चितराम
जरा अठी नै भी देखण री किरपा करी, इण लटकतै चितराम कानी भी आंख उठावो तो—‘हियै में क्रोध रो भभकतो ज्वाळामुखी दबायां, प्रलयकाळ रा उमड़ता मेघां री ज्यूं मुख पर काळा केसां री लटां लुमायां, लुहार री धूकणी-सी नासा फुलायां, एक जवान मोट्यार हाथ में सरकस रो हण्टर