जेठ रो महीनो। सिखर दोपारो। गोहिरो उतरण वाळो टेम। आखो गांव तंदूर दांई तपै। अैड़ै में सुरजो गळी परलै कमरै मांय सूत्यो। दोनूं छोरा आंगणै परली कोठड़्यां मांय न्यारा-न्यारा सूत्या। अेक में कासी अर दूजै में महाबीरो। दोनूं तीस पार। दोनां में दो साल री ल्होड़-बडाई। कासी बडो, महाबीरो छोटो। सिर में धोळा दोनां रै चिलकै। सुरजै छोड गांव री दीठ में छोरा कोनी रैया, आदमी बणग्या। अर ब्याव री दीठ सूं पक्का ओवरेज होग्या। पण अजे आस कोनी टूटी। बियां आसा अमरधन होवै। इणी सारू तीनूं न्यारा-न्यारा सोवै। स्यात अेकांत में धन सौरो सौरीज्यै।

बस तीन जणा है घर मांय। पड़ोसी घुमानणी री कांकरी फेंकै भींत उपरांकर। सुरजै री लुगाई मर्‌यां पाछै घर जाबक बदरंग होग्यो। लाल गाबै रै नांव माथै बाखळ मांय हड़मानजी रै थान पर फरूकती धजा बची है। हां, अेक छोरी ही। मीरा। ब्याही-थ्याई। जकी छव महीनां रो छोरो छोड मां सूं पैलां राम नैं प्यारी होई। छोरो दादेरै रेवै। बार-त्यूंहार नानै कन्नै आय’र तीन रा च्यार करै।

सुरजो साठ रो है। पचास री उमर में रंडो होयो। लारलै दस सालां सूं इण घर मांय विधुर रेखा पर दो कुंवारी रेखावां मिल’र जको त्रिभुज बण्यो है उणरो भंजन हाथी रो पग होग्यो। केई दिन तो सूरजै सट्भुज रा सपना देख्या। क्यूंकै उण जुग में दूजबरां रो कीं प्रतिसत हो। और नीं तो दूजबर नैं दूजबर मिल ज्यावती। पण होळै-होळै बो जुग सुरजै रै हाथां सूं तिसळग्यो। आज तो दूजबर अर अधखड़ लुगायां खातर अखन कंवारां री लेण लागरी है। दूजबर नर रिजेक्ट होग्यो। तीजबर-चौथबर मादा री तार आयगी। क्यूंकै अेकबर नर बां रै बारणै झोळी मांड्यां खड़्यो है। अैड़ै में सुरजो दड़ मारग्यो। खुद रो जिकर छोड दियो। होळै-होळै सपनो मरग्यो। पण बीं री जग्यां नूंवा सपना जलमग्या। अब आठूं पौर उणरै कानां में दो जोध-जवान बीनण्यां री पाजेब खणकबो करै। हर बगत उण री आंख्यां री देळ्यां लाल जोड़ै में लिपटी दो हूर बधारीजबो करै।

अेक सपनो मरग्यो तो कांई हुयो। अै सपना के छोटा है? आं मांय भोत माल है। इत्तो कै सुरजै नैं तो आखी उमर नीं खूटै। फेर, उमर बची किती’क है। पिचहत्तर तो सगळी होवै। उण मांय सूं साठ बरत्यां खड़्यो है। बियां देखां तो मैदान मार्‌यां खड़्यो है सुरजो। पंदरा तो सपना फाकतो-फाकतो कूद-कूद टिपा देसी।

सुरजो चित्त सूत्यो है। उणरी आंख्यां री पुतळी फड़कै। स्यात कोई सपनो चालै। बां सपनां रो सपनो “कासी री बीनणी आंगण में काम लागरी है अर महाबीरै री बाड़ै गई है। दोनूं बीनण्यां कित्ती फूटरी। इंदर री परी-सी। आंगणै री ओप। सुभाव री सील। बोलै तो कानां में इमरत घोळै। म्हनैं बाबो कैय’र बतळावै। बड़ी ताबै आई है नीं। हजारी उमर होवै बिचावलै री। किसी’क हंसणी-सी छोर्‌यां दिराई है बापड़ै। …अैड़ी तो सपनै मांय कोनी दिखै ही। पण वादो आयां सौ-कीं होवै। तिलोध री बात है। फेरां-रात टळै कोनी। गादड़ै री तावळ सूं मतीरा कद पाकै। बो तो आपणो मन…ऊं…ऊं… ऊं… अरैर्र्‌र्‌र्‌!”

सुरजै मुंह पर हाथ फेर’र पसवाड़ो फोर्‌यो। बो पसीनै सूं हळाडोब हो। दुराजै री कच्ची छात में चिड़ियां रोळो मचा राख्यो हो। उण उचटती नींदां मांय पोतियै रो फटकारो दियो। चिड़ियां रो बरणाट बाज्यो। पण जावती-जावती नींद में तो घाटो बगायगी। बो बैठ्यो होग्यो। पोतियै सूं मुंह रो पसेव पूंछण लाग्यो। इण दौरान बीं री आंख्यां दुराजै री बोदी छात मांय गडगी। जकी मांय चिड़ियां रा आलणा आलणा हा अर बां मांय जोड़ा आपरै बचिया नै चून देवै हा। बचिया चींचाट करता चून लेवै हा। हर आलणै मांय नर-मादा री बंतळ ही। अर हर आलणो अेक हांसतो-खिलतों घर हो। बो पंखेरुवां रै भर्‌यै-भतूलै परिवार मांय डूबग्यो। अर जद बारै आयो तो खुद रै उजड़ घर नैं देख’र उदास होग्यो। उणरै मुंह सूं निकळी “घर तो लुगाई रो होवै।”

इणी अळोच रै दौरान किवाड़ां पर थापी लागी अर होरण बाज्यो। “कोई बटाऊ है,” बो झट देणी खड़्यो होयो। “कुण होसी इण कुबेळै? इसै बगत तो मुरदै नैं बारै कोनी काढीजै। भोभर बरसै।” सोचतो-सोचतो बाखळ मांय आयो “कोई रिस्ताळो हो सकै… हां हो तो सकै…।”

आं सालां में कुत्तै रा पग बाज ज्यावै तोई उणनैं रिस्ताळो दीखै।

“टींगरां नैं जगावां। मुंह-मां धोय’र आळस उडा लेवै, जकै सूं देखणियै नैं की चेळकै में दीखै।”

इणी दोगाचींती में बो बारी-बारी दोनूं कोठड़ियां में बड़्यो। घोर नींदां में सुत्या छोरां नैं घथोळ्या। जागतां पाण छोरा गळै पड़ग्या, “थानैं घणी बीनणी भावै के? पड़्यो नीं रैयो जा मांचलियै पर। जक लेवो लेवण द्‌यो। साठी बुद्धि नाठी होगी। किवाड़ बाजतां बटाऊ दीखै अर बटाऊ दिखतां बीनणी। बावळा होवोला छेकड़। सांकळ घलसी। जावो खोलियावो किवाड़, कद पों-पों होवण लागी। हुवैलो कोई चंदाळो।” कासी दूसरै मांचै पर आडो होवतो बोल्यो।

महाबीरो घड़ै कन्नै बैठ’र मुंह पर ठंडै पाणी रा छाबका मारण लाग्यो।

सुरजो बोलबालो दुराजै कानी चाल पड़्यो। जाय’र कुंटो खोल्यो तो सैतरो-भैतरो होग्यो। अेक बोलेरो अर अेक कैंटर खड़्यो हो बारणै आगै। “दो साधन?”

