सिर पर घास रो भारो अर गोदी मांय छोरी लियां रामी पसेवां सूं हळाबोळ कुंड तांईं निठसेक पूगी। तिस मरतां छोरी रा हलख सूखग्या। बेगी सी भारो पटक’र कुंड कानी भागी, पण कुंड आळो बाबो को दीख्यो नीं। वा अेक खेजड़ी री छियां बैठगी। पल्लै सूं पसेव पूंछ्या, जूती झड़काई। छोरी नैं गोदी सूं उतार’र कनैं बैठाई ओढणियै री झोळी सूं बाजरै री रोटी रो अेक टुकड़ो तोड़’र उण रै हाथ में दीन्यो। छोरी टुकड़ो कुतरै लागी। रामी आप भी प्याजियै रै सागै बाजरै री ठण्डी-बासी रोटी रा टुकड़ा खाया। पाणी बिना दोनूं मा-बेट्यां रो जी निकळै। अठीनैं-बठीनैं जोयो, पण कुंड आळो बाबो अब भी को दीख्यो नीं। कई बार ताकातोली कोनी। सामनैं कुंड पर बरी-बाल्टी पड़ी, पण कुंड पर चढ़’र आपै ईज पाणी पीवण री हिम्मत को पड़ी नीं। रामी जात री मेघवाळ ही अर मेघवाळ-बळायां नैं सवरणां रै कूवां-कुंडां पर चढणै रो इधकार कोनी। कद बाबो आवै अर कद कुंड सूं पाणी काढ’र प्यावै? अठीनैं छोरी तिस्यां मरती गरळावै। घास रो भारियो लेय’र सहर पूगणो। कुंड सूं सहर पूरो दो कोस दूर पड़ै। पूगसी जद तांईं सिखर दोपारी हू जासी। पाणी पिये बिना सहर पूगणो बहोत ओखो। अेकर भळै इन्नैं-बिन्नैं जोयो, जाणै कोई मारग जावतो बटाऊ ईज आ जावै तो पाणी पीय’र सहर सांकड़ो करती। रामी रै सागेड़ी ध्यारी मंडगी। मन में करै-बापड़ो कुंड करावणियो सेठ धणो ईज भलो है, पण ओ बाबो किणी नैं पाणी पाय’र माड़ी ईज निहाल करै। सेठ तो पीसा देवणै रो आड़ू है।
इण खोड़ में पाणी रो कुंड कराय’र घणो-घणो उपकार कीन्यो है। पण बाबो अठै टिक्कै ईज कोनी। दिन उगे चरी लेय’र निकळैलो, सो ढाण्यां में आटो मांगतो-मांगतो दिन ढळे कुंड पाछो पूगैलो। कोई आपरी कमाई सूं धापै नीं। कुंड नी नोकरी तो खरी है ई ज। आटो मांग’र ऊपर री कमाई फोकट में। पण इणां रै मांग्यां ई ज सरै। अठै कमावतां-कमावतां ई ज को पार पड़ै नीं। अठीनैं छोरी भळे कूकी।
“तो हूं अब कांईं करूं? बरी-बाल्टी तो कुंड पर पड़्या ईज है। हूं आपै ई कुंड पाण काढ’र पीलूं कांईं? आवता-जावता सवरण लोग तो जिणां रा हाथ लागै, आपै ईज पाणी पीवै है, पण हूं कमीण जात मेघवाळ कीकर बाल्टी रै हाथ लगाऊं?” इत्तै में छोरी भळे गरळाई। वा बावड़’र छोरी कनैं पूगी, बुचकारी अर हणां ई बाबो आवै है- कैय’र उण नैं भुलाई। पण, छोरी कूकती-कूकती हुबकियां चढगी। तिस मरतां कल्लो सूकग्यो। आंख्यां तिरमिरावण लागगी। रामी नैं घणी रीस आई-सवरणां पर-कुंड आळै बाबै पर। “कुंड पर पाणी री बाल्टी भरी रैवै, जद उण में कुत्ता लिकता रैवै। ठा नीं कुत्ता-कागला कठै-कठै किसी-किसी