खातर अठै री कोई बात थारै घरआळां नै मत कैयै।”
“म्हारो घर तो औ है, बो नीं।”
“हां, आ बात याद राखजै। नीं तो तकलीफ पावैला।”
“हुकुम, सासू मा।”
“हुकुम कैवणो छोड अर काम मांय लाग। घर री सफाई, रसोई सब थारै जिम्मै आज सूं। जे कीं चूक करी नीं तो लागैला दो लाफा..!”
सुनीता रो तो मूंढो खुलो ई रैयग्यो। इण तरै री बात तो सोची नीं ही। औ कांई हुयग्यो। उणरी आंख्या सूं झर-झर आंसू निकळग्या। टैम यूं बदळै, आ तो गजब री बात हुयगी। सासू इण तरै सूं रूप बदळसी, आ तो तैवड़ी नीं ही। मन मांय रमेश सूं बात करण री सोची। कमरै सूं बारै निकळ घर रै काम मांय लागगी।
रात नै कमरै मांय रमेश आयो। सुनीता बिस्तर माथै ई बैठी ही। आज रमेश रा पग लड़खड़ावता हा। आ बात ई नूंवी ही। मन मांय केई तरै रा विचार आया पण बोल नीं सकी बा। उठ’र उणरै कनै गई। मूंढै सूं दारू री बदबू आवती। आ देख’र सुनीता रो मूंढो खुल्लो ई रैयग्यो।
“थे दारू पीवी है।”
“हां... आ कांई बडी बात है। तीन महीनां सूं पीवी ई कोनी। इतरा दिन री कसर आज अेकै सागै काढी है। थूं घणी चिंता ना कर। पैलां ई पींवतो हो।”
“ब्यांव सूं पैलां तो थे आ बात नीं बताई।”
“अरे डफोळ..! अै बातां ब्यांव सूं पैली बतावतो तो सगाई थोड़ी होवती। ब्यांव री तो बात ई नीं चलती।”
“औ तो धोखो हुयो।”
“नईं, कोई धोखो कोनी। गलत सोचै है थूं। म्हनैं था सूं प्रेम है, आ साची बात है, बाकी तो मिनख री आदतां है, चालती रैवै।”
“म्हनै थां सूं अेक बात करणी है।”
“दिनुगै कर लियै।”
“नीं, अबार ही करणी है।”
“जणै करलै। म्हैं सुणण खातर त्यार हूं।”
“थांरी मां आज म्हनैं बौत आवळ-कावळ बोली। म्हैं इण तरै री बातां कदैई नीं सुणी। म्हारै तो आंख्यां सूं आंसू निकळग्या।”
“देख बा म्हारी मा है, उणनै म्हैं कीं नीं कैय सकूं। पण इण बात री गारंटी है कै म्हैं कदैई थनैं कीं नीं कैवूं। हाथ नीं उठाऊ। ध्यान ई राखसूं। पण मा नै थारै कानी सूं म्हैं कीं जबाब दूं, आ नीं हो सकै।”
“म्हारो हुसी कांई?”
“थनै मा नै सैन करणी पड़सी अर म्हनैं थारो ध्यान राखणो है। इयां ई चालसी। कीं थूं ई सुणण रो धीजो राख। थोड़ा दिन मांय थारो ई अभ्यास पड़ जासी। मा री बात्यां सुणण रो।”
“औ तो इलाज नीं हुयो।”
“करणो तो ओ इज पड़सी। अर अेक बात ध्यान राखजै, जे इण घर री बातां थूं थारै घरआळां नै कैयी तो म्हैं ई थारै सागै नीं रैवूंला।”
“मतलब, बस सैन करूं..?”