काळजै में खरणाटो-सो पाट्यो। पण बो पग रोप्यां खड़्यो रैयो। बोलेरो सूं तीन लुगायां अर सात आदमी उतर्‌या। सुरजै नैं ठाह नीं पड़्यो के कद उणरा धूजता हाथ बां साम्हीं जुड़ग्या। उण तो दांतरी तद तिड़काई जद बां उणरै जुड़ेड़ै हाथां रो रामरमी सूं जबाब दियो। लुगायां में अेक अधखड़ अर दो जोध-जवान ही। ईयां कै अेक लुगाई अर दो छोरी, पण ही तीनूं फूटरी। सुरजो देख’र आका-बाका भूलग्यो “अै इंदर री परी-सी कुण उतरी है?” उण तो अैड़ी लोककथावां रै बिरतांत मांय सुणी। आज साम्परत लख’र छकड़ीगम हो। पण लसकर उणरी समझ सूं बारै हो। उणरै भीतर सवाल-जबाबां री लहर उठै ही। पण बात कठैई अेडै नीं लागै ही। इणी दौरान बो बोलेरो लारै खड़्यै कैंटर रै च्यारूंमेर अेक गेड़ो काटग्यो। कैंटर मांय लद्‌यै सामान पर उणरी निजर गई। “औ सामान? …टणक, सूटकेस, सोड़िया-रिजाई, पहरण वाळा गाबा… इणरै अलावा और अणसैंदो सामान..? के बिरतंग है औ..? …समझ में कोनी आवै।” बो मांय मांय बड़बड़ायो, “है तो कीं अळबाद। थूं भाळै हो बिसा बटाऊ तो कोनी। आं साथै बटावणी न्यारी है। …आखिर है कुण अै? अर फेर कुण होवो, म्हारै कनै क्यामी आया है अै? जाण नीं, पिछाण नीं। म्हैं तो अेक नैं कोनी जाणूं। म्हारै सारू तो सगळा अटळा है। अै म्हनैं जाणै..? ना, क्यामी जाणै म्हनैं। म्हारै सूं आं रो कद काम पड़्यो हो? …तो पछै कियां मंडग्यो धोळै दोपारे मालो?”

अचाणचक उणरै खांदै पर थापी लागी। बो झिझक्यो अर अेक सवाल साथै उणरै भीतर चालती रील चटकगी “कठै गमग्या सुरजाराम जी?”

उण मुड़’र पाछो देख्यो। अेक पक्कै-सै रंग रै जवान मुळक’र हाथ मिलावण री गरज सूं उण साम्हीं हाथ काढ्यो। सुरजै मर्‌योड़ो-सो हाथ उणरै हाथ में सूंप दियो। उण पकड़’र दो हळका-हळका झटका मार दिया। स्यात उणनैं ठाह हो कै निगर मार्‌यां हाथ उणरै हाथ में आय सकै। इणी क्रम मांय बो बोल्यो, “सुरजाराम जी, चौकन्ना होवण री बात नीं है। म्हे राजस्थानी फिलमकार हां। फिलम बणास्यां। जकी री सूटिंग थारै गांव मांय होसी। अै तीनूं लुगायां फिलम री हिरोइणां है, जिणां कानी थे टोर बांध राखी है। अर थांरै कन्नै इण सारू आया हां कै म्हानैं पांच-सात दिन बासो चाइजै। दो-च्यार जगां बूझ्यो तो सगळां थारो घर बतायो। इण सारू अरज है कै आप म्हानैं पांच-सात दिन खातर आपरै घरां जगां देवो।”

सुरजो अेकर तो सिर कुचरतो बोल्यो, “म्हारो घर कियां बतायो थानैं? गांव मांय के म्हारो घर है? बतावणियां के सरकीवास है? पण म्हैं जाणूं कियां बतायो।”

पण इण दौरान उणरी आंख्यां रै कैमरे रो फोकस तीनूं हिरोइणां पर हो, जिणां पर बो बारी-बारी फ्लैश गेरै हो। बां तीनुवां मिल’र सुरजै रै रिसाणै सवालां पर डस्टर फेर दियो। उणरै भीतर अेक मीठो रीळो-सो चाल्यो अर बो लवा फोरग्यो, “घर थारो है। चावो बित्ता दिन रैवो। घर माणसां खातर होवै। साधन भीतर लियावो, बाखळ मांय थाम द्‌यो। ...घर घणो ठाडो है। करो न्हावा-धोई। अर किणी चीज-बस्त री जरूरत होवै तो संको ना करियो। डोळ सारू मदत नैं त्यार हूं।” कैय’र बो बाखळ कानी चाल पड़्यो।

उणरै लार रा लार दोनूं साधन बाखळ मांय बड़ग्या। तीनूं लुगायां आंगणै मांय चली गई। दोनूं छोरा (कासी अर महाबीरो) देख’र भेळा-भेळा होया। संकाळू हा। पण संस्कारित हा। मैमान री कदर जाणै हा। झट मांचा ढाळ दिया। दरी बिछा दी। महाबीरै बिराजण री अरज साथै मनवार करी। जद तीनूं निस्ताई सूं बैठगी तो कासी अेक चमचमावती स्टील री ट्रे बां रै आगै करी जकी मांय ठंडै पाणी हूं पोळा-पोळ तीन लांबा-लांबा कीमती काच रा फूटरा गिलास हा। बां लांबी भुजावां पसार-पसार अेक-अेक चक्या अर पुहुप री पांखड़्यां जैड़ै पतील होठां रै लगा लिया। बांरी सारस सरीखी लांबी गरदनां तणगी। महाबीरै टकटकी बांध दी। स्यात बांरै पारदरसी कंठां सूं ढळतो पाणी उणनैं दीखै हो।

