सूरज उगाळी हुवतां-हुवतां गांव में च्यारूं-चौफेर कांई, कांकड़ रा कैर-बांठका ताणी खबर पूगगी कै गोपियो सांढ नै मार दियो। बिछावणा सूं ऊठ्यो जिकोई तळाव कानी भाजतो-भाजतो रवानै हुयग्यो जाणै बठीनै लाय लागगी हुवै!

घूंघटा में लजावती लुगायां रा झूमका बठै जाय-जाय पाछा बावड़ै हा। स्याणा समझणा मिनख तळाव सारै मिंदर री छीयां बैठ्या बीड़्यां बाळै लाग्या। मिनखां बिच्चै सूं धुंवै रा गोट उठै हो। छोरा-छापरा तळाव री पाळ कनै जाय ऊभग्या। मिनखां रै दाकल्यां सूं अेकर बै छोरा बरणाट्यां देय खिंडै हा, पछै पाछा बीं सागण ठौड़ पूगै हा। बूढ़ा-बडेरा डांगड़्यां कै बांका-डोडा घोचां रो सहारो लेवता कीं आंतरै बैठग्या। आपरा बिन कबाण्यां रा चश्मां नै डोरड़्यां रै पाण कानां रै लपेटता बै चूंधी निजरां सूं अठी-उठी चंचोळा मारता पूछै हा—सांढड़ा नै पाणी बारै काढ लियो कांई?

पाखती सूं नीसरतो अेक जणो मूंछां रै बळ देवतो ओझाड़तो बोल्यो—थांनै बारै काढणो है कांई? सूझै ना भाळै। घरां क्यूं बैठ्या रह्या हुवो नीं। अठै क्यां ताणी आया हो?

कानां में हुवती गुरबत सात बजतां-बजतां बारै पग काढ्या। खींयो दरजी बोल्यो-बापजी! इयां आखै गांव रो राम नीसरग्यो कांई? होळै-होळै क्यूं बतळावो सगळां नै ठाह है। जीवती माखी आज गिटीजै ना काल। बां लुकमींचणी रमै हा जिका टाहरां नै पूछल्यो और भीकू बाबा नै पूछल्यो... सदा ईं सांम्हली प्याऊ में सोवै।

जिकां रा टाबर रात नै रम्मत में हा, अकण सागै उचक्या-टाबरां नै कांई ठाह? अै आपरी रम्मत में काठा मैला हुयोड़ा हा। जिकै में च्यार-पांच टाबर तो सफा बगना है। अेक रो नांव लेवता दूजै रो लेय लेवै। मिनख मारबा जिस्यो काम, ईं में पूरी सावचेती री जरूरत है।

खींयो आज कीं जोश में हो। बो बोल्यो—भीकू बाबा नै पूछल्यो। बापड़ो सांढ रो होड़ो करबा में अर प्याऊ में पाणी पाबा में आखी ऊमर गाळ दी। अस्सी रै अड़ैगड़ै पूगग्यो। ईनै किस्यो स्वारथ है? बोल बाबा! तूं गोपिया नै लाठी रा दड़ीड़ उपाड़तां, सांड लारै भाजतां रात नै देख्यो हो नीं?

बाबो सरपंच रा बेटा गोपिया रो सीधो नांव कियां लेय सकै हो? अेकर पेमली बोर गिटीजै जियां थूक गिट्यो। लोगां रै मूढां सांम्है झांक्यो। सगळां री निजरां आकरी देख’र कीं हिम्मत करी—माईतां, म्हनै रात नै दीखै कमती है पण ब्याळू पछै रा बगत गोपियो लाठी ऊंचायां रोही में जावै हो। म्हैं बींनै पूछ्यो हो—आज गोपी इत्यारा कठीनै संभ्यो भाइड़ा? काल रो जलम्योड़ो गोपी म्हारो माजतो लेय लियो। म्हनै कैवै लाग्यो—थारै जिस्या बोदा खोपाऊं की पार पड़ै कोनी। सांढड़ा रो पापो काटबा रो कत्ती वार तनै कैय दियो। बांटा-चूंटा भेळै पुड़कली नांख देतो। तू रोजीनां बांटो देवै, थारो कोई शक कोनी करतो। पण खैर... आज म्हैं पापो काट’र आवूं।

खींयो दरजी मन में हरख्यो-ल्यो सा, पूरी पुख्ताई री बात ल्यो। पछै लाठी ऊं ठोकतो सांढ नै दुड़ावतो गोपियो तळाव कानी पाछो आयो हो नीं बाबा?