कोजी अर सूगली जगां में मूंडो देवता फिरै। सूगला अर घिनावर लोग बाल्टी में हाथ-मूंडा धोवता रैवै। हूं मिनख होय’र भी पाणी री बाल्टी रै हाथ नीं लगाय सकूं। म्हारो दोस? दोस खाली इण बात रो है कै हूं मेघवाळ हूं— इण खातर अछूत हूं। मेघवाळ हुवणै सूं ई कांईं हूं कुत्तां अर कागलां सूं भी गई-बीती हुयगी। नईं कदे ई नईं। अब बैठी-बैठी बाबैं नैं कद तांईं उड़ीकूं?” कैय’र रिसाणी होय’र उठी-कुंड कानी चाली। कुंड पर चढ’र बाल्टी कानी हाथ घाल्यो—इत्तै में अगूणै मारग सूं आवती दो लुगायां दीखी। उणां नैं आवती देख’र रामी पूठी सिरकगी। दोनूं लुगायां आय’र आपरा भारिया खेजड़ी हेठै उतार’र बैठण लागी। रामी उणां नैं बोली पाणी कोनी पीवो कांईं? दोनूं लुगायां एकै साथै ई ज पड़ूत्तर दियो कै दो कोस सूं चाल’र इत्ती दूर पूगी हां। पैली पसेव तो सुकावां’क। सिर पर मण-मण रो भारो अर ओ चढ़तो तावड़ो। तूं कुण सै गांव री है, अर कठै जावैली?
रामी बिरगरा’र बोली—“बाई! मन्नैं तो पैली पाणी प्यावो। छोरी तिस मरती गरळावती-गरळावती हणां ई ज सोई है। मेरा हाथ लागै कोनी? हूं तो सांवतसर री मेघवाळ हूं। घास बेचण नैं सहर जाऊं हूं। पैलां मन्नैं पाणी प्यावो तो।” आ कैय’र वा हाथ सूं मूंडै कानी ओक मांडी। एक लुगाई जिण रो नांव मघी हो, कुंड सूं पाणी काढ’र दोनूं मा-बेट्यां नैं ऊपर सूं पाणी पायो। पाणी पीय’र रामी छोरी नैं ऊंची उठार गोदी में ली अर भारियो उठावण सारू मघी नैं कैयो।
दूजी लुगाई, जिण रो नांव गोरां हो, बोली—“बीरा! इसो कांईं उतावळ है? म्हे भी पाणी पीय’र साथै ई ज सहर चालस्यां। बोलती-बतळावती सागो करस्यां। म्हानै भी अठै बैठ्यां कीकर सरै? हूं तो घरे टाबरां नैं सूत्या ई ज छोड़र आई हां। कांईं करां? घर में दो गाय दूजै है। नेड़ै-निड़ास घास मिलै कोनी। जद इत्ती दूर आवणो पड़ै। अब आपां साथे ईज चालस्यां। दो सूं तीन भली”।
“बाई! उतावळ करो।” कैवती-कैवती रामी आपरै ओढणियै रा भरूंट काढण नैं लागगी। दोनूं लुगायां बाल्टी बेळू रेत सूं मांज’र कुंड सूं पाणी काढ’र पीयो। भलै सुस्ता’र उठी अर बोली—अब चालो। रामी छोरी नैं गोदी लेय’र भारियो ऊंचावण लागी पण ऊंच्यो को गयो नीं। मधी सारो लगावती बोली, “डावड़ी! थारै भारियै में तो घणो बोझ है।” कांईं करां बाई। इत्तै भारियै रा भी पण दो रिपिया को बंटै नीं। अर जे दो रिपिया बंट भी जावै तो किसी पार पड़ै? घर में बाजरी री लागत अेक पंसेरी री है। पांच सेर दाणा तो सूका ईज चाब जावै।”
मघी अर गोरां भी आपरा भारिया उठा’र भीर पड़ी। चालता-चालतां ई मघी बूझ्यो-थांकै कित्ता टाबर है?
