जगचावी! मसहूर! बे-जोड़! उस्ता चित्रकला। म्हैं ‘आर्ट-गैलरी’ में खड़ी ऊंट री खाल पर सोनै रै पांणी अर रंगां सूं बण्योड़ा चितरांम देखै ही, जिका दरसकां नैं जबरदस्ती आप कांनी खींच लेवै। राधा-किसन रा चितरांम, रासलीला रा चितरांम, बणी-ठणी, महेंद्र-मूमल, ढोला-मारवणी रा चितरांम। ऊंट री खाल पर ऊंट रा चितरांम। ढोला-मारवणी रै चितरांम में ऊंट री तणेड़ी नाड़, वीं रौ आगलौ अेक पग उठेड़ौ, मोहरी रै इसारै सूं वीं नैं मोड़णै री कोसीस में ढोलै रौ उठेड़ौ हाथ, साथै कनखियां सूं मारवणी कांनी देखणौ। मारवणी री झुकेड़ी निजरां अर मूंढै पर मुळकण देख’र इंयां लागै हौ, जिंयां वो अबै चितरांम सूं निकळ’र बारै जमीन पर आवैलौ अर पूगळ रै धोरां नैं लारै छोडतौ नरवरगढ कांनी वहीर होय ज्यावैलौ। तसवीर में ऊंट, वीं पर सवार ढोलौ, मारवणी, जिंयां प्रेम नैं अेक नूंवौ अरथ देवै हा। म्हैं इण चितरांम नैं देखतां-देखतां आपरै अतीत में गमगी। बठै ढोलौ, मारवणी तौ कोनी पण कीं सवाल है, जिका ऊंट री भांत ग’ल्लौ काढ’र बलबळावै। मद में चूर होय’र मांकड़ा मारै। जिनगांणी रा इतरा बरस गयां पछै म्हारै कनै आं सवालां रा जबाब कोनी। अैड़ा सवाल बिंयां तौ सगळां री जिनगांणी में आवता होसी, केई वांनैं दरकिनार कर देवै या अैड़ै विसयां बाबत सोचणै री जरूत नीं समझै।

आज म्हैं अेक कुसल सर्जन हूं। सैकडूं ऑपरेसन आपरै इणी हाथां सूं कर्‌यां है। किणी नैं जिनगांणी देणै री पूरी कोसीस में केई बर असफल भी रैयी हूं। अै सगळा सवाल पेसै सूं जुड़ेड़ा है पण अगर म्हनैं जाण-बूझ’र किणी री जांन लेणी पड़ै या किणी असाध्य रोग रै रोगी रौ प्राण लेणै में भलौ हुवै अर उणनैं मारणै सारू कैयौ जावै, तौ म्हैं अैड़ौ कांम कोनी कर सकूं। हजारूं लोगां नैं म्हैं मौत सूं संघर्स करतां देख्या है। केई अेड़ै मरीजां री प्रार्थनावां भी सुणी है जैड़ा सारीरिक कस्ट सूं छुटकारौ पाणै तांईं मर्‌या चावै हा पण म्हैं कदै अैड़ी बात सोच नीं सकी, क्यूंकै जिनगांणी देवणियो तौ भगवांन है। जद आपां जिनगांणी देण में सच्छम कोनी तौ ले किण भांत सकां?

म्हैं सरू में आपरै सवालां री उपमा ऊंट सूं दी। आप सोचता होवौला कै साहित्य में कांई उपमावां रौ काळ पड़ग्यौ या अैड़ै बादीलै अर मार्मिक सवालां तांई ऊंट रै सिवाय बीजी उपमा होय नीं सकै। होय सकती होवैली! पण म्हारा सवाल तौ ऊंट सूं जुड़ेड़ा है इण कारण बीजी उपमा कींकर दे सकूं। राजस्थान में अेक कैवत है कै हळोतियै रै बखत अगर किरसै रौ ऊंट मरज्यै तौ समझल्यौ किरसौ मरग्यौ। आज जद खेती जंतरां पर आधारित है तौ आपनैं कैवत झूठी या हांसणै जोग लाग सकै पण बात कीं दसक पैली री है जद खेती रौ आधार पसु हा।