सरपंच सांम्है नीं देख सकै हा, बै सागण लोग आगै बध-बध’र बोलै हा। लोगां रा हुंकारां सूं बाबै रो बळ बधग्यो—हां सा बापजी! अेक जणो बीं ऊंचली पाळ ताणी सांढ रो लारो कर्‌यां भजायां ल्यायो। पाळ ऊपर आयां बापड़ा जीव नै काठो रोड़ लियो। नीचै ऊंडो पाणी दीखै हो। ऊंची पाळ सूं अठीनै पाछो आवण नै बापड़ो जीव घणाई पग पाछा दिया पण बीं, कंस नै क्यांकी दया आवै ही? लाठी री बटाबट-बटावट माथा रै कणा सींगां रै घुरायां गयो। सेवट काया हुयोड़ा जीव रो पग मुरड़ीजग्यो। अड़थड़ातो धम्मीड़ करतो नाड़ वाणी नीचै गट्टाटोळी खायग्यो। पछै पाणी में उथळीजतो अेकर दीख्यो। म्हैं तो डरतो उठ्यो कोनी, साची बतावूं बापजी! मारबाळो सरपंच गुवाड़ी कानी भाजग्यो। म्हैं हो जठैई काठो ताफळग्यो।

अत्ती सुण्यां खींया रै घूघरा बंधग्या— अब गांव राम रै सांम्है सगळी बातां रो खुनासो हुयग्यो। अेक जणो गरज्यो—ईं गऊ रा जाया सांढ देवता नै मार नांख्यो अर आखो गांव अन्न-पाणी ले रह्यो है, धिरकार है थांनै मरदा!

लोगां में गबदोळो माचग्यो। खुमर-पुसर हुवै लागी-सांढ जबरो हो। इस्यो आपणै चोखळा में कोनी।

कोई कैवै हो—खेतां में उजाड़ सगळां रै करै हो पण ज्यान सूं थोड़ो मार काढणो हो। सांढ मारणो, मिनख मारणै सूं बेसी अपराध हुवै।

—सरपंच अबकै बुध्या नै काठो घांदा में फसाय बींरी पचास बीघा जमीं तळाव सारली खुद बीजी ही। अबकै बींरो छोरो सांढ मार नांख्यो। समझणा हा जिकां बात नै पाछी उथळी—तो अब करणो कांई है? न्यारी न्यारी खीचड़ी रांध्यां कांई होणी-जाणी है? आपां राज-तेज रा पैंतरा जाणा कोनी, करां कांई?

सांढ मरतां केई जणा में ऊरमा अर अक्कल बापरगी। खींया री जबान कतरणी सूं बेसी चालै ही। बीं में कांई ठाह कठै सूं अत्ती हुशियारी आयगी? आगै बध’र बोल्यो—अब सांढ नै बारै काढबा री उतावळ मत करो। पैली थाणा में रिपोट ठोकणी है।

आखो गांव उथळ-पुथळ हुयोड़ो हो। कोई खबर लावै हो नासां सूं निसर्‌या खून नै देख’र कै सांढ पड़्यो बठै रो सगळो पाणी रातो-चुरट हुयग्यो। कोई नाक ढक्यां आय’र कैवै हो—सिड़ान ऊठै लागी। सगळो पाणी बदबू सूं भरीजग्यो। तळाव गांव रो परींडो है, अब कांई पीवांला? कीं अठी-उठी री बातां हुय’र तय हुयगी कै चालो थाणै में रिपोट करां।

अत्ती ताळ जोश में उफणता, आंख्यां रा डोरा राता कर राख्या हा और मूंढा सूं थूक उछाळै हा जिका थाणै चालबा रै नांव सूं पाछ पगल्या सिरकबा लाग्या। सरपंच रो डर चोटी में चढै लागो-कठैई मारणो भैंसो उळझा नीं देवै। इण पडपंच सूं लारो छुडाबा में केई जणा रै ताव चढगी अर केई जणा री कड़्यां में दरद चेतग्यो।

गीपियो रोही में भाजग्यो हो। बींरो बाप लादूजी सरपंच गांव रा पोचापणां नै चोखी तरह जाणतो निसंक आपरी बैठक में सूतो हो। सोबा सूं पैली बींनै ठाह ही कै अै कमसल मिनख थोड़ो कुणमणाट करनै आपेई आप-आपरा टापरां मांय जाय बड़ेसी। सेवट बींनै सांढ री बैकुंठी काढ’र मसाणा पूगावण रो भलो काम करणो पड़सी।