दूजी कानी कैंटर सूं सामान उतर-उतर आंगणै मांय आवण लाग्यो। आंगणो सामान सूं छलीजग्यो। नूवों-नकोर सामान। फिलम वाळां रो चालतो-फिरतो घर। देखणियै री आंख चुंधियावै। कूणै खड़्यो सुरजो हिप्नोटाइज होग्यो। उणरो हीयो पिघळ्यो। बो खुद सूं परनै हटग्यो। खुद सूं ऊपर उठग्यो। उणनैं करंट-सो मैसूस होयो। धड़धड़ी-सी आई। छिण उण सारू तीव्र सौंदर्यानुभूति रो हो। उणनैं घोट-सी आयगी। पण साकार नीं होवण दी घोट नैं उण। मांय मांय दाबग्यो। डिग्यो कोनी। क्यूंकै खुद पर करड़ो काबू हो उणरो। जकै रो कारण, लांबो अभ्यास हो। क्यूंकै इण भांत रा इमोसनल छिण ठाह नीं कित्ता टिपाया है काळजै मांयकर उण। उणरो काळजो सौंदर्यात्मक छिण रो गेलो बणग्यो। रियाज करता-करतां उणरो कंट्रोलिंग-पावर इत्तो बधग्यो कै बो उण छिण रा अैनाण तकात डील रै किणी हिस्सै पर नीं मंडण देवै। पण फिलहाल बो छिण उणरै अंतस मांय लहरीजै हो। उणनैं लाग्यो, जाणै बो अबी-अबी बेटो ब्याह’र बावड़्यो है। अै सात-आठ धोळ-फूलिया जिका बाखळ मांय बैठ्या है, बीनण्यां साथै आया है। अर अै बीनण्यां पंजाबी सूट पहर्‌यां आंगणै में तेरै मुंह आगै बैठी है। अर आंगणो दीखै है दायजै सूं भरो पड़्यो है। अर सागाळी? अचाणचक उणरै काळजै ‘चुबक’ देणी-सी होई अर इणरै साथै उण छिण रो विस्फोट हुग्यो जकै में बो बीजी दुनिया मांय जाय बड़्यो हो। बो खुद रै ऊपर सूं तळै आयग्यो अर परनै सूं पास। अब वो अेक सीधो-सादो सुरजो हो, जको सामान जचाण मांय बां री मदत करै हो। बां मैं घर मांय सिफ्ट होवण री हिदायत देवै हो। घर रै कूणै-कूणै सूं परिचित करावै हो बां नैं।

दोपारै सूं पैलां जको घर भूतां रो बासो हो, बो छिप्यै सूं पैलां-पैलां देवां रो बासो बणग्यो। देखतां-देखतां जंगळ में मंगळ होग्यो। हरचंदपुरी लागगी। घड़ी अेक पैलां जको मून पसर्‌यो हो बो भारीज’र बठै बंतळ री जाजम बिछगी। रोवतो घर हड़-हड़ हांसण लागग्यो। जकी त्रिभुज नैं सुरजो अरसै सूं भांगणी चावै हो बा अचाणचक आपोआप भांगीजगी। आज किन्नै सूं कोई कांकरी नीं आवैली। सोच’र सुरजो अेकलो मुळक्यो।

इत्ती देर मांय तीन, दसां मांय अैड़ा घुळग्या जाणै जुगां रो जूनो घोळ है। बै घड़ी-अेक में रचळ-पचळ होय’र अेक हांसतै-खेलतै सांझै परिवार में कनवर्ट होग्या हा। साच्याणी लागै हो जाणै सुरजै रो परिवार है औ। परिवार नियोजन नै धत्तो बतावतो परिवार। जकै में दो बेटा परणायोड़ा अर सात कुंवारा। अर खुद रंडो नीं है बो। क्यूंकै नौ बेटां री मां बीनण्यां बिचाळै बैठी है, जकी रै च्यारूंमेर दूध पर बिलाई ज्यूं सुरजो गेड़ा काटै।

बां नैं आवतां नैं ठाह पड़ग्यो कै सुरजै रो घर मैनेजर (लुगाई) विहूणी गरीब संस्था है। जकी में ना वैवस्था अर ना बजट। सौ-कीं टूट्यो-टूट्यो, बिखर्‌यो-बिखर्‌यो अर खाली-खाली है। होवण रै नांव पर बठै फगत खुली जगां अर तीन जीव है। इण सारू बां मांय सूं अेक जणो कैंटर लेय’र बाजार गयो अर छिप्यै सूं पैलां-पैलां रासन-पाणी लेय’र आयग्यो। सात दिनां रो इक‌ट्ठो सौदो जद आंगणै मांय उतर्‌यो तो घर ब्याव वाळां रो-सो दीखण लागग्यो। आंगणो दीपण लागग्यो। जाणै सिधो उतर्‌यो है अर अबी-अबी हलवाई बैठसी। अैड़ै में सुरजै रै दिल रो द्रवीकरण कोई बडी बात कोनी। इसै में तो बडा-बडा चकरी काट सकै। आंगणै रो बेजां रौब देख’र सुरजो अेडी सूं चोटी तांई करंटाइजग्यो। अर संजोग देखो, करंट उणनैं उण दिसा कानी लेयग्यो जकी कानी जावण खातर बो कै ताळ सूं तुड़ावै हो। ...बो दोनूं हाथ कड़तू रै लगाय’र अधखड़ पर झुकग्यो। बा मांची पर बैठी ही। बस दोनां रै मूंढां रो आंतरो सूत-भर। सांस सूं सांस भिड़ै। अैड़ै में बो धूजतो हाथ सामान कानी कर’र गळगळो होवतो बोल्यो, “औ क्यामी ल्याया? म्हैं के उजाड़ में बैठ्यो हूं। गरीब हूं तो कांई? गांव रो भौमियो हूं। आखिर घर बांध्यां बैठ्यो हूं। गजबियो, मेरो के डांग पर डेरो है? रोटी तो खुवाय सकूं आया-गया बटाऊवां नैं।”

“आपणी रोटी बांट्योड़ी कोनी सुरजाराम जी..! थारो है सामान। आपणो सांझो है सौ-कीं। अर अब म्हे सात-आठ दिन थारा हां।” रेसमां अधखड़ हिरोइण, जकी री उमर पचासेक साल ही, हाथ जोड़तै थकां मुळकती बोली।

मुळकाण अर अपणायत सुरजै रै आर-पार होगी। हाडां बैठगी। हेत रै माछर कसूतो डंक मार दियो। आखो डील संक्रमित होग्यो। आर.बी.सी. टूटी। खड़खड़ो चढ़ग्यो। इस्यो कै उपरांध घाल्यां जक नीं पड़ै। दोनूं हाथ उठ्या जरूर। पण उठ’र रैयग्या। सझगी। भोत सूंणी सझी। अर के ठाह कियां सझी, पण कियां सझो। सुकर है गालां पर कोनी फिर्‌या हाथ। पछै तो स्यात इण घटना पेटै सोच’र सुरजै रो काळजो कांप्यो हुवैला।

