डोकरड़ी कदाच् केई ताळ भळै भी उडीकती, पण जेठ रै कळकळतै तावड़ियै अर बळबळती लू उणरै धीरज रो बंधो तोड़ दियो। उण घणां ही आपरा हाड-गोडा काछबो भेळा करै ज्यूं कर परा’र ओटलियै री सरण करिया, पण ओटलियो रांड-जायो मिनट पांचे’क में गैली रांड गाभा फैंकै ज्यूं छियां नै फैक’र नागो-ततूड़ हुय’र ऊभग्यो। डोकरड़ी उण टटपूंजियै ओटलियै नैं छोड छिटकायो अर उठै सूं उठ’र ऊभी हुई। उठतां ही उणरी मींट सामलै दुकोसियै धोरै ऊपर पड़ी। डोकरड़ी नैं धोरै री ढाळ सूं ढळतो अेक आदमी रो झबको सो पड़ियो। उण झबकै उण री टूट्‌योड़ी आसा रा तार सांध दिया। वा ओटलियै सूं पांवडा दसे’क अळगलै मूळ री जड़ां में जाय बैठी। पाणी आळो कुबियो खोल’र उण आपरा सूखता कंठ आला करिया।

डोकरड़ी नैं आज-काल री बळगत ऊपर रीस आवण लागी। उण मन में विचार्‌यो “देखो रांडजायो जमानो आयो है! आज म्हनैं अठै तपस्या करती नैं पूरो अठवाड़ियो हुवण लाग्यो है, जजमान री बात तो अळगी रैई, केई बैवतै बटाऊ तक रा दरसण नहीं हुया। जमानो तो बापड़ो पैलां आळो हुंतो जिकै दिनां म्हांरै वां (पैलड़ै स्वर्गीय पति) नै सांस खावण नैं भी फुर्सत नहीं मिलती। जजमान ऊपर जजमान! ओटलियै रै ओळो-दोळो मगरियो सो मंडियोड़ो रैवतो। म्हारै सहर देखणै रो मौको सैंपैलड़ो हीज हो, पण अळगी गांवड़ियै में जलमी-ऊपनी अेक छोरी नै अठै आयां पछै कदे ही मा-बाप कै बैन-भायां री रवाड़ तक नहीं आई। आवती भी क्यूं कर! पीहर में जिकी जिन्सां रा नांव-नांव हीज सुण्या, उणां नैं देखी ही नहीं, परोटी पण ही। उण घर में धान-दाणै रा तो किसा बखाण! चावळ-चीणी री भी कोई गिणतकार नहीं ही। लाडू, जळेब्यां, पेठा इत्याद मिठायां री भंडैळां भरी रैवती। लापसड़ी रै कूचै अर सीरै रै कवै नैं तो पूछतो ही कुण! इसी जिन्सां तो गायां रै बांटै में काम आवती। दूध-दही री नदियां बैवती। पण पेदली रो भाग तो पुटियै जोगो! सुख इण काया नैं कठै। खेत रै खरकसै में वै मारीजग्या अर…!

“क्यूं सा…! लालै रो ओटलियो हीज है?”

अचाचूंक रै सवाल सूं डोकरड़ी ओझकी अर सावचेत हुय’र आयोड़ै आदमी रै सामों जोयो। वा लालर रो पल्लो खांचती बोली “हां, जजमान! आप नांव लियो, उणां रो ओटलियो हीज है।”

“लालो तो को दीसै नीं…?”

इण सवाल डोकरड़ी रै काळजै नै हलाय नांख्यो अर उण री आंख्यां सूं चौसरा आंसू बैवण लागग्या। उण डुसका खावती बतायो के “कांई बताऊं जजमान! वां (बीजोड़ै स्वर्गीय पति) नैं तो बिलाईज्यां नै आज तीन बरसां रै अड़ै-गड़ै हुयग्या...!”

“भगवान री मरजी है सा, कांई जोर…?”

“जोर कांय रो लागतो, जजमान…! घड़ी में घड़ियाळ बाजगी। दोय-तीन लोही री उळट्यां हुयी। लोग बापड़ा हकीम-बैदां नैं लेय’र आया जितरै-जितरै तो उणां रो हंस ही उडग्यो...!”

“साची बात है, डोकरी...! कालै री हीज बात है म्हारलो भतीजो (बडोड़ै भाई रो बेटो) राजी-खुसी दिनूंगै रो खेत गयो हो अर उठै पहुंच्यो ही कोनी, जिकै सूं पैलां ही मारग में पान लागग्यो। लबै-ढबै आळा बापड़ा तुरत-फुरत गाडी ऊपर घाल’र उणनै घरै लेय आया। घणी ही झाड़-फूंक करवाई, पण उण तो आप रो आगलो घर सिंवर्‌यो अर म्हे सगळा हाती-हाती करता ही रैया!”