“करणो ई पड़सी। तद ई म्हैं थारै सागै हूं। नीं तो म्हनैं ई मा सागै रळणो पड़सी।” थारी अर थारै घरआळां री जगहंसाई हुवैला। देखलै, इज्जत राखणी थारै हाथ मांय है।
सुनीता तो आं बातां नै सुण’र की बोलण जोगी ई नीं रैई। अठीनै कुओ अर बठीनै खाई ही। सब सहणो अर चुप रहणो। सार इण मांय ई लाग्यो। नीं तो रमेश ई सागो छोड देवैला। सगळी बातां सुनीता समझगी। उणनै पछतावो तो हुयो पण अबै कीं उपचार नीं हो। सासू नै सैन करणो अर मूंढै मांय मूंग घाल्यां राखणा।
दिनोंदिन सुनीता री हालत माड़ी होवती गई। रमेश दिखण मांय उणरै सागै हो पण मा रो ई विरोध नीं हो। सुनीता दो पाटां बिचाळै पिसीजै ही। पैलो टाबर हुयो पण उणसूं बस दस दिन पैली पीहर जावण दियो। काम मांय लगायोड़ी राखी। सुनीता बोलणो ई बंद कर दियो हो।
अेक बरस बाद दूजो अर तीन बरस बाद तीजो टाबर हुयो। दो छोरा अर अेक छोरी। तीसरो टाबर हुयो जणै डाक्टर रमेश नै समझायो कै अबै टाबर नीं हुवणा चाईजै। जे हुया तो मा री जान रो खतरो है। शरीर मांय खून कोनी अर बौत कमजोरी है। सुनीता नै ई समझायी पण बा कीं पडूतर नीं दियो। सासू नै कैयो तो बा सुणी री अणसुणी कर दी।
तीन टाबरां नै संभाळणा सुनीता खातर दो’रा हा। सासू कीं मदद नीं करती। बोल ई सुणावती। मैंणा ई देवणा सरू कर दिया हा। तीन टाबरां नै ई सांभ कोनी सकै। आ बात रोज कैवती। दो घरां मांय साफ-सफाई रै काम माथै ई सुनीता नै भेजणी सरू करदी। अेक टाबर सागै लेय’र काम करण नै जावती। बुरी गत हुयगी ही सुनीता री। रमेश कीं नीं बोलतो।
सुनीता रै मा-बाप अर भायां नै समझ आवण लागग्यो पण जद बेटी नै पूछता तो बा सब ठीक हुवण री बात कैवती। उणनै डर लागतो सासू रो। अबै तो बीं रो पीहर जावणो ई बंद हुयग्यो। लोगां रै घरां मांय काम करती अर चुप रैवती। डाक्टर री मनाही रै बाद ई बीं रै चौथै टाबर री त्यारी ही। हालत बिगड़गी। अस्पताळ मांय भरती करावणी पड़ी। खून चढाणो पड़ियो। चौथो टाबर ई छोरो हुयो। डाक्टर री रीस सिरै चढ्योड़ी ही। फेरूं रमेश अर बीं री मां नै समझाया।
गाडी इयां ई चालती रैयी। ना रमेश बदळ्यो अर ना बीं री मा। बदळी तो फगत सुनीता ही। सब इंच्छावां खतम, बस काम ई काम। टाबरां नै संभाळतां-संभाळतां ई बगत बीत जावतो। जीवण कठै सूं कठै आयग्यो, बस ओ इज सोचती रैयी।
उण दिन रामेश रात नै दस बज्यां पछै घरै आयो। धाप’र दारू पीयोड़ी ही। मा हाथ पकड़’र लाई अर कमरै मांय छोडगी। जावती-जावती खारी निजरां सूं सुनीता नै देखी। उण सूं सैन नीं हुयौ।
“सासू मा, इयां किता’क दिन चालसी..?”
“कांई कैयो..!”
“औ रोज रो दारू पीवणो ठीक है कांई..?”
