“दस बरस।”

“आखा दस बरस।”

“पंदरै सूं पच्चीस री होयगी पेमां।”

“है जिसी री जिसी।”

“कीं फरक को दीसै नीं।”

“किसौ फरक?”

“जिसौ सगळी लुगायां में आवै।”

“वीं फरक सारू तौ लुगाई होवणौ सैं कुछ नीं।”

“तौ?”

“मा बणै तौ अंग फाटै।”

“लुगाई रौ पूरा पणौ है।”

“अधूती जात।”

“बणै कीकर?”

“क्यूं?”

“अरे भुआजी रै मूंछा होवण सूं वै काकाजी नीं बण जावै।”

“फिट् थनैं।”

“खीं...खीं...खीं...।”

“थनैं कांई ठा?”

“आखौ बास जांणै।”

“घीसौ नित गोधम घालै।”

“कांई?”

“दूजी लास्यूं।”

“नर्स बाई कैवता, केई लुगायां रै अंडौ नीं बणै...।”

“खीं...खीं...खीं...”

“मरद तौ ढीलौ होय सकै?”

“चुप रांड... मरद तौ मरद व्है।”

“थूं इज तौ कैयौ कै खाली मूंछां होवण सूं कीं नीं होवै।”

“थूं चुप रैय जा।”

“ईं में लांण पेमां रौ कांई कसूर!”

“अरे गैली! मरद कदैई खोटमाळौ होवै कांई!”

“क्यूं नीं होवै?”

“लागै बुधियौ हाल ढंग सूं निदाई नीं दीखै।”

“खीं...खीं...खीं...।”

“अबै थूं छांनी-मांनी रीजै।”

“क्यूं?”

“पेमां आवै है।”

पीचकै माथलौ पीपळ पण थोड़ौ-सोक उचक्यौ। कागलौ उडग्यौ... कांव। पेमां, जांणै सैंमूळौ पीचकौ चालग्यौ। बळदियां रै गळा री घंटियां, पीपल री फड़-फड़, पांणी री खळ-खळ, अरट री चरड़ चूं। पीचकै रै ऊपर बण्योड़ी गोळ-गोळ दो टंक्या। पांणी उफणै अर कऊ सूं आगै खळ-खळ पांणी। ठाडौ-टीप। पण मन में फांस चुभ्योड़ी।

“जल व्यर्थ गंवाएं। जल ही जीवन है। जल का सदुपयोग करें।”

अरे ठाला-भूलां खुद पीचकौ कीकर करैं। पीचकौ पांणी देवै, तीरस पूरै, वाड़ियौ निपजावै, कातीरौ-उन्हाळी देवै।

पीचकै माथलौ पीपळ पाछौ उचक्यौ। कागलौ पाछौ बैठौ...कांव। पिणघट निछरावळ करी। मटकौ सरबट भरीजण लागौ। पैली उंडौ पछै गळा तांई। ईंडाणी ठमी। पीचकै री रुणझुण बाजी। रातौ रंग बिखरग्यौ। जलफू जिसा कचकोळियां रा चिलका। वायरौ थोड़ौ-सीक रातौ रंग उघाड़'र छेड़कांणी करी। पीचका री भींतां, अरट, पट्टियां अेकर सागै मुळकी। विण सुण्यौ, “खीं...खीं... खी...।”

पिणघट पाछौ भाटा रौ बणग्यौ। पीपळ छिंयां बधाई जठा तांई पूग सकती। फट-फट पांनड़ा बाज्या। रुण-झुण ऊंडी बैठती गयी। कागली गळगळी होय'र कागला कांनी देख'र बोली, “कांव...।”

चिड़ी चुप।

“चुप रांड।” “.......”

“बांझड़ी।”

“किसोरिया रै घरै तौ वरस-व्यावणी है।”

“रतिया री लुगाई।”

“कुठौड़ मिरच भर्‌यां मांनसी।”

“…..”

“चींपिया उडैला तद ठा पड़सी।”

“……”

भचीक... भचीक... भचीक। घीसा रै हाथ अर पेमां रै माथै रौ आंतरौ मिटग्यौ। भींत माथै देवी परगट व्ही— राता रक्तंबर खळकाती। पक्कौ तिरसूळ। बिना नौरतां रै। बारै आंगणै में ऊभौ नींबड़ौ बोलौ चालौ। सगळां री 'डिमांड लिस्ट' न्यारी-न्यारी। घीसा रै छोरौ, डोकरी रै पोतौ अर नींबड़ौ.... फकत बोलौ-चालौ।

“पेड़ बूढ़ा सही, आंगन में लगा रहने दो।” सत्यानास जावै इसा हिंडोळा अर तराड़ां रा, जिका ऊभा-ऊभा देखै, पण बोलै कोनी।