दिन छिपग्यो। लोटिया चसग्या। अेक-दो सुरजै रा, बाकी बां रा। आखो घर जगमगा उठ्यो। सैंचन्नण आंगणै में दरी बिछाय’र कासी-महाबीरै समेत च्यार जणां अेक बडी-सी परात रै च्यारूं-मेर बैठग्या। सीमा (छोटोड़ी हिरोइण) खड़ी होई। कुंट में धरी बोरी सूं भांत-भांत री सब्जी री च्यार-पांच थैली काढी अर परात कनै छोड दी। इणरै पछै उण अेक बेग सूं च्यार पळपळांवता छुरिया काढ’र बां नैं अेक-अेक पकड़ा दिया। छुरियो पकड़ती बरियां महाबीरै रो हाथ मूंगफळी-सी आंगळ्यां रो परस झांप ल्यायो। सीमा नैं ठाह पड़्यो’क नीं, इण बात सूं अणजाण महाबीरै उण परस नैं सहेज’र दिल री जेब में घाल लियो। अर इण दौरान बो सुरजै री भांत खुद सूं थोड़ो-थोड़ो ऊपर उठै हो, थोड़ी-थोड़ो अळगो जावै हो। जद स्यात उणरी आंगळी कटगी। अर इण अंतस री द्रवण अवस्था रो लाभ? अै-है-है! के लेखा है! बाप-बेटां नैं मालामाल कर नाख्या अण अवस्था। …सीमा भाज’र आई। झट आपरी चुन्नी री लीरी फाड़’र आंगळी रै बांध दी। इण दौरान दोनुवां रा नाक सूं नाक भिड़्या। सांस सूं सांस टकराई। सीमा रै सांसां रो भतूळियो उणरै फेफड़ां में जाय’र विलीन होग्यो। जीवन में पैली बार महाबीरै जनानी सांस री खुसबू रो स्वाद चाख्यो। उणरो आखो डील झरणा उठ्यो। अचाणचक देवी री भांत बा उणरै मांय बड़गी। बा उणनै आछी लागण लागगी। जियां खुदरी लुगाई लाग्या करै। बा अब बारै सूं बेसी उणरै मांय ही। सीमा नै कैड़ो लागै हो, उणनै कांई ठाह! बीं री बा जाणै। उणरी तो अैसी-तैसी होयगी ही।

तीवण सीजग्यो। अब रोटी री बारी ही। रेसमा खड़ी होई। कूणै मांय पड़ी परात साम्ही। सुरजै काणै कोइयै देख्यो। उणनैं रेसमा मांय साम्प्रत खुद री लुगाई दीखी। बो बाखळ मांय गेड़ा काटण लागग्यो। बा आंगणै बिचाळै बैठी आटो ओसणै ही। बो आवतो-जावतो चोर दीठ सूं उणनैं निरखै हो “बा सागण है। बा उमर। बा ऊब। फगत पहराण दूसरो है। इणनैं घाघरियो-ओढणियो पहरा द्‌यो, कासियै री मां है।” बो मांय मांय बड़बड़ायो।

“आ ज्यावो, रोटी जीमल्यो सुरजाजीऽऽ।”

आंगणै सूं अेक जनानी हेलो आयो अर उणरै कानां में मिसरी-सी घोळी, पण साथै हेलै रै छेहलै सबदां इण मिसरी मांय कीं लूण रळा दियो। जकै रै जबाब में बो मांय मांय बड़बड़ायो, “किसी सुरजा जी... स्याणो कोनी कैयो जा?” अर पछै बो खुद री इण बड़बड़ाट पर कणताइज’र भेळो-भेळो होयो अर खुद सूं बोल्यो, “जाबक ईयां कोनी कर्‌या करै।” इणी ढोवा-मंडी में बै सुरीला कंठ ओरूं सुणीज्या, “सुण्यो कोनी के सुरजा जीऽऽ, रोटी ठंडी होवै।”

“हां, आयो-आयो।” कैवतै थकां बो बाखळ सूं आंगणै कानी चाल पड़्यो। आंगणै मांय दरो बिछाय’र सगळा कलाकार जीमण बैठग्या। बां रै बिचाळै कासी अर महाबीरो बिराजग्या। अर सारै ढळी मांची पर सुरजै री थाळी लागगी, पण सुरजो मांची ऊपरां सूं थाळी चक’र चूल्है कन्नै रोटी पोंवती रेसमा रै गोडै सारै बैठतो बोल्यो, “आपां तो टाबरां बिचाळै कोनी बैठां, अठै ठीक हां।”

बा तिरछै नैणां देख’र मुळकी।

“बैठो। थारी के रोक है। ...फेर, पाका-पाका अेक जगां ठीक हां। जोड़ी तो सायनां री जचै।”

उण सुरजै रै भोळै मन मांय उल्टी बींडै जड़ दी। मजाकां-मजाकां में उणरै मन रै अड़ावै में सपनै रो बीज गेर दियो। जको उणरी आंख्या आगै अंकुरित होय’र दो पत्ता काढग्यो। दूजी कानी जीमता कलाकार भीतर सूं उठती हांसी पर काबू पावण री कोसिस में हा।

जद सगळा जीम लिया अर सोवण रो सुआंज कर्‌यो तो सुरजो बोल्यो, “सगळा अेक जगां सोयस्यां। बाखळ मांय मांचा घालल्यो।”

“कठै कोनी जावां ताऊजी, फिकर ना करो। अेक जगां सोयस्यां सगळा।” अेक मांची पर लेट मारता दो कलाकार छोरां मांय सूं अेक बोल्यो अर पछै उण आपरै साथी रै टांगां मांय टांग उलझाय’र बीं रै कान में “अर ताई नै थारै सागै सुवाणस्यां” कैय’र बात पूरी करी। इणरै साथै दोनां री हांसी रो भतूळियो उठ्यो।

सुरजो चौकन्नो होयो, “हांस्या कियां छोरो?”

“म्हे तो म्हारी बात पर हांस्या ताऊजी..!”