“पांच तो घर छोड’र आई हूं, अर छठी छोरी आ गोदियां में है।”
मघी-अर सातवों ओ पेट में है। कैय’र दोनूं जोर सूं हंसी। अर रामी रै पेट कानी देख’र बोली-कद तांईं होसी?
“बस अब पूरा हुयोड़ा है।” लजावती-लजावती रामी पड़ूत्तर दियो।
“लखदाद है बाई थानैं! काख में छोरी, पूरै महीनां अर सिर पर मण रो भारो।”
“कांईं जोर करूं? पेट पापी है।” रामी बोली।
“घरवाळो कांईं काम करै है?” मघी बूझ्यो।
“क्यांरा काम है? न्हारवां (बाळां) सूं गळ्यो पड़्यो है। खाट सेवै है।” आंख्यां सूं आंसू ढळकावती रामी बोली।
“अरी बावळी! इण तरियां गळगळी हुयां कीकर पार पड़ै? कोई दवाई-पाणी कराई होती।” गोरी कैयो। “क्यांरी दवाई-पाणी है? करमां रा भोग है। दो रिपिया रोज री मजूरी करै हो। टाबर पळै हा। पण खाट झालणै सूं सारो काम अड़ग्यो।”
“आ गोदियां डावड़की कित्ती मोटी है?” मधी बूझ्यो।
“बड़ी क्यांरी है? दीवाळी नैं निठ सवा बरस री हुवैली।”
“तो कोई टाबर हुंसियार भी होसी काम-धंधो करणै आळो?”
“ना बाई! इसा कठै तकदीर? सैंसूं बडो डावड़को आठ बरस रो है।”
“भणीजतो हुवैलो? कुणसी में पढै है? ”
“पढणै वाळो हुवतो तो कीं भागी रै जामतो। म्हारै टापरै में बापड़ो पढै कीकर? रोटीसट्टै सिरैपंच री टाट (छेळी) चरावै है। वो ईज ऊतर्या-उतर्या जूती-गाभा देवै है!” अणमणी होय’र रामी बोली।
गोरां बूझ्यो—“सहर सूं भळे पूठी गांव कद पूगैली?”
रामी बोली— “ओ भारियो बिकणै सारू है। जावतां ई बिक जावै तो उण दामां री बाजरी लेय’र चाकी में पिसवा’र दिन बिसूंजे तांईं पूठी गांव पूगूंली। कणां-कणां भारियो घणो मोड़ो बिकै जद सोपो पड़्यां गांव पूगणो हुवै।”
“थांकै गांव सूं सहर कित्तो दूर पड़ै?”
“गांव सूं तो सहर चार कोस है, पण हूं पैली खेत में जाय’र घास काट’र भारियो बणाऊं—भळे सहर जाऊं, जद पांच कोस री पड़ जावै।”
“घर आवतां-जावतां पूरा दस कोस पड़ै।”
“हां, बाई! पड़ै जिका तो पड़ै ईज! पण निरजोरी बात। दूजो कोई धंधो कोय नीं।”
“तो तूं पींजरापोळ में घास क्यूं नीं देवै? बठै जावतां-जावतां घास बिक जावै।” गोरी बूझ्यो।
“पण, पींजरापोळ आळा तो सस्तो भाळै। चार आना धड़ी। अर बजार में बिकै पांच आना धड़ी। भळे बै हफ्तै सूं पीसा चुकावै। जद म्हारी कीकर पार पड़ै। अठै तो रोज कूवो खोदणो अर रोज पाणी पीवणो। बासी रैवै न कुत्ता खाय।”
“तो थांकै खुद रो खेत कोय नीं जिको दूजां रै खेत मांय भारियो लावण नैं जावै।” मघी बूझ्यो।
“ना अे भाण! जे खेत हुवतो तो आ हालत क्यूं हुवती?” कैय’र रामी आपरै फाट्योड़ा मैला-कोजा पूरां कानी देख्यो।
गोरी बावड़’र रामी कानी जोयो तो देख’र दया आई। काळी-काबरी लाय में दाझ्योड़ी सी रामी। सूखा-ठूंठिया सा हाथ-पग। सूखेड़ो मूंडो। सणियै सरीखा सूखा बाळ। हाथ में लाख री दो-दो चूड़ियां-पगां में चांदी री कड़कल्यां। जूतां रै नाव पर टायर री चप्पलां। लिपसर-लिपसर करती-सिर पर मण भर घास रो भारो लियां—छाती सूं बान्दरी सी छोरी नैं चिपकायां—आ गांव री लिछमी—सहर में भूख नैं बेचण नैं जावै। इण रै जीवण रा कोई अरमान नईं। कोई लांबी-चोड़ी बेजां इच्छावां कोय नीं। फकत पांच सेर बाजरी रै दाणां री लालसा है, जिण सूं जिनगानी रा तार कीं लांबा बध सकै! जीवण में कोई सुवाद नीं—कोई कोड नीं।
मधी जकी आजकाल री हवा सूं कीं जाणकार ही, बूझ्यो—थे तो हरिजन बाजो हो नीं? “हूं तो मेघवाळ! कैवण नैं चाये हरिजन कैवो चाये ओर कीं!” रामी पड़ूत्तर दियो!