“अरे थे तौ जीवता मरिया बिरोबर हौ। भूंडा तौ अबै व्हिया हौ। इतरा बरस कांई पोटा कीधा? लुगाई माथै जोरावरी, खुद री मरदांनगी री हैंकड़ी अर लुगाई नैं फू बराबर गिणण री कूतराई। ढबौ मरदां... ढबौ थे! मरद इण सारू नीं हौ कै खुणखुणियौ लटकाय'र फिरौ। थे मरद इण सारू बाज्या कै वा पाछी फिर-फिर कीं नीं बोली, नींतर कठैई गोळा में बड़ला रौ दूध भेळौ कर'र चूरमौ फाकता इज निगै आवता अर कै किणी पूंगीवाळै सूं रात रै अंधारै सांडां रौ तेल मोलावता दीसता।

सर्पणी पाछी फिरी, सो अेक फूंकार में इज घीसिया रौ माथौ फ्यूजियामा। भूंडौ नींबड़ौ थरथरीजियौ। डोकरी मोरियौ उगेरियौ। दस बरस सूं पेमां नैं वोट नीं दीधौ, पण घीसियौ तौ उदर में लुटियौ अर हांचळ न्यारा-न्यारा। म्हैं पूती अर थूं निपूती। इण सूं कांई फरक पड़ै कै म्हैं लुगाई अर थूं पण लुगाई। आपां अेक थोड़ाई व्है सकां। मरद अेक है... खाली मरद। सैमांन तौ वा इज जांणै जिकौ भुगतै, पण तौ मरद बाजै। माथै सेर सूत बांधै। आखौ दिन चूंतरा माथै पड़्या पांगरै। रात रा दारू पियै, मरद बणै। जलम्यां जद सूं मर्‌या तद तांई मरद। अर थूं... कदैई लुगाई, कदैई रांड, कदैई चूड़वैलण, कदैई सिकोतरी, कदैई डाकण, कदैई वायरै में आयोड़ी, थारी मरजी कुण पूछै? मरद तौ मूंछांवाळा है, टेम-बेटेम, रात-बिरात, अेकबारी नैं पांच बारी, मरजी माफक मरद बणसी, पण थूं सा'ळी 'सिंपल प्रोडक्सन यूनिट' निदा फाजली रौ बेडरूम में लाग्योड़ौ बिस्तर। सबद कुदड़का मारण लाग्या।

“सो वी नो दैट इट टैक्स वुमन्स वॉइस ऑफ एन्गुइस टू बी हर्ड सी हैज टू सैड ऑफ हर इनहैबीसन्स, स्ट्रिप डाउन टू हर अंडरगारमेंट्स एंड वॉक डाउन स्ट्रीट्स इन फ्रंट ऑफ लैचर्‌स मैन।”

“अरे हत्यारण धणी नैं मार नांख्यौ। डाकण तौ ही ई, छेवट खुद रा मरद रौ गटकौ कर दीधौ। मांचा रा पागां रै कस-बांध'र खूंन रौ कड़ाव भरती रोज। जणै इज घीसियौ तर-तर थाकतौ जा रैयौ हौ।”

“तिरिया चरित जांणै नहीं कोई, माणस मार सती पण होई।”

साबास है मरदां। पग री जूती पग में इज ठीक लागै। छोरा तौ बाड़ में मूतता आया है। बाड़ बिचारी कांई करै? छवेट गाबा उतार'र राजकोट री सड़क माथै उतरै अर कै डाकण बण'र धणी रौ गटकौ करै।

पेमां नैं पुलिस पकड़'र लेयगी। नींबड़ौ आपरी मरदांनगी रै सागै ऊभौ देखतौ रैयौ। जोबन ऊफणै पेमां रौ सौ रोकण सारू चार-चार कांस्टेबल अड़ोअड़ बैठा। अेक महिला कांस्टेबल उण रौ हाथ पकड़ राख्यौ। थांणैदार 'बेकमिरर' इण अेंगल माथै कर्‌‌यौ कै पेमां माथै निजर रैय सकै। हत्यारण है भला मिनखां, निजर तौ राखणी पड़ै।

“थांरी तौ नींत इज खराब है, जणै सोचौ गंदौ इज। बारै महीनां सूं कागलौ बोलै गू खाऊं... गूं खाऊं।”

घुर्र... जीप पीचकै साम्हीं सूं नीसरी। पीपळ उचक'र जीप रै मांयलै कांनी झांक्यौ। पीपळ माथै बैठी कागली आपरै कागलै नैं इसी टूंच मारी कै कागलौ नीचै थिरकीजग्यौ।

“रांड, आज रात रा देखजै थूं म्हारी मरदांनगी।” कागलौ रीसां बळतौ बोल्यौ।

“हींजड़ा, थारै कनै सैमांन कांई है? जे सांमलै नींबड़ै री कागलौ नीं होवतौ तौ...”, कागली रै डील माताजी औतरग्या। गायनेकॉलोजिस्ट डॉ. कमला राठौड़ बतायौ हौ कै...”पूजा चव्हाण अेकर फेरूं काळका रै रूप में राजकोट री सड़कां माथै नीसरी।”

पुलिस री गाडी आवै है। चौकी रै बेरणा माथै सूती कुत्ती आपरौ ओरणौ संभाळती अेक कांनी होयगी। कुत्तौ तौ ठाडै बारै मर्‌यौ, कुत्ती री रोटी चौकी सूं चालती।