“साची बात है, खूटी नैं बूंटी कोनी।”

“हुवो सा, वा माया तो मारगां लागी, पण लारलां नैं तो जमडंड भरणा हीज पड़सी। बो लारै अेक तूंतड़ो छोडग्यो है। सवारै दिनां लाग्यां वो भी तो जवान-मोट्यार हुसी अर आज आळो काचो कळियो माथै रैयां कालै लोग मेहणा-मौसा देवणा सुरू कर देसी। जाण’र अेक गेड़ रा पुर्जिया फाड़्या है।”

“साची है, जजमान..! आज तो अेक गेड़ रै पुर्जियां सूं ही बाळक रो मुंह्डो अूजळो हुय जासी, पण दिनां लाग्यां च्यार गेड़ करियां भी पिंडो छूटै कोनी।”

“आ बात तो है हीज..! आज तो इण काचै मरणै ऊपर न्यात-बिरादरी आळा छोटै-मोटै टाबर-टींगरां नैं हीज मेलसी तो मेलसी, पण काल दिनां लाग्यां बूढा-ठेरा भी जीमण नैं आवता संकै कोनी।”

“बस, न्यातड़ियां रै सगळां सूं मोटो दुख हीज है।”

“पण न्यात-बिरादरी नैं छोड’र जावां भी तो जावां कठै..? हां, तो क्रिया करावण नैं कुण हालसी?”

“और तो कुण हालसी, जजमान..! बसी रा बीजा सगळा लोग तो कुसमै रै कारण आप रा ढोर-डांगरा अर टाबर-टींगरां नै लेय’र पंजाब कानी गयोड़ा है, गांव में फकत हूं अेक जणी, थां जजमानांरो काम काढण नैं रैई हूं। थे अठै ओटलियै ऊपर सामग्री लेय आवता तो हूं केई छोरै-छींपरै कनैं सूं सहारो लगाय’र दोय लोटा पाणी प्राणी रै नांव ऊपर ढळवाय देवती, पण...।”

“पण न्यातड़िया तो क्रिया आपरै आंख्यां रै आगै करायां बिना पतीजै कोनी। जे इणतरै मान लेवता तो म्हे क्रिया गंगाजी रै घाट ऊपर कराय आवता...!”

“गंगाजी आळी क्रिया तो नांव मात्र री क्रिया है, जजमान..! बठै तो ठग बैठा है।” डोकरड़ी गंगागुरुवां ऊपर रीसां बळती बोली।

“कंई हुवो सा,’ लोगां रै तो चालै है, पण म्हानैं तो गांव में हीज करावणी पड़सी..!”

“मा..! आज तो कोई आयो हुसी?” मांचै रै ऊपर सूतै डोकरड़ी रै छोरै पूछ्यो।

“हां, बेटा..! आज भगवान निवाज्या तो है, पण..?”

“तो ला रोटियै आळो चूरमो। तूं कैवती ही नीं कै जजमान आवतां पाण हूं तनै चूरमो खुवासूं।”

“पण, बेटा..! जजमान तो क्रिया आप रै गांव में करासी।”

“गांव में करासी..?” छोरै आंख्यां में चमक लाय’र पूछ्यो।

“हां, बेटा..! जजमान रै बिरादरी आळा करड़ा आदमी है सो सगळो काम आप री आंख्यां रै आगै करासी। थारो बाप भी घणी बार गांवां में जाय’र क्रिया-कर्म कराया करता। जजमान ऊंठ लेय’र आयो है।”

“तो तूं गांव जासी..?”

“ना रे बेटा..! हूं रांड-रूड़ी कठै जासूं..? तूं थोड़ी हिम्मत कर लेवै तो काम पार पड़ जावै।”

“पण, मा..! म्हारै सूं तो सावळसर उठीजै-बैठीजै ही कोनी, ऊंठ ऊपर ठैरीजसी कियां...?”

“आ तो म्हनैं ही दीसै है, म्हारा बेटा..! पण गयां बिना सरै भी तो कोनी। गांव में जे कोई बीजो छोरो-छापरो हुवतो तो हूं आधणो ही मेल देवती, पण गांव में तो नर नांवै चिड़ी रो जायो तक रैयो कोनी!

“म्हारी सरधा तो बिल्कुल नहीं है, पछै तूं कैवै है तो दोरो-सोरो जासूं परो..!”