“औ सवाल करण आळी थूं कुण।”
“म्हैं आंरी लुगाई हूं, पूछ सकूं हूं।”
“लुगाई रो काम सुणणो है, पूछणो कोनी।”
“आ गलत बात है या नीं? म्हनैं तो थे हर बात माथै बरजो अर आंनै दारू पीय’र आवै तो ई कीं नीं कैवो।”
आ सुणतां ई रमेश तांगीयो खावतो उठ्यो अर सुनीता रै अेक थप्पड़ मार न्हाखी। पैली बार किणी हाथ उठायो हो सुनीता माथै। बा रोवण लागगी।
“घणा नाटक मत कर पाड़ौसी सुणसी तो थारी अर घर री इज्जत जासी। कांई हुयग्यो जे मिनख हाथ उठाय लियो तो। मिनख नै इधकार है इण रो। लुगाई नै सैन करणो ई पड़ै। घणी हुंसीयारी ना दिखा अर मूंढो बंद कर राख थारो! जगहंसाई करायां नुकसान थारो ई है।”
“मूंढो बंद नीं राख्यो तो पड़ैली और कस’र।”
सुनीता रो रोवणो आ बात सुण’र थमग्यो। करै तो करै कांई! भायां अर मा-बाप नै बतायां अणूतो बतंगड़ हुसी अर बां नै घणो दुख पुगसी। औ देख’र टाबर ई डरग्या अर चुपचाप आंख्यां बंद करली।
“थारा माईत म्हांनै दियो कांई है। सब चीजां मांय थारो नांव घाल राख्यो है। जाणै म्हारै छोरै माथै तो कीं भरोसो इज नीं हो अर तूं चार टाबर जिण दिया लोयां दांई। टाबरा माथै खरच हुवै बो ठाह है थनैं? अणुती जुबान और लड़ावै। चोरी अर सीना जोरी।”
सुनीता कीं जवाब नीं दियो। कमरै सूं बारै गई परी। रमेश उणरै कनै आय’र बैठग्यो।
“देख म्हैं थनैं पैलां ई कैयो हो कै म्हैं मा नै कीं नीं कैय सकूं। आज तो थूं म्हारै सांमी ई बोलण लागी।”
“थे भी तो म्हारै ऊपर हाथ उठायो।”
“थूं सांमी बोली ही नीं, इण खातर।”
“आखिर कद तांई मूंढै मांय मूंग घाल्योड़ा राखूं, कीं तो बांनै ई सोचणो चाईजै।”
“मा रो मूंढो बंद राखण री तरकीब बताय सकूं हूं म्हैं।”
“म्हनैं तो कोई तरकीब नीं लागै। पण बताय देवो थे ई।”
“देख उणरो थूं दूजो अरथ मत निकाळ्यै। म्हारै बारै मांय कोई गळत धारणा ना बणायै..!”
“नीं बणाऊं। बताओ तो सरी।”
“थारै-म्हारै नांव रो मकान है नीं, बो थूं खाली म्हारै नांव करदै। मा फेर कीं नीं बोलै।”
“म्हारो नांव सागै है तो फेर थांरो ई हुयो। म्हारो नांव हटावण सूं कांई मिलैला..?”
“थूं भोळी है। मा नै लागसी कै म्हारै बेटै रो मकान है अर इणसूं बा चुप हुय जासी।”
“साच कैवो हो कांई..?”
“हां..! अर ओ ई साच कै जिको म्हारो, बो थारो। दूजो लेय’र थोड़ी जावै। खाली इण काम सूं मा बदळ जावै तो आपां नै तो कीं नुकसाण नीं है।”
“आ बात थे कियां कैय सको कै पछै मा बोलैला नीं।”
“मा नै इणी बात री तो रीस है कै थारै बाप थारो नांव जोड़’र घरआळा माथै भरोसो नीं करण रो काम कर्यो। मा केई बार म्हनैं कैय चुकी है।”
“बस, इणी खातर तंग करै। थे पैली बताय देवता। म्हनैं खाली थारै नांव सूं मकान करण मांय सोचणो ई नीं है। थांरा-म्हारा कांई बांट्योड़ा है, अेक ई है। न्यारा भाग ई कोनी तद मकान कांई न्यारो हुवै।”
“थूं त्यार है कांई म्हारै नांव सूं मकान करण खातर..?”
