सुबै उठतां बा तो झूंझळ सूं भरीजगी। खुद री चा बणा’र मुनिया रो दूध तातो हुवण खातर गैस पर मैल’र चा पीवण बैठगी रसोई सूं बारै। चिणक देर में दूध बळनै री गंध आयी। बा कप नैं पटक’र भाजी रसोई मांय। गैस बंद कर्‌यो। खुद माथै रीस आई बीं नै। खाताई सूं काम सलटाणै री हड़बड़ी मांय गैस पर धर्‌यै दूध नैं तो भूलगी ही बा।

नित का इयां हुवै है। भाजमभाज कर सुबै रा सगळा काम सलटाती, कदे धणी पर फूंफावै ही तो कदे रीसभरी चट्टू जड़ दे है मुनिया रै।

बा सोचै है, म्हैं इत्ती चिड़ोकली क्यूं हो रैयी हूं। पण बा करै बी के..? खुद नैं समझावण है कै आखर लुगाई है, अेक बेटी री मां भी। बीं नै जो कीं करणो है, संभाळनो है, सो क्यूं खुद रै बूतै करणो होसी। सो रीस, झूंझळ क्यूं अर कीं पर..?

लारलै महीनै कॉलेज मांय लेक्चरार री परीक्षा रो नतीजो आयो अर बा पास होगी ही आच्छा नम्बरां सूं। तो सगळां उणरा मेनत अर लगन नैं सराई ही। धणी तो हैरान हुवतां कैयो हो, “ओ तो तूं जियां मीर मार्‌यो है सारदा। पढाई कर ले है तूं..?”

सुण’र बा हंस पड़ी ही। तो बस, बा जाणै है, कै अठै तांई कियां पूंची है। घर रै धंधै मांय भिळ्योड़ी, सोचती रैवै है बा। जिंदगाणी मांय कीं कर दिखाणै रो, के मोल चुकाणो पड़ै है?

घर रा काम सलटा’र बा अखबार बांचै है। फेर कोई दूजी किताब। आछी-आछी किताबां पढणै खातर तरसज्या है बा। टेम कुण देसी बीं नैं ? धणी है तो सूधा ई, पण मददगार कोनी।

इण बात रो दोस नीं देणो चावै बा धणी नैं। पण के करै। उणरी निजर मांय तो धणी जिम्मेदार है, इण वास्तै। क्यूंकै बै उणरै कनैं है। इण स्हैर मांय उणरा मायत बी है। पण उणां सूं जादा कीं तरां री आसा नीं राखै बा। बीं रो दोस तो बस इत्तो है कै बा कीं खास करणो चावै है। बा नीं चावै कै आखी जूण घर-धंधै में गाळ देवै।

जदी तो बीं नैं सब सहण करणो पड़ै है। जिको उणरी बरदास सूं बारै है। सो रीसां बळती’र आंख्या सूं कदे-कदे आंसू ढळण लागै है।

जद बा ग्यारवीं मांय भणै ही, जदी सूं उणरै मन मांय इसा बिचार सिर चकै हा कै बा मामूली जमारो कोनी जीवैली कदे बी। बां दिनां बा जमारै रो मोल भावनावां सूं बेसी नीं आंकती।

मुनिया कदे घणी हराण करै तो धणी कैय दे है, “तूं मां है, अै सब तो झेलणा पड़सी, तो फेर इत्ती फूंफावै क्यूं है, क्यूं सुजावै है मुंडो..?”

“मां हुवणै रो मतलब के है..?” बा बस इयां मन मांय कैय’र रैयज्या है, बोल’र नीं कैय सकै। किरोध जद-जद उणरै मांयनै उफणनै, उबळनै रैयज्या है।

उणरो ब्याव, जद बा बीए मांय भणै ही, जदी होग्यो हो। जद सूं आज तांई धणी-लुगाई आपरै जमारै मांय घणा उतार-चढाव, दुख-तकलीफ देखी है, झेली है। इण वजै सूं धणी सिरफ धणी नीं होय’र, सुख-दुख रा साथी है खास भायलै जिसा होयग्या है।

सो बा, सायद इण वजै सूं धणी सागै अैण-टैण नीं करणी चावै, मन री घुंडी नीं खोलणी चावै। जीं सूं साच्यांई अेकली होयज्या है।

उणरी जिंदगाणी मांय बेटी रो जलम मरुधरा मांय अेक बूंद जियां तो है। उणरै जमारै मांय होयी अेक इसी बारता है, जीं सूं बीं नैं धापनै हरख होयो हो। हर घड़ी-पल ध्यान राखै है, खुद री ज्यान सूं भी जादा चावै है बेटी नैं।

बा सोचै है कै लुगाई री जिंदगाणी रो मनचायो मोल समाज क्यूं बसूलणो चावै है। बियां बी समाज री सोच री भोत माड़ी, गयी-बीती हो चुकी है। हर कोई अेक मन मांय लुकी-छिपी-सी ब्याधी जिंदगीभर झेलै है अर फेर चाल दे है दुनिया सूं।

बीं मरणै सूं तो आछो है कै अंतहीण जुद्ध लड़तां-लड़तां मौत रै कनैं जावै है, जीं सूं खुद रै जमारै मांय बीं नैं भलां स्याबासी मिलै, पण अंत समै बीं रै मन मांय आत्म- संतोष तो होवै।

इयां मन मांय कतर-ब्योत कर बा घणी राजी होवै है। पण जदी उणरै हिरदै मांय बिचार आवै है कै तूं अपणै आपनैं बैलाणै खातर तो नीं सोचै-बिचारै?