“ओ कांई क्रियागुरु लाया हो!” गांव आळां गो-गो करी।

“पण थांनै काम सूं मतलब है कै क्रियागुरु रै ताजै-मोटै डील सूं।” मृतक रै काकै सफाई पेस करी। “चोखो, भाई..! म्हांनैं किसी बहस करणी है, काम पार पड़ जासी जद देख लेसां।”

“हालो-हालो।” गांव आळा खेजड़ी कानी टुरिया।

बाप रै मरण रै उपरांत बिरत रो सगळो छोटो-मोटो काम छोरो हीज करिया करतो, पण करतो आपरै ओटलियै ऊपर। कठै ही जे छोटी-मोटी चूक-भूल रो अंदेसो हुवतो तो छोरै री मा पैलां सूं ही सहारो लगाय देवती। इतरी बडी न्यात-बिरादरी रै बैठां थकां, क्रिया करावण रो मौको छोरै रै सैपैलड़ो ही हो। वो खेजड़ी रै हेठै आसण ऊपर जच’र बैठ तो गयो, पण बैठां पछै उणरै हाथां-पगां में कंपकंपी हुवण लागगी। कंई तो बीमारी रै कारण छोरै रो सरीर कटियोड़ो हो अर कंई घणै सारै लोगां रो डर, इण कारण सूं उण रो सरीर पसीनै सूं तरातर हुयग्यो। पण फेर भी छोरै मृतक रै काकै री बात राखण खातर हिम्मत सूं काम लियो अर क्रिया री तैयारी में लागग्यो।

क्रिया रो सगळो सामान उण आप रै आसण रै ओळै-दोळै जचायो। मृतक रै छोटकियै भाई नै पिंडदान करावण वास्तै आप रै सामनै बैठाय लियो। सैंपैलड़ो काम हुयो मृतक रै प्रतिनिधि डाम रै पूतळै सूं। छोरै डाम रा दोय तिणकला आडा-ऊभा अेक-बीजै रै ऊपर मेल’र पूतळै री धड़ करी अर उण रै बिचाळै तिणकलो ऊभो कर दोय तिणकला हेठै-ऊपर आडा जचाय’र पूतळै नैं पूरो करियो। काचै सूत री जिन्दोई अर कोरपाण पिछोवड़ी रा गाभा पैराय’र उण पूतळै नैं आपरै अर मृतक रै छोटकियै भाई रै बिचाळै मेल दियो। छोरै री चतराई अर हाथां री फुर्ती देख’र उठै बैठा जिकै न्यात-बिरादरी आळा आपरै सागी मूंडै सूं उण री सरावणा करण लागग्या।

छोरै सगळा काम हुंसियारी सूं करिया, पण रोटियै खातर आटो गूंदती बेळा उण रो मन डुलग्यो। महीनै-बीस दिनां री काढ्योड़ी भूख, आटै नै देखतां ही चेतन हुय’र लाव-लाव करण लागी, पण इतरै मिनखां रै बैठां थकां आटो क्यूंकर फाकीजै। छोरै मन काठो कर’र गूंदियोड़ै आटै मांय सूं अेक दीयो हुवै जितरो आटो तो राख-लियो अर बाद बाकी सगळै आटै रो अेक मोटो सारो रोटो बणाय’र पुळपुळ में भार दियो।

छोरै मृतक रै छोटोड़ै भाई नैं समझायो कै ज्यूं सुभ काम में सगळा काम जीवणोड़ै हाथ सूं हुया करै है, त्यूं हीज इण प्रेत कर्म रा सगळा काम डावोड़ै हाथ सूं करीजसी। जठै-कठै ही टीकी-टमकी रो काम हुसी, वो सगळो अगली आंगळी सूं करीजसी। मृतक रै छोटोड़ै भाई उण री बात रो हंकारो भरतो थको आप री घांटकी हलावण लाग्यो।

छोरै पूतळै नैं आपरै हाथ में उठाय लियो अर मृतक रै भाई नै कैयो कै थे इणनैं धीरै-धीरै थारै हाथ सूं सिनान करावो। वो सिनान करावण लाग्यो। इण रै बाद पुतळै नैं कपड़ा-लत्ता पैरावणा, पागड़ी बांधणी, सुख-सेज में सुवाणणो इत्याद जिका-जिका काम छोरो भोळावतो रैयो, मृतक रै छोटोड़ै भाई पूरा कर दिया। छेवट बात जिन्दोई रै तागै तोड़ण ऊपर आवती अड़ी। मृतक रै भायां-भेळप्यां पांच रुपियां रो लोट छोरै रै पगां आगै मेल’र तागो तोड़णै रो कैयो, पण छोरो अड़ग्यो। बोल्यो “म्हारै तो आज मोतियां खेत बूठो है अर थे पांच रूपली फैंक’र टाळणो चावो?”