“थे कैवो जद।”
रमेश हाथूंहाथ जेब मांय सूं इकरारनामो निकाळ्यो। आ देख’र सुनीता तो सैंगमैंग हुयगी। इण तरै री पैली सूं ई त्यारी ही पण उणरै कनै सोचण नै कीं नीं हो। पैन देवतां ई बा तो कैयो जठै दस्तखत कर दिया। रमेश कागज पाछो जेब मांय घाल लियो।
“म्हैं अबार आऊं।”
कैयर’र बो कमरै सूं बारै गयो। मा नै कागज दिखायो अर पाछो आयग्यो। सुनीता रै बात कीं समझ नीं आई। पण घर मांय कळै सूं बचण खातर बा रमेश री बात मानली। आगै री कीं सोच नीं करी...।
दूजै दिन सूं ई सासू रो बोलण रो तरीको बदळग्यो। लाडकोड चालू हुयग्या। अणूता ई हालचाल पूछण री बात बार-बार हुवण लागगी। सुनीता नै लाग्यो कै रमेश ठीक कैयो हो। साच्याणी बदळगी ही सासू।
घणै लाड सूं उणनै दाळ मांय की काळो लागग्यो। अेक बार तो सोच्यो कै कागद आळी बात भायां नै बताऊं पर फेरूं मन मार लियो। भाई कांई सोचसी अर बात कठै तांई पूग जासी, इण रो ई पूरो डर हो। चुप रैवण मांय ई सार लाग्यो। भगवान जैड़ा भाग दिया है वैड़ा तो भोगणा इज पड़सी। आ सोच’र जी नै थावस देय दियो।
सासू रा बोल जिका डांभ दाई लागता, पूरी तरै सूं बदळग्या।
“बीनणी काम से जल्दी आय जाया। म्हैं थानै रोटी खातर उडीकसूं। आपां भेळी ई रोटी खासां।
“ठीक है सासू मा, टैम सूं आय जासूं।”
“थोड़ो ध्यान राख्या करो खुद रो। खायोडो कीं अंग ई नीं लाग रैयो है। आ बात तो ठीक कोनी।
“ठीक ई तो हूं मा’सा।”
“अरे म्हैं तावड़ै मांय केस धोळा कोनी कर्या है। म्हनैं सब ठाह पड़ै। औ रमेश तो कीं तंग नीं करै..?”
सुनीता नसड़ी हिला’र ना दी। काम माथै निकळगी। अेक कागद सब बदळ दियो हो। अेक महीनै तांई अैड़ो ई बरताव रैयो घरआळां रो। अेक दिन बडोड़ो भाई मुकेश आपरी बैन सूं मिलण आयो। सासू मा बारै गयोड़ा हा अर रमेश दुकान निकळग्यो हो। घर मांय सुनीता अेकली ही। बा भाई रा चरण परस्या।
“सुनीता घर मांय दूजो कोई कोनी कांई..?”
“ना भाईजी। सै बारै गयोड़ा है।”
“फेर ठीक है। म्हैं था सूं इज अेक बात पूछण खातर आयो हूं।
“पूछो नीं भाईजी।”
“बैन, थूं सोरी तो है नीं।”
“हां भाईजी, म्हनैं कीं तकलीफ नीं है।”
“खा म्हारी सौगन।”
“इण मांय सौगन खावणी जरूरी है कांई..? म्हैं कैवूं हूं नीं, थे मानलो।”
“म्हैं तो आज तांई थारी बात ई मानता आयां हां।”
“फेरूं कांई हुयग्यो।”
“म्हनैं कीं लाग्यो जद ई तो थासूं मिलण खातर दौड़’र आयो हूं।”
“इसो कांई लागग्यो भाईजी।”
“देख, तूं म्हारी लाडेसर बैन है। पूछूं बा बात साफ बतायै, कीं भी लुकायै ना... कीं भी, थनैं म्हारी सौगन है।”
“भाईजी थांरी सौगन ना खवावो। थांरै कीं हुवै आ म्हैं सैन ई नीं कर सकूंला।”
“तूं बात ई नीं बतावैला तो म्हारो मन दुखैला।”
“भाईजी, थे आज इयां-कियां बातां करो हो..?”