सरपंच नै कोई ठाह हो कै दिन ऊग्यां पछै-पछै गांव में सावचेती री चिणगारी चमकगी। गांव रै उफाण री सुणतां बींरी सातूं नाड़्यां रो सत सागै नीसरग्यो। घणी ताळ बो सत बायरो हुयोड़ो बैठ्यो रह्यो। पछै कान फड़फड़ाय आपरी बलगत राय रा च्यार-पांच जणा नै कुलबै-कुलबै घरां बुलाया।

बै सरपंच री कृपा सूं गोठ-घूघरी जीमता रैवै। इशारै रै समचै आय पूग्या। थोड़ी जेज कानां बाती हुई, पछै बै आया जियांई उतावळा पग धरता तळाव री पाळ ऊपर पूगग्या। बठै जाय नुंवी बात पोळाई-बेटी रा बापां! अेक बात सुणो। आपां दिन ऊग्यो जद रा थाणा-थपाणा री बातां करां हां अर आखो गांव तिस्यां मरै। भला मिनखां, सांढड़ा नै बारै राळो नीं। ईं ढील-मील में पाणी गतरस नीं हुय जावै। सांढ नै आपां देवता मानां, री बैकुंठी जोर की काढणी है। सरपंच रै डंड करबा में दूजा पंच अर न्यात-पांत रा न्यारा-न्यारा नेता अठै आपां भेळै तैयार बैठ्या है।

भीड़ मांयलो अेक जणो भैम रो कांकरो उछाळ्यो-थांकी न्याव में सिरेपंच आज आवै काल। बो मोद में भर्‌योड़ो राज रा लाठां रो डर आयै दिन दिखाळै। आपां रै माथै कोई उल्टो अळवदो नीं नांख देवै।

सरपंच रा वै च्यारूं भायला खिलखिलाय हंस्या—थे आछी गैली बातां करो! सरपंच बापड़ो आवण नै तैयार। बींरा बेटा गोपिया री दादेर सासू चालती रही, बापड़ो सोग में घरां बैठ्यो है। इस्यो कमसल छोरो जलमग्यो जद आज बींनै नीचै देखणो पड़ रह्यो है। आज सगी री मौत में बापड़ो अेकलो बैठ्यो है।

भीड़ मांय अेकर रीस रा खोरा उछळ्या-इयां सांढड़ा मार्‌यां... छोरा री दादेर सासू कांई, कोई दिन खुद खता खा जासी।

बात रो जमतो जाचो देख’र बां मांयलो अेक जणो राय दीनी-पैली सांढ देवता नै पाणी बारै काढो। कांई केस करबा में पड़्यो है। आपांरै गांव री फजीती हुसी। पांच पइसा लागबा नै ठौड़ हुय जासी। रात रा मर्‌योड़ा सांसर नै पाणी में राख राख्यो है। आपांरै पाणी पीबा नै अेकाअेक तळाव, जिकै नै क्यूं खराब करो हो? बैकुंठी जबरी काढो। सगळो सामान सरपंच रै नांव उधार मंडवाय द्यो। मतैई घूळ खाय बो चूकतो करसी।

खींयो बापड़ो हाको कर्‌यां जावै हो। थोड़ा-सा मिनख बींरै पाखती ऊभा रहग्या। बाकी रा पाणी कानी अड़बड़िया सांढ री ल्हास रै अेकर हाथ लगावण नै जावै हा। पड़्या धरम नै लूटबा में लारै कुण रैवै हो?

रातीलाल बैकुंठी सूं झड़तो गुलाल आखै मारग नै रंग दियो। मिंदर रा झालर-टिकोरा बजावता लोगां रा हाथ थाकै नीं हा। खींयो बापड़ो अत्तो गळो फाड़्यो, साची बात वास्तै कैवतां बींरा कंठ काठा बैठग्या। आसै गांव रा मिनख मिनटां में मतो ढाय दियो कै केस अब कोनी करणो। ईं रीस में दांत पीसतो खींयो घरां जाय सोयग्यो।

मसाणा में खोद्योड़ा खाडा में केई बोरी लूण री खळकाय दी। जीवता सांढ रै लाठ्यां री ठरकावता बै सागैसाग मिनख आगै हुय अधर-अधर, कंवळा-कंवळा हाथ लगाय ल्हास कबर में पधराय दी। नहाय-धोय जळझूलणी इग्यारस नै मिंदर सूं चरणामृत लेय घरां हरे राम-हरे राम करता जावै जियां लोग आप-आपरै घरां जाय बड़्या।