बाखळ मांय मांचा ढळग्या। कुरसी-मूढा चकीजग्या। सीमा अेक ठाडै बगसै सूं दस-बारह बैडसीट काढ’र ल्याई। राधा (बडोड़ी हिरोइण) बिछावणै में सीमा री मदद करी। रेसमा बां रो डाइरैक्सन करै ही। जियां सासू बहुवां रो करती हुवै। सुरजो हाथ मांय कळी चक्यां अेक पासै खड़्यो रेसमा नै निरखै हो। कासी-महाबीरो निरखै हा। पण रेसमा नैं नीं। हां, बां री दीठ में संयम बल्ले-बल्ले। मजाल है सींव रो अतिक्रमण करज्या। अर फेर, महाबीरै री आंगळी तो लाल पट्टी में अजे चब-चब करै ही। अर कासी काण-कायदै अर मरजादा री मूरत। समाज-संहिता रो प्रोफेसर। इण सारू जेठ-बहू रै नेमां नैं पाळतै थकां उण सीमा कानी आंख उठा’र नीं देख्यो। बस राधा पर फोकस रैयो अर पछै राधा के टाबर ही। उणरै फोकस रो पडूत्तर बराबर प्रति फोकस सूं देवै ही।

दिनुगै नौ बज्यां फिलम रो मुहूरत है। अठै ई। इणी घर मांय। इण मौकै गांव रा मौजीज पधारैला। पण मुहूरत रा सगळा नेगचार सुरजो पूरैला। इण भांत रो सनमान अर बडेरचारो जिनगाणी में पैली वळा पावैलो सुरजो। सुरजै नैं जद इणरी भणक लागी तो घणी देर अपसैट-सो रैयो। क्यूंकै आगै ठांव किडो’क है। उझळग्यो। धरती-पुत्रं रै कुण बणावै हो बडा ठांव। अर फेर के बडा अर के छोटा, सनमान अर पुरस्कार घालण सारू तो आं लोगां रै ठांव बणाया कोनी। हां, अपमान, उपेक्षा अर दुतकारां री बखारी भोत ठाडी है आं रै। अळसूं-पळसूं सौ-कीं नावड़ै इण बखारी मांय। क्यूंकै अै उण अळेवण नैं बारै काढ’र देखै तो कोनी। सौ-कीं खपै आं मांय। सांभर पड़्यो लूण है, पण ओहदो अर आदर नीं खपा सकै अै। सनमान रै फूसकै तळै दब’र मर ज्यावै, जदकै उपेक्षा रै पहाड़ तळै सूं अबोट निकळ ज्यावै अै। आं नैं मारण सारू घणो असिस्ट बणन री लौड़ नीं है, अै तो खुद सिस्टाचार रै ढावै तळै दब’र मर ज्यावै।

दिन ऊगग्यो। सगळा कलाकार मांचां पर बैठ्या चा सुरड़ै। वां रै साम्हीं मूढां पर बैठी तीनूं अैक्टरण्यां चुस्की लेवै। बां री चा-गोस्ठी है। जकी में बै आखै दिन रै कामां री भूमिका त्यार करै। हर कलाकार आपरो सुझाव राखै। अर बीजा उण सुझाव री समीक्षा करै। बां रो जमा निजू प्रोग्राम है।

दूजी कानी प्योर प्राइवेट कांफ्रेंस आंगणै मांय चालू ही। जठै तीन जणां रा सिर जुड्या हा। बै आपरी भावी रणनीति त्यार करै हा।

सुरजो कैवै हो, “आज तो म्हैं नरेगा में कोनी जाय सकूं। इत्तै बटाऊवां नैं अेकला छोड जायो तो ईयां कोनी जावतो, पण अब कतैई कोनी जायो जा।”

“अब के होग्यो..?” कासी जाणनो चावै हो।

“थनैं बेरो कोनी के..? फीतो काटणो है नीं म्हनैं!”

“फीतो..?”

“हां, के कैया करै उणनैं। जद कोई काम सरू करीज्यै उणसूं पैली होवै नीं बो।”

“अछ्या, फिलम रो उद्‌घाटण थारै हाथ सूं होसी के?” कासी हांसतो बोल्यो।

“हां, जको थूं कैवै बो म्हारै हाथां सूं करावण रो जिकर करै हा।”

“तो नरेगा में कोनी जावो आज थे..?”

“आज के जायो जा है। इण मेळै नैं छोड’र।”

पण उणनैं के ठाह हो कै मेळो कासी अर महाबीरो कोनी छोडणा चावै। अर फेर गांव में नीं, घरां आयोड़ो मेळो।

सिर कुचरतो महाबीरो बोल्यो, “जायो तो मेरै सूं कोनी जा ध्याड़ी पर आज।”

“क्यूं, थूं के पड़ बांचसी..?”

कासी कैय तो दियो, पण दूजै पल खुद री गळती पर गिरगराट होग्यो। मांय मांय बोल्यो, “खुद गुड़ खावै अर औरां नैं छुटावै, किसै बेद में लिख्यो है।”

उण झट लवा फोरी। माताळो बंद कर’र गोगाळो उगेर्‌यो, “ईयां करां, आज-आज में के खाटी मोळी होवै। अेक दिन रा के सौ दिन होवै। इड्डो के बिजनिस भिळै। रैवणद्‌यो। किणनैं कठै कोनी जावणो। आज-आज रैस्ट। म्हैं आज लूंगी ल्यावण कोनी जाऊं। अेक दिन में के डाग भूख मरै?”

“डाग तो भूखी है यार। रात लूंगी थोड़ी ही। खासा ऊणी रैयगी।” महाबीरै चिंता जताई।

“तो फेर, म्हनैं जाणो पड़ती खेत..? म्हैं तो खेत कोनी जाऊं आज। डाग काल मरती आज मरै भावूं।” कासी चिट्टो जबाब दे दियो।

“अरे क्यांऊं मरै डाग। क्यामी रोळो मचावो थे। भोत करड़ो जीव होवै औ। डांगां रो मार्‌यो कोनी मरै। मरु रो जिनावर है औ। कोई सिमलै रो कोनी कै भूख-तिस नैं कच्चो होवै। पाणी री तो थैली तकात होवै बतावै इणरै पेट में। तो नीरै खातर कोई न्यारी जगां होवती होसी, जकी में दो-च्यार दिनां रो इस्टोक कर सकै। …अर फेर के उजाड़ में बैठ्यां हां। दो धोबा नीरियो म्हैं घला ल्याऊंलो कठै सूं ई, जे थानैं सरम आवै तो। बियां नीरो मांगणो कोई भीख कोनी होवै। अैड़ो उधारो पायो तो चालतो रैवै जमींदारै में। …राड़ ना करो। बटाऊ सुण लेसी तो सोचसी कै म्हारै पर बाजतो हुसी दांतो। …चालो बारै जाय’र बां मांय बैठां। सोचता हुसी, अेकला के घुसर-फुसर करै आंगणै मांय। …आपणै समाज में बटाऊवां कनै नीं बैठणो बां रो अपमान होवै। अर बटाऊ रो अपमान भगवान रो अपमान होवै बावळो…!”