म्हारी उमर जद कोई सात-आठ बरसां री होवैली। उण दिन जद म्हैं सवारै-सवारै नींद सूं जागी तौ घर में उछाव री माहौल हौ। मां टोकणी में मीठौ दळियौ बणावै ही। कनैं तातै पांणी री अेक बालटी भरी पड़ी ही। मां टोकणी में कुड़छी फेरै ही जद दादोसा हेलौ पाड़्यौ, “बहू! तातौ पांणी ल्याद्यौ।” मां जद बालटी उठाय’र बाड़ै कांनी चाली तौ म्हैं लारै-लारै चाल पड़ी।

म्हारै घर रै उतराधै कांनी बाड़ौ हौ। घर अर बाड़ै बिचाळै ऊंची भींत ही जिण में मोटौ दरवाजौ हौ। पसुआं नैं जद बारै लेय ज्यावणा होवता तौ घर रै मुखद्वार सूं लेय’र जांणौ पड़तौ। म्हैं देख्यौ बाड़ै में भाखलां री अेक कनात तांण राखी ही। उण री ओट में म्हारी सांढ खड़ी ही। उणरै कनै प्यारौ-सो अेक नवजात टोडियौ खड़्यौ हौ। वो आपरै डगमगावतै पगां सूं सांढ कांनी जांणै री कोसीस करै हौ। थकेड़ी सी सांढ उणनैं सूंघै ही। गांव रा अेक-दो लोग अर म्हारा जीसा बठै बैठ्या हा। कनैं धूंई जगै ही।

“म्हारी सांढ ब्यायगी! म्हारी सांढ ब्यायगी!” कैय’र म्हैं दादोसा रै गळै में हाथ घाल लटकगी। दरअसल सांढ रै जापै रौ खास ध्यांन राख्यौ जावै। उणनैं अलाय-बलाय सूं बचांणै तांईं अळगी जगां कनात तांण’र जच्चाखांनौ बणायौ जावै। जठै हर अेक नैं जांणै री इजाजत कोनी होवै। दादोसा अेक कपड़ौ तातै पांणी में भिंजो’र उण सूं नवजात टोडियै नैं पूंछै हा। दादोसा म्हनैं बतायौ कै सांढ टोडियौ ल्याई है अर उण री थुथणी पकड़’र सांढ रै थणां सूं लगा दी। म्हैं मन री जिग्यासा स्यांत करणै तांईं सांढ कनैं जाय’र टोडियै रै नरम-नरम सरीर पर हाथ फेरण लागी। वो म्हनैं घणौ मासूम, कंवळौ अर प्यारौ लागै हौ। सांढ उण नैं दूध प्यांवती-प्यांवती तिरपत होय’र कदै-कदै नाड़ मोड़’र उणनैं देखै ही। आंख्यां मींच वा उगाळी करै ही। प्रसव वेदना पछै सिरजण रौ आणंद उणनैं भाव-विभोर करै हौ।

थोड़ी देर पछै मां जद दळियै री टोकणी लेय’र आई तौ दादोसा उणनैं बठ्ठळ में खाली कर दी अर ऊपर सूं उण में अेक सेर घी उलटा दियौ। फेर ठंडौ होणै तांई अेक कांनी सरका दियौ। सांढ उण री सौरम सूं बठ्ठळ कांनी उचकण लागी, तौ दादोसा प्रेम सूं डांट’र बोल्या, “थम! अरे थमज्या, तातौ है! ठंडौ तौ होय ज्याण दै।” सांढ रै जियां उणां री बात समझ में आयगी अर वा ओजूं उगाळी सारण लागगी। म्हैं तौ कंवळै-कंवळै टोडियै पर हाथ फेर्‌यां जावै ही। म्हारौ तौ मन करै हौ उण नैं गोदी में चक’र उण रा लाड करूं। बिचाळै-बिचाळै सांढ कदै म्हनैं तौ कदै टोडियै नैं सूंघै ही। पसु आपरी सूंघणै री तागत सूं भी दूजै रै भावां नैं समझणै में सच्छम होवै।