“खळंद”

“खळंद”

अेकर बैरक खोलण री अर अेकर बैरक बंद करण री आवाज सुणीजी। महिला कांस्टेबल दियौ धक्कौ, सो पेमां बैरक री फर्स माथै।

“अरे मैडम, आप तो जाओ, बेटी का बर्थ-डे है। यह तो औरत की गिरफ्तारी थी इसलिए आपको आना पड़ा। सुबह वापस जाना। वैसे भी कौन देखता है। बाकी इस छोकरी को तो कांस्टेबल राजाराम की घरवाली देख लेगी। वह इसी क्वार्टर में रहता है। फिर मैं भी आज थाने नहीं जाऊंगा।”

धुर्र... जीप तौ मैडम नैं लेय'र जाय-वा जाय।

सूरज पण पुलिस वाळां सूं डरग्यौ, सो वेगौ इज भाज छूटौ। चौकी रा रूंखड़ा डर रै मार्‌या सांच चढाय लियौ। वायरौ अणूतौ होयग्यौ। देसी दारू पेफली कलाळी रै घर सूं नीसरियौ, सो चौकी में अर वठा सूं थांणैदार अर च्यारूं कांस्टेबलां रै मांय बड़ग्यौ। जोगियां रौ छोरौ तीतर ल्यायौ।

“किसौ जमांनौ आयग्यौ है।” थांणैदार मूंछां तांणी।

“अन्नदाता।” च्यारूं हजूरिया कूक्या।

“लुगाई मरदां रै माथै चढगी।”

“अन्नदाता।”

“मरद ढूला है सा'ळा, घाघरै री जूं।”

“अन्नदाता।”

“आज रांड नैं ठा पड़सी कै मरद किसा होवै!”

“अन्नदाता।”

“अेंठौ-चूंठौ थांनैं मिळसी।”

“अन्नदाता।”

“तीतरां रौ कांई हाल है?” थांणैदार हाक मारी।

“भूंजीज रैया है हुकम!” जोगियां रौ छोरौ बोल्यौ।

गट-गट-गट। देसी दारू मूंढै सूं बड़ी, सो आंख्यां री रातड़ बणगी।

थांणैदार उठ्यौ। कांस्टेबल मुळक्या। तीतर भूंजीज रैया हा। वायरौ ठमगौ। कुत्ती आपरै दड़बै में बड़गी।

“खळंद”

चौकी रै पसवाड़ै अेक कुत्तौ मरियोड़ै जिनावर नैं छंछेड़ रैयौ हौ, सो उण री घुर्र...कूं...वाऊ....सुणीज रैयी ही।

“सा'ब नैं देर लागगी।” अेक कांस्टेबल बोल्यौ।

“मरद आदमी यूं फारग थोड़ौ व्है।” दूजोड़ौ मूंछां रै बट देवतौ बोल्यौ।

“शीघ्र पतन, नामर्दी, कमजोरी, लिंग का टेढ़ापन, नसों का शर्तिया इलाज। फकीरी नुस्खा, बादशाही नुस्खा...रु.।”

याद आतां कांस्टेबल राजाराम खौं...खौं...खौं... कर'र हंस्यौ।

“हें! सा'ब फारग होयग्या।”

“खळंद।”

दूजोड़ौ फारग होयौ।

“खळंद।”

तीजोड़ौ फारग होयौ।

“खळंद।”

चौथोड़ौ फारग होयग्यौ।

तीतर पूरा भूंजीजग्या हा।

“माल तगड़ौ है।” पांचूं री अेक राय ही। दारू री धमचक में वांनैं ध्यांन नीं रैयौ कै तीतरां रै कुत्तौ मूंढौ लगाय लियौ। कजाणा कणैई जोगी पण फारग व्हैग्यौ।

सगळा भूंज्योड़ा तीतर चाख्या, खाया, छिंछोड़्या, चबाया, बटका भर्‌या, नखां सूं कचोया, हाडकौ-हाडकौ अर बोटी-बोटी। रिड़कां काढ दीधी। जोगी पण तीतर खाधौ। जितरौ हाथै लाग्यौ वितरौ।

रिमांड। चालाण। जेसी। नारी निकेतन पेसी। पेसी... पेसी... पेसी... पेसी। “होकम, 231 पेट सूं है” जेळ रौ चालानी गार्ड पेमा ने पेसी माथै ले जावण सूं पेली बोल्यौ।

“पत बायरी रांड है, अदालत नै इतला करौ।” जेळ सुपरीटेडेंट कह्यौ।

“शी मस्ट अंडर टेकन इन सुपरवीजन ऑफ गायनोकॉलोजिस्ट एज सी इज ऑन फेमली वे” जज तो आपरी बात पूरी कीधी पण पेमा रौ हाकौ कोट रै बारै तांई सुणीज रह्यौ हों—

“म्हूं बांझ कोनी, सुणौ रै सगळा सुणौ म्हूं बांझ कोनी...हां हा हा... म्हूं बांझ कोनी...”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : अरविन्द आसिया ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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