“अब थमण रो के लेस्यो..? कद लैक्चर झाड़ण लाग्या। …थे चालो। म्हे आवां।

कासी री झिड़की सूं धकीज’र सुरजो बाखळ मांय आयग्यो। सुरजो आयग्यो, पण मन कोनी आयो। बो बियां बेटां सूं सिर जोड़्यां आंगणै में अदीठ खड़्यो हो। उणरो उपदेस चालू हो, पण बेटां नैं नीं सुणीजै। अदीठ देह रो अणसुण्यो भासण आंगणै मांय पसरै हो, “टींगरो! आज खोटी तो कुजरबा होया। आखै दिन रो हिसाबदारो बिगड़ग्यो आज तो। नरेगा… ध्याड़ी… खेत… सगळां री ग्यारस। जकै चूल्है कन्नै टेमोटेम सामान बापरै, जकै नैं चलावण खातर दिन में दस गेड़ा दुकान रा मारणा पड़ै, अैड़ै नगद घर में छुट्टी रो के काम। …और तो और, लूंगी बिना कियां सरसी?”

उणनैं झोक मांय खड़ी सांढ उरणावती सुणीजी। अर बो कलाकारां बिचाळै बैठ्यो कसमसायो। दोगाचींती में उणरै माथै पसेव री बूंदां फूट पड़ी। उण माथै पर हाथ फेर्‌यो। हथाळी गीली होगी। स्सारै बैठ्यो अेक जणो बोल्यो, “ताऊजी, पून चालै, फेर पसीनो?”

अचाणचक सुरजो चिमक्यो। क्यूंकै बो बठै हो कोनी। अर ना अब बथै है। इण सारू उण कीं जबाब कोनी दियो। फगत उण कानी आंख फोर’र रैयग्यो। अर बो पाछो बैवण लाग्यो “डाग आळी कियां करस्यां? कुण घालसी नीरो? अर फेर कठै है नीरो? अर होवै कठै सूं हो? जोड़ो पड़्योड़ो है। पिचाणवैं-छियाणवैं री तरज पर। आखो गांव लूंगी नैं जावै। नीरा’ळा तो बिरळा घर है गांव में। अर बठै आस के करां। बै तो बापड़ा मां रै पेट सूं जबान पर ‘ना’ लेय’र आया है इण धरती माथै। तो इणरो मतलब सांढ नैं आज-आज बरत राखणो पड़ैला। जवान टोरड़ी। भूख नैं कच्ची है। जे कोई अधपाको डगरो होवतो तो दो-तीन दिन री भूख नैं बाळ बराबर नीं समझतो।”

“कठै डूबग्या सुरजा जी। खड़्या होवो। मांचा चकां। कुरस्यां ढळसी अठै। भूलग्या के..? मुहूरत है आज। अर थारै हाथां। जावो न्हावा-धोई कर’र त्यार हो ज्यावो।” अेक कलाकार समाधी तोड़ी।

बो अचाणचक भभड़क्यो। जाणै नींद सूं जाग्यो हुवै। अर नींदां में चालतै किणी डरावणै सपनै री रील टूटी हुवै। बिदकोर ढांडै ज्यूं उणरी गोळ-गोळ खौफ भरी आंख्यां कलाकार रै चैरै पर जमगी। कलाकार भळै बोल्यो, “इयां कांई देखो हो सुरजा जी, नींद आयगी ही कांई?”

अचाणचक सुरजै री चूंधी खुली। बो लजावतो-सो जूती ढूंढण लाग्यो अर पछै जूती पहर’र अंगाड़ी तोड़तो मांची सूं खड़्यो होग्यो। उणरै साम्हीं दो जरूरी काम बिंब-रूप में ऊभा होग्या। अर बां रो टेम अेकल सिर रै दो जुड़वां बच्चां री भांत मूरत-रूप में साम्हीं खड़्यो मुळकै हो। उण कन्नै फिलहाल अैड़ा कोई औजार नीं हा जिकां सूं वो ओपरेट कर’र बगत रै बां सजीव हिस्सां नैं सही सलामत अळगा-अळगा कर नाखै। हालत अैड़ी ही कै अेक नैं बचायां दूजो मरै। सांढ नैं बचायां रुतबो अर रुतबै नैं बचायां सांढ मरै। दोनूं सागै कोनी बचै। क्यूंकै दोनुवां रो बगत जुड़वां है। मुहूरत अब अर डाग नीरो अब मांगै। मुहूरत रुतबो बचावै अर नीरो डाग। जकी काल री भूखी है। ईं सारू पाणी कोनी पीयो। लपांस लागर्‌यो है। झांझरकै री उरणावै। खाली ठाण पर सिर फोड़ै। खूंटै पर गेड़ो बांध राख्यो है। कासी मौरी रा झटका मार-मार दो-तीन बर बिठा आयो। पण भूख टिकण कद देवै। खुदकणी लागरी है काळजै। आखिर बधती केळ है। दो तो दांत है। भूख नैं तो कचेट होवणी ही। क्यूंकै लोह पचै इण उमर में तो।

सुरजै झोक में जाय’र देख्यो तो सांढ रो बुरो हाल हो। बा भींतां रे बटका भरै ही। भूख सूं निताणी सांढ नैं बो बिठावण लाग्यो तो वा चेड़ मानगी। अर अेक हड़बच में डैण रो पोतियो उतार लेयगी। बा तो सझगी कै सिर में नेस कोनी लाग्या। नीं तो कपलो काढ ले ज्यावती।

सुरजै नैं रीस आयगी। उण कासी नैं हेलो मार्‌यो। बो डांग लेय’र धमक्यो अर आवतां टोरड़ी रै पसवाड़ां पर दो फटकार दी। अेक इन्नै अर अेक बिन्नै। डाग दोलड़ी होगी। कसूती अरड़ाय’र दोनूं पासै बटका भर्‌या। पण दूजै पल उण अैड़ी करी कै खा ना कुत्ता खीर। बा आपरै आखै डील रो जोर लगाय’र लारनै अैड़ी तणाई कै देखतां-देखतां मौरी इकतारे रे बेजां कस्यै तार ज्यूं तण’र टरणांवती-टरणांवती बट देणी टूटगी अर डाग रै दोनूं नाकां में लोही रा फूंहारा छूट्या। इणरै साथै उणरी बेड़ी कटगी। बा आजाद हुगी। अैड़ी आजाद कै उणरै हाथ घालण नै जगां नीं रैयी। बा देखतां-देखतां काळै कच्छाळो चोर बणगी। तीनूं बाप-बेटो हाथ मसळ’र रैयग्या। बाखळ में अेकर हाको होयो, “अरै डाग मारैगी रै... डाग मारैगी रै...।”