सरपंच रै खिलाफ पंचां री बैठकां में मुकदमो चालतो रह्यो। खींयो अर भीका बाबा भेळै जिका दो-च्यार जणा आस राख’र सांढ मारबाळी बात रो गांगरत राख्यो, बांनै पंचां धोदा देय-देय इसा सवाल पूछ्या कै बै बोलबाला रहग्या। राज-तेज, कोरट-कचेड्यां, बैंक-लोन रा अत्ता सांवठा काम बां दिनां लगोलग आयग्या कै सगळा बां में रूधग्या। हताई में बैठ्या कदै-कदै खींयो दरजी का भीको बाबो सांढ री हत्या री बात कह बैठता जद पाखती बैठ्या बांनै संकता-संकता देख’र कैवता— अजी, आजकाल शहरां में आयै दिन बीनण्यां री घांटक्यां मोस’र मार नांखै। आं बातां में कोई आणी-जाणी है?...अर हताई बठैई खिंड जावती।

बीं रात आंधी रो सांतरो संसाड़ माच रह्यो हो। आखी रात झंखड़ बाजै हो अर कणाई-कणाई सूंटै रै सरड़ाट में आखो गांव धूजण लाग जावै हो। सगळा आप-आपरा घरां में नैना टाबरी नै छाती रै चेप्यां कहाण्यां कह-कह बांरो डर भगाबा रा जतन करै हा। रात रा बीं घोर अंधारै में हाथ नै हाथ नीं सूझै हो अर ना कान पड़्यो कीं सुणै हो। आंधी रा फटकारां सागै खिंवती बीजळियां रा पळका पड़ै हा...टळक-टळक झाड़ी सूं बोर झड़ै जियां कीं ताळ मोटी-मोटी छांटां पड़ी।

दोरी-सोरी रात सिरक्यां पछै लोग दिन ऊग्यां बारै नीसर्‌या। आंधी री ठौड़ दूजी बात रो धपळको आखै गांव में धपळ-धपळ करतो फिरग्यो।... भीको बाबो रामशरण हुयग्यो अर खींया दरजी री साळती रा सगळा पूर-पल्ला बळ चुक्या हा। खींयो खुद बारणै में बेचेत पड़्यो सिसकै हो। बींरा माथा ऊपर खून री डिचकी जम्योड़ी ही अर आंगणै में खून रो तालरो भर्‌योड़ो हो।

मूंढां जित्ती बातां। कोई कैवै हो—भीका बाबा रो हार्‌टफैल हुयग्यो। कोई कैवै हो—बाबा नै घांटकी मोस मार नांख्यो। बापड़ै री आंख्यां बारै आयगी। बै रा बै सागण धणी गांव में बड़’र खींया नै आपरी जाण में पधरायग्या। ईं बापड़ा री किस्मत चोखी ही जद जीवतो रहग्यो। नहीं जणा राखस आप कानी ऊं सफा मारने गया हा!

दूजोड़ो बोल्यो—म्हनै बां मिनखां रा काम लाग्या।

—कीं रा?

—कीं रा कांई? दो दिनां ऊं गयोड़ा लादूजी सरपंच अर गोपियो काल रात नै गांव पूग्या हा।

चालती हताई में अेक जणो आय ऊभग्यो जद सगळा च्याऊं-म्याऊं चुप हुय काठी मून धारली। आयो जिको बोल्यो— अठै कांई बैठ्या हो? लादूजी री बैठक आगै सगळा जणा भेळा हुय मेल्या है। भीका बाबा री बैकुंठी रो सगळो खरचो लादूजी लगाबा नै तैयार है। बाबा रै आगै-लारै कोई कोनी; आपांनै करणो है। कोई जोगो हुवै जिकोई खरचो लगा सकै। चालो! ऊठो। कोई आगै हुय काम करै जिकैनै सुधारणो चाइजै।

लादूजी री बैठक आगै मिनखां रो थट्ट लाग्योड़ो हो। लादूजी चारूंमेर निजर पसार कीं उणमणा-उणमणा बोल्या—म्हैं आज तड़कै आयो जद ठाह पड़्यो भीको बाबो रामशरण हुयग्यो। बाबो साधु हुवै ज्यूं हो। आपांरो कीं लियो नीं। कीं-न-कीं आपणी सेवा करतो। प्याऊ में प्राण दे दिया। इसा भगत आदमी रो आपां कीं हीड़ो नीं कर सक्या। म्हैं सरपंच हूं। म्हारी पागड़ी सगळां रै पगां में रैवै। खरचो लगावण नै म्हैं तैयार हूं। बैकुंठी जोर की काढ्या। आपांरै गांव रो नामून निसरसी अर आपांनै पुन्न हुसी जिको न्यारो।

सरपंच री बात सुण्यां लोगां री घांटक्यों हाली। जबानां चाली—खींया रो कांई करां? थाणै में ले चालां कांई?