“म्हनैं कीं बात ठाह पड़ी है, इण खातर थासूं मिलण खातर आयो। म्हारो जी नीं मान्यो।”
“थां कांई सुणली नूंवी बात। बा तो बतावो।”
“थारै नांव रो मकान अर दुकान ही। दोनूं तूं बेच दी कांई..?”
सुनीता आ सुण’र सकतै मांय आयगी। उण अेक कागद रो ओ परिणाम। घरआळां सगळा मिल’र आ करी। अबै भाई नै बतावै तो कांई बतावै। उणरै मूंढै सूं तो कीं नीं बोलीज्यो। रमेश ई आ करी म्हामैं। आ सोच’र तो बा साव सैंगमैंग हुयगी।
“म्हैं म्हारी सौगन दिराय दूंला। साच बता कांई बात है..?”
फेरूं सुनीता कीं नीं बोली।
“बता बैन, आखर इसी कांई बात हुयगी..?”
बा कीं पड़ूत्तर नीं दियो। पण बीं री आंख्या भरीजगी अर टप-अप आंसू निकळग्या। रमेश सूं उणनै इण तरै री उम्मीद नीं ही। उण रो तो पूरो भरोसो ई उण माथै टिक्योड़ो हो। घर रै बाकी लोगां री बातां उणरै खातर ई तो सुणती ही। अंधारै मांय उण सूं इज तो रोसणी री आस ही। आज तो बा ई बाट बुझगी ही।
“बैना, तूं चुप क्यूं हुयगी। कीं न कीं तो बात है, बोल नीं..!”
सुनीता रोवण लागगी। भाई रो मन पसीजग्यो। बैन नै गळै लगाय ली।
माथै पर हाथ फेरण लागग्यो।
“तूं नीं बतावैला तो म्हांनै कीं ठाह नीं पड़ैला। आपां बाळपणै सूं साच बोलणो ई सीख्यो है। तूं कीं मत लुका अर साच बता।”
इतरौ केय’र भाई बीं रो हाथ उठा’र आपरै माथै पर राख लियो। अबै तो सुनीता कनै कीं चारो नीं हो।
अेक-अेक कर सगळी बातां बताय दी। सासू, रमेश अर कागद री बात ई। भाई नै बातां सुण’र कोई सुई चुभावै, उणसूं ई तीखी पीड़ हुवण लागगी। आंख्यां रातीचुट हुयगी। चुपचाप सुणतो रैयो।
जद सुनीता बतायो कै लोगां रै घरां मांय साफ-सफाई रो काम ई करणो पड़ै तो उणसूं सैन नीं हुयो। जिण घर सूं सुनीता आई ही उण घर मांय दो नौकर काम करता अर उणरी आवाज माथै सेवा सारू दौड़ता आवता। उण बैन री आ हालत तो कोई भाई सैन नीं कर सकै।
“म्हैं घरां जाऊं अर जीसा सूं बात कर’र आऊं। अबै थूं अठै नीं रैवैला। थनैं घरां लेय’र जासां।”
“नीं भाईजी, जगहंसाई हुसी। जीसा री इज्जत जासी। म्हैं आ बात नीं मानूं।”
संको करियां कीं नीं हुवै। इण तरै रै लोगां नै जद तांई सजा नीं मिलै तद तांई अक्कल ठिकाणै नीं आवै अर ना ई अैड़ा दूजा लोगां नै सीख मिलै।”
“पण म्हारो कांई हुसी..? टाबरां रौ कांई हुसी?”