अब म्हनैं अेक नूंवौ कांम मिळग्यौ। रोजीना इस्कूल सूं आवतां म्हैं सांढ नैं अेक पेड़ी गुड़ खुवांती पछै टोडियै साथै खेलणै में रम ज्यांती। वो म्हारै लारै-लारै रैवतौ। अब वो अेक मईनै रो होयग्यौ। दादोसा अब सांढ नैं लेय’र खेत जावता तौ वो लारै-लारै चालतौ। कदै तापड़िया करतौ तौ कदै जोर सूं बोल’र आपरी थूथन सांढ रै रगड़तौ। म्हैं सांढ पर बैठी-बैठी उण री अै हरकतां देख-देख राजी होवती। साच बात तो है कै बाळपणौ चायै किणी रौ होवै वो आणंद अर क्रीड़ा सूं भरपूर होवै।

अबै होळी आवणै में केई दिन हा, पण गांव में आखी रात चंग बाजता। धमाळ, फाग गाया जावता। वो फरवरी रौ मईनौ होवैला। दीतवार या कोई और छुट्टी रौ दिन होसी। म्हैं अर दादोसा खेत जावै हा। म्हैं सांढ पर चढेड़ी ही। दादोसा मोहरी पकड़्यां आगै-आगै पाळा चालै हा। उण दिन घणौ पाळौ पड़ै हौ। म्हैं चादर री कस’र बुक्कळ मार राखी ही। टोडियौ कदै तौ म्हारै साथै चालतौ अर कदै तापड़िया मारतौ दूर चल्यौ जावतौ। फेर पाछौ म्हारै कनैं ज्यांतौ। किणी झाड़की नैं सूंघतौ। किणी पौधै पर मूंढौ मारतौ। इण भांत वो वनस्पती जगत सूं आपरी पिछांण बणावै हौ। म्हैं उण रा करतब देख-देख घणी राजी होवै ही।

खेत में पूग’र दादोसा सांढ नैं खेजड़ी रै अेक ठूंठ सूं बांध दी अर चणा पट्ट’र चरणै तांईं उणरै आगै गेर दिया। म्हनैं बठै थमणै रौ कैय’र खुद पाड़ौसी रै खेत में चिलम पीणै तांईं या गपसप करणै तांईं गया परा। म्हैं इन्नै-बिन्नै कूदती फिरै ही। टोडियौ कदै म्हारै लारै तौ कदै सांढ कनै चल्यौ जावतौ। म्हैं अलग-अलग पौधां रा फूल तोड़’र उणां रा गुच्छा बणावै ही। जद म्हैं अेक ऊंट रौ बलबळावणौ सुण्यौ। म्हैं उण नैं देखण लागी।

ऊंट ताबड़तोड़ म्हारै खेत कांनी भाज्यौ आवै हौ। उण रौ मूंढौ झागां सूं भरेड़ौ हौ। उण रौ ग’ल्लौ काढ’र जोर सूं बलबळावणौ, पग पटकणौ, मांकड़ा मारणौ, दांत पीसणौ, म्हारै मन में दहसत पैदा करै हौ। म्हनैं बेरौ कोनी हौ कै वो म्हारै खेत कांनी क्यूं आवै हौ? म्हैं डर’र टकटकी बांध्यां उण कांनी देखै ही। म्हैं बात भूलगी कै भाज’र दादोसा कनैं चली जाऊं या उणां नैं हेलौ पाड़द्यूं। ऊंट नैं आप कांनी आवतौ देख सांढ डर सूं अरड़ावण लागगी अर मोहरी तुड़ाणै री कोसीस करण लागी। टोडियौ डर’र सांढ कनैं आयग्यौ अर उणरै च्यारूंमेर चक्कर काटण लागग्यौ। इतणै में मदांध ऊंट, सांढ कनैं पूग्यौ। वो घणी रीस में आक्रामक होर्‌यौ हौ। सांढ कनैं आवतां उण नैं लाग्यौ कै टोडियौ उण अर सांढ बिचाळै भींत है। इण कारण पैली इण भींत नैं हटाणी चायजै। उण डांचळी मार’र टोडियै री नाड़ पकड़ जोर सूं झटकौ दियौ। टोडियौ हेठां पड़ग्यौ तौ वो उणरै ऊपर बैठ’र उण नैं मसळणै लाग्यौ। जद सांढ जोर सूं झटकौ दियौ। उण री नकेल टूटगी। वा आजाद होय’र ऊंट पर टूट पड़ी, पण अब तांईं ऊंट री आंख्यां री किरकिरी दूर हट चुकी ही। म्हैं डर’र जोर-जोर सूं पग पटकै ही अर दादोसा नैं हेला पाड़ै ही पण इण सूं ऊंट रै कांई फरक पड़णौ हौ।