“हरे राम-राम..! सामलै रो तो घर पाणी रै बाहळै बैयग्यो अर इण रै मोतियां खेत बूठो है।” कनै बैठा जिकै लोगां खिखर करी।

छोरै हिम्मत को हारी नीं। बोल्यो “थे कैवो जिकी बात तो ठीक है, जजमान! पण म्हानैं किसा थे ब्याव में बुलाय’र सीख-बिदागी देवो? म्हांरो तो काम ही प्राणी रै लेखै दोय लोटा पाणी ढाळणै रो है।”

लोगां बिचाळै पड़-पड़ाय’र छेवट बीस रुपियां में तागो तोड़ायो अर छोरै नैं कागोळ घालण वास्तै कैयो। छोरै तागो तोड़ दियो अर रोटियै नैं चूर’र उण मांय सूं थोड़ो सो चूरमो अर दही अेक आकपनै ऊपर घात’र कागोळ घालण वास्तै मृतक रै छोटोड़ै भाई नैं पकड़ाय दियो।

मृतक रै भायां-भेळप्यां आपू आप री तरफ सूं प्राणी रै लारै पेटिया दिया। खासो सारो सुको रसोई रो सामान अर मिठाई भेळी हुयगी। मृतक रो छोटोड़ो भाई जितरै कागोळ घाल’र पाछो आयग्यो। उण आवतै पांण सैं-पैलड़ो क्रियागुरु नै आपरै हाथसूं कवो देय’र जीमायो अर पग दाब’र आसीस ली। छोरै री छाती फूलीज’र सवागज चौड़ी हुयगी। जिका लोग आडै दिन मूंडो तक नहीं देखणो चावै, बै हीज सागी लोग काम पड़ियां हाथां सूं कवा देवै अर पगां पड़’र आसीस मांगै। उण नैं आप रो जीवण सार्थक लागण लाग्यो।

छोरो घर में बड़तो ही थाबा खावण लागग्यो। उण री मा, उण नैं सहारो देय’र मांचै ऊपर लाय सुवाण्यो। बा खथावळी-खथावळी गांठड़क्यां नैं खोल’र संभाळण लागी। अेक पल्लै में आटो बांधियोड़ो दीस्यो। उण आटै आळी गांठड़ी पाछी बांधदी अर दूजोड़ै पल्लै री गांठ खोली। उण में खुणचेक मिठाई रा दाणा निकळया। मा पूछ्यो “अै इतरा सा ही मिठाई रा भोरा क्यूं कर?”

“बीजोड़ा तो हूं खायग्यो, मा.?” छोरो गिरणतो-गिरणतो बोल्यो।

“तूं खायग्यो..? मिठाई तो अळगी रैई, बैदजी तो धान तक बंद कर राख्यो हो। म्हैं थनैं इतरी भोळावण दी ही कै-बेटा खाईजै कंई मत..?” छोरै री मा बिलखी पड़ती बोली।

“खाय तो गयो, मा..! छोरै सूं आगली बात पूरी को करीजी नीं। उण रै पेट में आंटा आवण लाग्या। बो मांचै ऊपर पड़ियो ताफड़ा तोड़ै। छोरै री मां तीजोड़ै पल्लै सूं खोल’र बीस रुपियां रा लोट अर कंई खुदरा पीसा काढ्या। जितरै छोरै नैं जोर री उकराड़ हुई। छोरै री मा रुपिया अर भांज मुट्ठी में भींच्यां हीज उठी अर छोरै नै अेक हाथ सूं सहारो देय’र बैठो करियो। उण नैं भळै उकराड़ आवण लागी। छोरो सरीर सूं साफ कटियोड़ो। उल्टी पूरी बाकै सूं बारै आई ही कोनी, जिकै सूं पैलां उण रो हंस उडग्यो। उण री हालत देख’र डोकरड़ी रो बाको छूटग्यो। वा जोर-जोर सूं कूका करण लागी, पण उण सूनै गांव में कुण सुणै? बस्ती रा सगळा लोग तो तांती-उपाड़ बाहर गयोड़ा। डोकरड़ी छोरै नैं खोळै में लियां बैठी। मांचै रै ओळा-दोळा बै बीस रुपियां रा लोट अर खुदरिया पीसा बिखरियोड़ा पड़िया।

स्रोत
  • पोथी : आज री राजस्थानी कहाणियां ,
  • सिरजक : मूळचंद प्राणेश ,
  • संपादक : रावत सारस्वत, प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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