“म्हे भाई नाजोगा नीं हा। म्हे ध्यान राखसां। पण आंनै तो सबक सिखावणो जरूरी है, जिणसूं कै दूजै कोई भाई री बैन तो कदैई फोड़ा नीं पावै। उण सागै तो अैड़ी बात नीं हुवै।”
“म्हारो मन नीं मानै भाईजी।”
“बैन आ पहल तो करणी पड़ैला। थारो हाल हुयो बिसो हाल ई दूजी बैनां रो हुवै तो आ बात ठीक रैवैला कांई? थूं फगत थारी मत सोच, बां सगळी बैनां री सोच जिणां सागै सासरै आळा अैड़ो वैवार करै। थूं इण तरै री सगळी लुगायां रै बारै मांय सोच। म्हामैं तो हुयगी जिकी हुवणी ही, पण दूजां भायां नै तो इण सूं सीख मिलसी।”
“भाईजी समाज है, समाज री बोदी बातां है। आंरै बिचाळै कियां हो सकै है औ सब।”
“समाज आळां नै सागै लेसां। बारै घर मायं ई तो बैन-बेट्यां है। बानै समझासां।”
“समाज समझ लेसी कांई..?”
“समझसी क्यूं नीं..? बां सगळी बातां नै समाज बदळणो चावै जिकी अबै भार लागै। बस पैलां औ काम कुण करै इणरी उडीक है। आपां करसां ओ काम। आ पहल। बस तूं घबरायै ना। आगै रैयै, बाकी म्हे संभाळसां।”
“थांरी बातां तो साव साची है, भाईजी।”
“साच सागै रैवणो इज तो धरम है। तूं हां कैय दै बैना..!”
सुनीता मन नै समझायो। हुसी बा देखी जासी। मन मांय पक्की धारली।
“हां, भाईजी। म्हैं थांरै सागै हूं। म्हारो तो हुसी जिको देख्यो जासी, पण दूजी बैनां रो तो भलो हुय जासी।”
भाई नै ताकत मिली। बो ई कीं नूंवो करण री तैवड़ली।
“तूं अबै कीं मत बोल्यै। म्हैं घरां बात कर’र आऊं। उणरै बाद थनै अर टाबरां नैं लेय’र जावांला।
सुनीता हां भरली…।
भाई घरै जाय’र मा-बाप नै बात बताई। थोड़ी खींचताण रै बाद सगळा घरआळां ई हां भर दी। समाज रै पांच मौजीज लोगां नै घरै बुलाया अर सगळी बात बताई। सगळा जणां इणनै माड़ी बात बतायी। भाई बाद मांय बैन नै घरै लावण अर सासरै आळां नै सबक सिखावण री बात कैयी। उण माथै ई समाज रै लोगां सागै रैवण री हामळ भरी। अेक जणै तो बतायौ कै उणरी छोरी सागै ई सासरै आळा इणी तरै सूं करै। उण माथै ई इणरै बाद सागै लैय’र काम करण खातर सगळा त्यार हुयग्या।
समाज रै लोगां री हामळ रै बाद भाई तो गयो बैन नै लेवण नै अर बाप सागै समाज रा लोग गया पुलिस थाणै। भाई जाय’र बैन री सासू नै कैयो कै म्हारै घर मांय अेक जागण राख्यो हां, इण खातर सुनीता अर टाबरां नै लेवण सारू आयो हूं। पैलां तो सासू कीं सोच्यो फेरूं हामळ भर दी।
“भई बीनणी, पीहर तो जावणो ई चाईजै। पण अेकर रमेश रै कानां मांय ई बात घाल दूं। थे तो जाणो ई हो कै आज रा छोरा है, अेकला रैवता दो’रा हुवै।”
उण आपरै बेटै नै फोन कर्यो अर बात करी। रमेश ई हामळ भरदी। बैन रै सासरलां नै भाई रै पैलां आवण री ठाह नीं ही इण खातर कीं बुरी तो सोची ई कोनी।