सांढ उण रौ जादा देर मुकाबलौ कोनी कर सकी इण कारण वा भाज छूटी। ऊंट उणरै लारै-लारै भाजै हौ। उण नैं काबू करणै तांईं वो सांढ रै कदैई नाड़ रै डांचळी मारै हौ कदैई पीठ पर बटका भरै हौ, तौ कदै उणनैं धक्कौ देय’र पटकणै री कोसीस करै हौ। सांढ भाजतां-भाजतां उण सूं बचणै तांईं झिरकी खाई पण संतुलन कोनी रैयौ अर हेठी पड़गी। जोर सूं ‘कड़ाक’ होयौ। ऊंट उणरै ऊपर बैठग्यौ अर उण नैं मसळण लाग्यौ। सांढ पीड़ अर बेबसी में अरड़ायां जावै ही।

रोळौ सुण’र दादोसा अर दो खेत पाड़ौसी लाठियां लेय’र भाज्या आया अर ऊंट पर पिल पड़्या। बड़ी मुस्कल सूं उण नैं काबू कर्‌यौ पण जद दादोसा सांढ नैं देखी तौ अफसोस में माथौ पकड़’र बैठग्या। चांणचक हेठी पड़णै सूं सांढ रा दोन्यूं आगला पग टूटग्या हा। वा पीड़ सूं बिलबिलावै ही। बठीनै टोडियौ ठंडौ पड़ चुक्यौ हौ। म्हैं तौ बस रोयां जावै ही। म्हैं रीस में आय’र ऊंट रै दो लातां मारी। दादोसा म्हनैं पुचकार’र गोदी में उठा ली। आंसूं पूंछ्या। बंधेड़ौ ऊंट अब क्रोध अर बेबसी में बलबळावै हौ। उण री आंख्यां सूं जियां चिणगारियां बरसै ही। नर री मादा मुजब इण भांत क्रूरता म्हारै दिल नैं कुचळ दियौ। म्हारै मन में अणगिण सवाल उठै हा जिकां री आखरी परिणति बाकी ही।

म्हैं अर दादोसा लुटेड़ै वोपारियां री भांत घरां पाछा आया। हालांकि दादोसा भली भांत जांणै हा कै ऊंट रा हाड कदै जुड़ै कोनी फेर अेक सयाणै नैं साथै लेय’र खेत गया। म्हैं साथै गई। सांढ पीड़ सूं लगातार अरड़ायां जावै ही। उणरै आंख्यां हेठ री जगां भींज’र काळी पड़गी। दुःख अर पीड़ में वा रोयां जावै ही। म्हैं उणनैं देख’र रोवण लागगी। सयाणै उण री जांच कर नकार रै रूप में नाड़ हलाई। दादोसा सिसकारी भरी अर म्हे घरां आयग्या।

आगै री कहांणी लांबी कोनी। घर सूं कोई ना कोई रोजीना खेत तौ जावतौ हौ। वो कीं हर्‌यौ-सूकौ चारौ सांढ आगै गेर देंतौ। पांणी प्या देंतौ। वा होळै-होळै सूक्यां जावै ही। दादोसा आजकालं अक्सर उदास रैवता। वै जद खेत जाय’र पाछा आवता तौ घणा दुखी अर बेचैन दीखता। अेक दिन उणां बलरांम काकै नैं बुलायौ। वै म्हारै रिस्तै में काकौ लागता। उणां कनैं बंदूक ही। वै, उणां नैं साथै लेय’र खेत कांनी चाल पड़्या। म्हैं उणां साथै जावणै री जिद करण लागी। दादोसा पैली तौ म्हनैं झिड़क दी, पछै बेरौ नीं कांई सोच’र साथै लेय ली। स्यात उण क्रूर पण संवेदनापूर्ण घटना री प्रत्यक्षदर्सी बणाणै खातर या सांढ मुजब म्हारै मन में पणपेड़ै मोह नैं सदां-सदां तांईं खतम करणै खातर या बात समझाणै तांईं कै केई बर मौत जिनगांणी सूं जादा करुणापूर्ण पण सुखद होवै।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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