“तो राज आजकाल हरिजनां नैं तो मोकळा खेत देवै है नीं। घर बणा-बण नैं पीसा देवै है। टाबरां नैं भणावण नैं खासा सायता भी देवै बतावै है।”
“बात तो कूड़ी कोय नीं। साव साची है। पण म्हां सरीखा दूबळां नैं कठै? वा भी पूगतां नैं। ठाया-ठायां टोपला बाकी रा लंगोट! म्हारै तो गांव रो सिरैपंच तीन बरसां पैली खेत री जमीन दिरावण सारू चाळीस रिपिया लिया हा सो न तो अब तांईं जमीन मिली अर न रिपिया ई ज। गाय गई गळांवड़ो ओर लेयगी। म्हे तो मांगता-मांगता फीटा हुयग्या। अब मांगणो ईज छोड़ दियो! वो जाणै वीं रो धरम जाणै। खेत तो कोनी मिल्यो सो कोई बात कोय नीं पण चाळीस रिपिया गिरै सूं ओर लागग्या।” रामी बोली
“अेक बात ओर बूझूं भाण! जे तूं बुरो नईं मानै तो!” नेड़ी होय’र गोरां बूज्यो!”
“बुरो कांईं मानणो?”
“तो तूं दिन-रात इण तरियां सहर अर गांव बिचाळै बगै तो रोटी कद बणावै? कद रोटी खावै?”
“रोटी कांईं खावणी अर कांईं बणावणी! काया नैं भाड़ो देवणो है। सहर सूं दाणा पिसा’र लेवती जाऊं! कदे दिन बिसूजतां अर कदे सोपो पड़्यां! अंधेरै में रोटी बणा’र टाबरां अर घर-धणी नैं देऊं। टाबर आख दिन ठंडी बासी रोटी चाबता रैवै! कीं साग न कीं पात! छाछ-दही तो आजकाल कीं देवता नैं भी मिलणा दूभर! हां, पैली केई घरां में भारी-भूंगरा करती जद छाछ—राबड़ी मिल जाया करती। पण, अब मिरचां भी मिलणी दूभर हुयगी—बहोत मंहगी! अब तो निरी ठैयां सूं ठरकायोड़ी जाबक कोरी-मोरी”।
“जद ई डील पर चामड़ी कोय नीं।” गोरी कैयो
“चामड़ी भागतां-भागतां बांठ बोझां रै लागगी। दिन उगे खेत जावती तळाब सूं पाणी रा दो घड़िया भर’ र मेलती जाऊं सो टाबरिया आप पीवता रैवै अर आपरै बाप नैं भी प्यावता रैवै।”
इत्तै में छोरी भळे रोई। पाणी रो नांव आवै कोनी! बू-बू करै! पण अठै बू कठै? अभी तो कोस आळी खेजड़ी आई है। अठै सूं सहर डांग सो पूरो अेक कोस ओर दूर है। रामी बोली—डावड़्यो। अेकर भारिया उतारो! कड़तू दूखै लागी। थोड़ो सारो ले लेवां। टाट अर गोदी दोनूं सिलगै लागी”।
साथणां रै बात बहोत दाय आई। खेजड़ै री सांतरी छायां देख’र आप-आप रा भारिया उतार्या! नाड़ सीधी करी। ओढणियां रै पल्लै सूं पसेव पूंछ्या। बाळू रेत री ठंडी-ठंडी छायां में पग पसार’र बैठगी। इण बगत हार्योड़ी—थाक्योड़ी काया नैं नींद घणी सोरी आवै पण अभी तो दिल्ली बहोत दूर है।
गोरी बूझ्यो—“बावळी! तूं इण छोरी नैं साथै ले’र क्यूं बोझ मरै! इण नैं घरे टाबरां में छोड दिया कर!”