लादूजी आगै री बात शुरू करी— थाणा-थपाणा, अस्पताळां रा चक्कर में पड़सां जित्तै ईं गरीब रा प्राण निकळ जासी। आपांरै बापड़ो अेकाअेक दरजी है।

अब फोड़ा पड़सी। म्है टेसण टैक्टर भेज’र कम्पोटर नै बुलाय लेवूं। पाटा-पूळी घरां बैठ्यां करा देवूं। थे मोट्यार बाबा री बैकुंठी रो काम ढबसर करावो।

गांव में लादूजी रा गुण गावता लोग ईं पुन्न रा काम में आगै हुय-हुय’र मदद करी। कोई बोल्यो—लादूजी मिनख जबरो है सा। सगळां रै आडो अड़ियै-वड़ियै आवै।

इयां कर परो सगळो काम सोळा आना सही हुयग्यो। हुवणवाळा काम गांव में पछै भी हुयां गया। लादूजी रो घोटो पूजीजण लाग्यो। बगत आयां सरपंच सूं प्रधान बणग्या। भीका बाबा अर खींया रै कोई आस-औलाद कोनी ही। लादूजी बाबा रै नांव सूं चंदो भेळो कर्‌यो। कीं पइसा पंचायत सूं लगाया। पंचायत रो खरचो दिखाय गांवाई काम वास्तै अेक कमरो भीका बाबा री झूंपड़ी री ठौड़ करवा दियो। अेक कमरो अर अेक बैठक खींया री घर री ठौड़ करवाय दिया।

गांवाई चंदा अर पंचायत रा सीर सूं बणीज्योड़ा मकानां में लादूजी नीं रैवै तो मकान अर गांव री ठौड़ सूनी रह जावै, बात बै दो-च्यार बार लोगां नै सोचाई। दिन में प्रधानजी रो मांचो तळाव पाखती कमरा, भीका बाबा री झूंपड़ी री ठौड़ ढळै। रात रा खींया री जमीन में बण्योड़ा मकानों में महफिलां जमै। गांव रै भळै रा प्लान बणै। मौको आयां बै लाई भलो करता जेज नीं करै।

कदै-कदै रोही में रुळतो-रुळतो खींयो गांव कनै आय जावै। उघाड़-पुघाड़ बगनो हुयोड़ो। जठै बैठै बो अेक बात कैवै—ईं गांव में दो बैकुंठ्यां जोर की निकळी। अेक भीका बाबा री अर अेक सांढड़ा री। दोनों नै मार’र लादू सरपंच काढी। और कांई ठाह कित्तां नै मार-मार बैकुंठ्यां काढसी।

लादू प्रधान अर बींरी मंडळी रा लोग खिलखिलाय हंसै—वाह रै वाह गैलिया! आंतरै मर। कठैऊं बळ्यो है। सगळै सिड़ान कर दी। टाबरां रा काळजा फाड़ नांखसी नाजोगा राखस। ईनै देखतां आपांनै डर लागै।

खींयो पागलपणै में हंसै—अरे लादूड़ा मिनखमार ऊं थांनै डर कोनी लागै? म्हारै ऊं डरो?

लादूजी रो मूंढो उतर जावै। बो धुरकारै—ठोको रै ईं मुरदा रै। हुक्म सुण’र कदैई कोई बीं गैलै रै कनपटी में ठोक’र गुड़ाय देवै।

खींयो ऊठ’र भाजतो-भाजतो अेक बात कर्‌या करै—अरे राखस! और कित्तां री बैकुंठी काढसी? लादूजी सांढ है! सगळां नै मारसी। ढांह...ढांह मूंढा सूं सांढ री जियां दड़ूकतो बो लादूजी सांम्है थूकतो, हंसतो रोही में भाग छूटै। पाखती बैठ्या लोगां नै इयां लागै जाणै लादूजी नीं हुय, कोई मारणो सांढ आंख्यां काढ राखी हुवै! लोग कणाई तो लादूजी सांम्है देखै अर कणाई भागता खींया नै।

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : मनोहरसिंह राठौड़ ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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