“हां सां, लेय जावो। पण कालै रात तांई पाछी पूगाय दिया। म्हारो तो मन ई नीं लागै बीनणी बिना।”
भाई बैन अर टाबरां नै लेय’र रवाना हुयग्यो। समाज रै लोगां पुलिय मांय मामलो लिखायो। पुलिस ई इणरी गंभीरता नै समझी अर हाथूहाथ सिपाई भेज’र सासू अर रमेश नै पकड़ लिया।
समाज मांय हाको माचग्यो। रमेश अर बीं री मा नै कीं समझ नीं आयो। पण सागै बोलणियो अेक ई नीं हो। समाज रा बडेरा इण काम मांय सुनीता रै सागै हा। सासू थाणै मांय कैयो कै अबै इयां नीं करूं पण पुलिस तो मांय न्हाख दिया। धीरै-धीरै सब जणा कैवण लाग्या कै इण तरै रै लोगां रो ओ इज हाल हुवणो चाईजै। रमेश अर मा नीं सोची। सुनीता रै भोळापै रो फायदो लेवण री तैवड़ी अर मिलगी जेळ।
समाज रा पैलां तो पांच लोग हा पण घटना रै बाद जद भाई आपरै घरै फेरूं गयो अर समाज आळां नै बुलाया तो बीसेक जणा आयग्या। बां मांय दसेक जणा जवान ई हा। काम री तारीफ करी अर समाज री हर बाई-बेटी रो इणी तरै ध्यान राखण रो बीड़ो लियो। उणां मांय सूं अेक युवक सुरेन्द्र हो। बो बोलण खातर खड़ो हुयो।
“थां समाज आळै लोगां री बातां सूं म्हनैं नूंवी सीख मिली है। इण तरै री बेट्यां नै नरक सूं निकाळणी अर बुरा काम करणियां नै सजा दिराणी ई ठीक है, पण आपां नै आ ई सोचणी चाईजै कै बाद में आं छोर्यां रो कांई हुसी!”
सगळा चुप हुयग्या। बात मांय दम हो। पण किणी कनै जबाब नीं हो।
“थारो सवाल सही है। इण बाबत ई सोचणो चाईजै आपां नै। तूं ई बता, काई करणो चाईजै..?”
“म्हारो सुझाव है कै आं बेट्यां रो दुबारा ब्यांव ई होवणो चाईजै। जणै कीं मतलब निकळसी। खाली घरां लाय’र बैठासां तो छोर्यां मांय हीण भावना आय जासी जिणरो कीं भी बुरो नतीजो निकळ सकै।”
“बात साची है। जद इण तरै री बात तैवड़ी है तो इण सुझाव नै ई मानणो चाईजै।”
“भाई म्हैं ई इणरी बात मांय हामळ भरूं।”
“पण आज रा छोरा त्यार हुसी कांई..?”
“क्यूं नीं हुवैला। पैलो नाम म्हैं म्हारो देवूं। म्हैं सुनीता सूं ब्यांव करण खातर त्यार हूं। जे थांनै अर बीं रै घरआळां नै मंजूर हुवै तो।”
उण बैठक मांय बीं छोरै रो बाप ई बैठो हो। बीं रो सीनो फूल’र चौड़ो हुयग्यो।
“हां सा, म्हैं म्हारै छोरै री इण बात सागै हूं। कानूनी बातां पूरी कर’र ब्यांव करण री हामळ भरो तो म्हारी ई सैमती है।”
सुनीता रै भायां नै लाग्यो जाणै बै कोई सुपनो देख रैया है। बां खातर तो इणसूं मोटी खुसी नीं ही।
“म्हे त्यार हां। तलाक करा’र थारै सागै म्हारी बैन रो ब्यांव करसां।” सब जणा इण बात माथै राजी होय’र उण छोरै नै कांधां माथै उठा लियो। सुनीता रो बाप तो इणनै सुपनो ई मानतो रैयो। पण नूंवी सीख इयां ई पड़ै अर बेड़ियां इयां ई टूटै। वाह सुरेन्द्र! सब जणा आई कैयी।