पण बा तो सपक देणी दुराजै सूं इण भांत तिसळगी जाणै कोई चीकणी साबण हाथां सूं।

लाई सुरजै नैं के ठाह हो कै बैरण इण भांत सपको मार ज्यावैली। नीं तो क्यूं झोक में जावै अर क्यूं मालो मंडै। क्यूं घूघरी खा अर क्यूं बाय होवै। उपरै पिछतावै रो पार नीं हो। इण बगत उणनै खुद पर अैड़ी रीस आई कै जे कन्नै कुवो होवै तो बो छाळ मारतो देर नीं लगावै। उण माथै में मुक्का खाया। गालां पर थप्पड़ मार्‌या, “भैण.. किसी’क या-त्या होई है। टिका’ळी बगत किसो’क मायो टळ्यो है। राजतिलक आळै बगत बनवास! तकदीर तो बडी ल्यायो है सुरजिया! घर में जद सुरग उतर्‌यो, नरक कानी तगड़ दियो। के चोरी कर’र चाल्यो इसी। घर में ब्याह बरगो काम। इंदर रो दरबार बण्यो खड़्यो है घर। लोग मजा लूटै। ...म्हारी फुरणी चकीज री है। वाह री किसमत...।” बो भाजतो बगै हो अर सोचतो बगै हो।

दोनूं छोरा मौरी लेय’र उणसूं पैलां सांढ लारै बम्बूकाट बणग्या हा। डाग फळसै सूं निकळ’र बरवाळी वाळी राह पकड़गी ही। स्पीड तो आगै घणी ही, कीं गंडकां और बधा दी। डाग लारै धूळ रो डूंड पाटतो बगै हो। देखतां देखतां बा तीनू बाप-बेटां री रेंज सूं बारै होगी।

भाजतै-भाजतै सुरजै नैं लाग्यो जाणै आधो सुरजो है उणरै साथै। आधो तो बठै आंगणै में छूटग्यो हो। अर उणनैं लाग्यो कै आंगण में छुटेड़ियो सुरजो रेसमा रे बा’र-बा’र फिरै। ठीक उणी भांत, जियां मोद मोदायोड़ो कोई बडेरो मुरगो आपरी मुरगी रै च्यारूंमेर फिरतो हुवै। अर इणी दौरान आपरा जाया-जलम्या जवान जोड़ां नैं निरख-निरख हुळसतो हुवै। अर उणनैं ईयां लाग्यो कै आंगणै में छूट्योड़ो सुरजो मंच माथै आयो है। देखतां-देखतां उणरी गरदन माळा सूं लदीजगी है। उणरै भीतर गुमेज रो गुबार है अर होठां पर सफलता री मुळक है। अर अब उणरै हाथां में पळपळांवतै कवर री गिफ्ट जैड़ी कोई चीज दिरीजी है, जकी सूवै नाळां सूं जड़ाजंत है। अर अब तो बो आपरै हब्सीयाई नखां सूं नाळ समेत कवर रा चिथड़ा-चिथड़ा खिंडाय’र चीज नैं उणी भांत नागी कर नाखैला, जियां कोई चीतो आप रै अेक झपट्टै में किणी सिकार रो आखो अखर-बखर नागो कर नाखै। ...तो इत्ती तो सांढ लारै भाजतो सुरजो जाणै हो। क्यूंकै और नीं तो मंचां पर चीजां रा गाबा फाटता तो उण देख्या है। जे नेड़ै सूं नीं तो दूर सूं सई। अर खुद रै पल्लै नीं पड़ी तो कन्नै खड़्या नैं अवस पूछ्यो होवैला कै ‘बताई रै भीया, के चज है..?’ पण बो के जाणै कै मुहूरत अर विमोचन मांय फरक हुवै। फिलहाल अै दोनूं अेढा उणरै मगज में हाथी अर अमरूद ज्यूं रळमपळम हा।

पण कासी अर महाबीरै नैं कैड़ो लागै हो, इणरो पूरो-पूरो ठाह तो सुरजै नै हो’क नीं हो कुण जाणै? अर फेर, इण बात सूं कांई फरक पड़ै कै किणी रै मन री कोई जाणै’क नीं जाणै? कोई जाणै तो जाणो, नीं झक मरावो। असली मतलब तो खुद रो खुद सूं होवै। खुद, खुद नैं जाणनो जरूरी है। अर इण जाणन रै सिलसिलै में कासी अर महाबीरो चड़ूड़ी जाणै कै बै दोनूं आधा-आधा आंगणै में आप-आप री लुगायां साथै किलोळिया करता फिरै। अर आधां रो बां नैं ठाह है ई। डाग लारै सांपां रा सिर गांवता फिरै।

डाग? हां, डाग किणी सारू मामूली हो सकै। पण सुरजै सारू गैर मामूली। कासी सांढ-गाडो चला’र घर रो गाडो गुड़कावै। वां सारू सांढ गमणो, रोटी गमणो हो। बडी ओखी बपराई ही सुरजै सांढ। खीरी ल्यायो हो मेळै सूं। चाळीस हजार री। अर चाळीस हजार रो बडो क्रूर इतिहास हो, जकै नैं याद कर’र आज थरणा कांपै सुरजै रा। तीन रिपिया सैंकड़े रै अबढै ब्याज पर काल तांई बेगार और देंवतो रैयो हो सुरजो बोहरै नैं। लारलै साल चूकता कर’र पैंडो छुटायो बापड़ै बेगार सूं। ...आ टोरड़ी भोत मैंगी पड़्योड़ी ही सुरजै रै। जे हाथ नीं आई तो...।

इण सारू डेढ मिनख नैं तो डाग लारै भाजणो भोत जरूरी होग्यो। अर डेढ जिको आंगणै-बाखळ में सिर मारतो फिरै, उणरो कारण तो कोई छोटो कोनी।

मुहूरत आगै आधो घंटो रैयो हो। त्यारियां चालै ही। सगळो गांव बाखळ मांय खड़्यो। लुगाई-टाबरां अर बूढै-जवानां री भीड़ जमी ही बाखळ मांय। अर मौजीज आवणा सरू होग्या हा। तीनूं हिरोइणां माळा बणावै ही। अर गांव री छोरी-छापर्‌यां सैयोग करै ही बां रो। जवान वर्करां री टीम काम पर ही। सगळा आप-आपरो काम संभाळ राख्यो हो। फौजी दांईं ड्यूटी पर तैनात हा। अगूणी भींत स्सारै पाटा सजाय’र फूटरो मंच बणा राख्यो हो। उणरै च्यारूंमेर डनलप वाळी कुरस्यां री कांगणी जोड़ राखी ही अर अेक कानी मूढां री कतार न्यारी ही। इणरै अलावा बैडसीट बिछ्योड़ा मांचा ढाळ राख्या हा। जिकां पर बूढा-बडेरा होको पीवै हा। बां सगळां रै बिचाळै चा-पाणी री ट्रे घूमै ही। प्रोग्राम रै पछै हळकै नास्तै रो प्रबंध कर राख्यो हो।