तनैं के मिलसी? थारै सूं जादा राजी तो बै दूजा मिनख है जिका इत्ती बादू बातां कोनी सोचै बिचारै। बां नैं जिस्यो मिलै, लूखो-लाणों खा ले है। फाट्यो-पुराणो अर बदरंग पै’र ले है। मन मांय दुख नीं, मलाल नीं अर गैरी नींद सोवै है, जमीं पर फाट्योड़ा गूदड़ी-कांबळ ओढ-बिछा’र बी।

तूं बी इयां कर, कम सूं कम सुख-संतोष, सान्ती भर्‌यो जमारो तो जीसी। बा साच्यांई आकळ-बाकळ हुयज्या है। सांच के है? इयांलकी बातां जद-कद बा सोचै-बिचारै है। पण नईं, बा खाताई मांय कीं बी फैसलो कोनी ले पांवती।

आज दिनगै जद मुनिया रो दुध उफणग्यो हो गैस पर तो उण चुप्पी साध ली। चूं बी नीं करी। अेकर तो इयां लाग्यो कै बा रो पड़सी। पण नईं, उण तो अेकदम मन बंजर रो कर लियो।

“के म्हैं अेकली हूं जिकी इत्तो कीं झेलरी हूं..? और बी तो घणां मिनख-लुगाई होसी जिका म्हारी तरां जमारो जी रैया होसी अर अेक लड़ाई घर-गिरस्ती मांय नित-हमेस लड़ रैया होसी, भाजमभाज आपरा सगळा काम सलटातां हुयां।”

सदा सूं हर बखत मांय, कीं मिनख-लुगाई इसा हुया होसी अर आज बी है। ठाह नीं कितरा लोग होसी जिका रोजीणां दिनगै म्हारी तरां, भाजमभाज काम री सुरूआत करता होसी, तो फेर इत्ती झूंझळ, इत्ती रीस क्यूं आवै है म्हनैं..?

बा सोचती-बिचारती रैयी। बीं नैं लाग्यो इण भाजमभाज वास्तै, उणरै तन-मन मांय घणो उमाव, घणो जोस रो संचार होग्यो है। बा जितैगी घर-गिरस्ती री, घर-बारै री इण भाजमभाज सूं या हारैगी, बीं नै ठाह कोनी। पण अेक निरभै जुझारू री गुमानभरी मुळक उणरै मुडैं पर चिलकण लागी।

मुन्नी तो पालणै मांय सूती खेलणियै सूं खेल रैयी ही। उण नहा’र पैरण वास्तै सूट चक्यो अर नहाणघर मांय जाती रैयी।

बीं नैं तियार हो’र ठीक ग्यारा बजे अेक इन्टरव्यू खातर जाणो है। नहा’र पाछी आयी तो घड़ी कानी देख्यो, नौ बज्या हा।

अबी तो बीमार सासूजी खातर दळियो बणाणो है। उणां रा कपड़ा बदळणां है। मुनिया नैं बी नुहा-धुवा’र दूध प्याणो है, खांसी री दुवाई बी देणी है।

रसोई मांय गई तो देख्यो, दूध री दो थैली बी गरम करण री उडीक में पड़ी है। उण बेगी-सी अेक गैस चूल्है पर दूध तातो हुवण वास्तै मेल दियो अर दूजै पर आलू उबळणां मेल दिया, कूकर मांय।

चिणक-सी रसोई सूं बारै झांकी तो मेज पर खाली कप अर गिलास पड़्या हा, कूर्सियां पड़ी ही ऊळी-सूळी। मेज पर चाय रा निसाण दूर सूं निजर रैया है।

अै मरद लोग बी के होवै है...हुकम दियो अर अेक कानी होयग्या। धिराणी है तो सार-संभाळ करणवाळी-करसी अपणै आप।

जे अबी कोई आयग्यो तो घर री दसा देख’र के कैयसी..? हाथ मांय अेक कपड़ो लेय’र, उण मेज पूंछी, कुर्सियां नै ढंग सूं धरी। फेर भाज’र गई रसोई मांय। कदे दूध फेरूं नीं उफणज्या दिनगै री तरां।

इयां फिरकी ज्यूं घर मांय अठी-बठीनैं फिरती हुयी नैं ठाह नीं लाग्यो, कद बजग्या साढे दस। साड़ी बांधती बा सोचै ही, साढे दस बजग्या तो के हुयो..? अै सगळा काम भाजमभाज बी, ढंग सूं, सान्ती सूं सलटा दिया आज तो म्हैं। अर ठीक टेम पर जरूर पूंच जास्यूं कॉलेज।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : सावित्री चौधरी ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान, डॉ. सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कथेसर प्रकाशन, परलीका ,
  • संस्करण : 08-09
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