रामी—“आ खोटी घणी है निरभागण। घर में रैवै कोय नीं। गोदी री हिंडाई चाये। इण नैं मेरा हाडका ईज प्यारा लागै। मेरै कोई आगलै बहोतर री मांगतोड़ी है। दिन रात मनैं छोडै कोनी”।
“घरे दादी भूवा कोय नीं कांईं जो इण टाबरां नैं राख लेवै?”
“कोई दादी न कोई भूवा! सै होई रा है। अणहोत रा कोई भी कोय नीं।”
“तो अब थारै जापै रो हीड़ो कुण करसी! टाबरां नैं दाळ-दळियो कुण कर देवसी!”
“राम ईज बेली है!” सिसकारो नांखती रामी बोली। “अेक नणद है- दूजै गांव में। उण नैं जे बुलावां तो कीं पूर-पल्लो देवणो पड़ै। अर देवां कांईं? टाबरां रै दाणां री ईज बिद कोय नीं! इण रो बाप छै मईनां सूं खाटली में पड़्यो है। कमाई करै कुण? हूं निठसेक दाणां बपरा’र टाबरी रो आगो चलावूं हूं। अब उतावळ करो। आज तो घणो मोड़ो हुयग्यो! पूठो कर आवणो हुवैलो!” कैय’र तीनूं आप-आप रा भारिया उठाया अर खाथी-खाथी टुर पड़ी! रामी छोरी नैं खाधै सू चिपायां सहर में पूगी! दोनूं साथणा आप-आप रै घरां कानी मुड़गी! रामी बजार में पूग’र गळी-गळी हांडती फिरै, पण घास रो कोई गाहक मिल्यो कोनी।
छेकड़ दिन ढळे पींजरापोळ में जाय’र भारियो तुलवायो तो पूरो सात धड़ी हुयो! मुनीम तोल लिख’र मुड़्यो तो रामी पीसा मांग्या! मुनीम खिझ’र बोल्यो, “आज नुवीं आई है कांईं? हिसाब हफतो पूरो हुवणै सूं हुवैलो!”
“पण मुनीमजी! आज घणी अड़ी है। अेक रिपियो तो देवोई ज!” चौळै री जेब सूं अेक रिपियो फैंक’र मुनीम आप रै दफतर में बड़ग्यो! रामी रिपियो उठा’र चाकी पर पूगी तो चाकी बंद। सहर मांय रोळो-बैदो हुय रैयो। दुकानां बन्द करता-करता लोग-बाग भाग रैया हा। आज सहर में हड़ताळ हुयगी। रामी निरढाळ होय’र रिपियो पल्लै रै बांध’र गांव कानी टुरी। सहर सूं निकळतां-निकळतां दिन बिसूं जग्यो। चाणचके ई आंधी आई अर मेह ओसर्यो! छोरी नैं ओढ़णियै रै पल्लै नीचै लुकोयां, चपलड़्यां नैं हाथ में लियां, अंधेरै में आखड़ती-पड़ती निठसेक कुंडियै ताईं पूगी। बिजळी रै परळाटै में कुंड रो बाबो अेक लुगाई नैं पडतां देखी तो लालटैण ले’र भाग्यो! पूग्यो जद तांईं रामी बेहोस हूगी। छोरी अेक कानी पड़ी गरळावै ही अर अेक नुंवो टाबर 'उवाय-उवाय’ करै हो।