पण रंग में भंग पड़ग्यो। बै तीनूं बाप-बेटो अठै कोनी हा। कलाकार फीका होग्या। इत्ती भीड़ थकां बां नैं घर सूनो लाग्यो। अैन वीरान। बां देख्यो जाणै बै सूनै घर मांय डेरो लगायां बैठ्या है। बां नैं कणतावण-सी होवण लागी। बां मांय अेक अणजाण्यो मलाल-सो पसरण लाग्यो। बां सोच्यो, जाणै अबी-अबी कोई आय’र थानै ललकारसी “थे अठै के करो, सूनै घर मांय?”

बै फिलहाल मेजबान बायरा मेहमान हा। खुद नैं अेक न्यारै तौर सूं असुरक्षित फील करै हा। बां नैं लाग्यो जाणै बां रो धणी भाजग्यो। बां नैं फीका देख’र, बां री मनगत ताड़तै थकां अेक नौजवान कन्नै जाय’र बोल्यो, “फीका क्यूं होवो? आपणो है घर। म्हे सगळा थारै साथै हां। करावो मुहूरत।”

‘मुहूरत’ सबद सुणतां अबखाई रो दूजो पसवाड़ो साम्हीं आयग्यो, “...मुहूरत तो सुरजाराम जी रै हाथां होवण वाळो है।” बां री समवेत आवाज रो घुरळियो भीड़ मांय बिखरग्यो।

भळै बां मांय सूं अेक जणो गंभीरता सूं बोल्यो, “मुहूरत तो बां रै हाथां होसी। भलाईं कित्तो मोड़ो हुज्या। बां नैं तो उडीकणो पड़सी। भावूं काल बावड़ै बै।”

सुण’र लोगां में घुसर-फुसर होवण लागी। अेक छिलोर-सो छोरो तो मूंढै आगै हाथ देय’र भीतर सूं उठतै हांसी रै डूंड पर काबू पावतै थकां आपरै बेलियां में जाय’र फूट्यो, “भैण.., होई तो बडी है। सुरजै री डाग भाजगी!”

ईंरै साथै बठै हांसी रो भतूळ पाट्यो। अर बात मांय सूं बात निकळण लागगी। लोग आपो-आप कुकड़ियै दांई उघड़ण लागग्या

“हां, बात तो सई है। डाग नैं दिन लाध्यो भाजण नैं।”

“उडीकै ही डाग तो इण दिन नैं।”

“उडीकै के ही साळी, रगड़ देंवती। बा तो सझगी। अेक जणै मोड़ दी ही डाग नैं। नीं तो मूढां अर मांचां मांखर आवै ही। बूढिया टारगेट हा डाग रा।”

“बूढियां री अैसी-तैसी यार..! कोई बधती केळ सीध में आय ज्यांवती तो? बो टींगर तो बाळ-बाळ बंच्यो।” अेक जणो अेक टाबर कानी आंगळी करतो बोल्यो। अर दूजै सुण’र सवाल दाग्यो, “थूं जाणै के बीं टींगर नैं? थनैं ठाह है के किण रो है बो?” पछै खुद जवाब दियो, “घड़सी सुनार रो है। जे बो फेट में ज्यावतो नीं, तो लेणा रा देणा पड़ ज्यावता। कम सूं कम बीस हजार रो खेलो हो। थनैं ठाह कोनी यार, घड़सी रो तो बोपार है औ। बो तो ढूंढतो फिरै इसा ग्राहक। थनैं ठाह कोनी, अेक साल रामकार बामण री बैडकी खुलागी। कदैई खुल्योड़ी ही कोनी खूंटै सूं। गळी में जाय’र सूंडियै चढगी। उण जिनावर नैं के ठाह बापड़ै नैं कै उणरै सूंडियै नैं कोई भुना लेसी। संजोग सूं पाणी रो घड़ियो लेय’र घड़सी री बहू रो स्सारै कर टिपणो होयो। बा इण संजोग नैं खाली कद जावण देवै ही। बैडकी रै बगल में झट घड़ियो पटक’र लांबी पसरगी। हाको मचा दियो। देखतां देखतां बास भेळो कर लियो। घणी बातां में के है। दस किला घी में बात सल्टी। ...तो भीया, टींगर के बंचग्यो सुरजो बंचग्यो बापड़ो। अर सागै बंचग्या अै फिलम वाळा। क्यूंकै इण मैंगाई में घड़सी तो कीं रेट बधाया हुवैला। आज रै भाव में वो बैडकी वाळो केस पचास हजार सूं ओछो नीं है। तो अब फळाल्यो आज वाळै री कित्तै पर बिंदी बैठती।”

किस्सो सुण’र सगळा हांस्या।

बिचाळै अेक जणो बोल्यो, “तो हंच क्यूं मांडणो पड़ै सुरजै नै? क्यूं आंधा नूंत्या अर क्यूं दो बुलाया। तो अेडी चक’र फांसी लेय ली।”

“लेय कोनी ली। देय दी बापड़ै भोळै आदमी नैं।”

“देय कण दी..?”

“गांव देय दी।”

“गांव..?”

“हां गांव। गांव तो थनैं देय द्‌यै। अर नीं मनै तो पिता’लै। गांव रो झांपो काम होवै भीया..!”

“साम्हीं के देखै। लै सुण कियां देदी... सिरफ काल कोनी आया अै फिल्म वाळा। आं नैं फिरतां नैं भोत दिन होग्या। अेक हफ्तो होग्यो आं नैं अठै आवता नैं। आखै गांव री थण खिंचाई कर ली, कोई नीं पावस्यो। अठै तो हारी नैं आक चाब्यो है आं। इण मामलै में आपणो गांव भोत गांडू है देबी। अठै कोई बाळ फाड़गे कोनी देवणो चावै। अठै तो औरां रै घर कानी आंगळी करणी जाणै। अर इणी आंगळी रो सिकार होयो है बापड़ो सुरजो। ...कीं होवो भावूं। अण तो आपरो धरम पाळ्यो है। अर गांव री पत राखी है। पराई मांय पड़णियां दुख तो पाया करै। किणी नैं बासो देवणो नगरी रो धरम होवै। इणसूं साबित होवै कै इण गांव में अेक आदमी तो जीवतो है सुरजो। गांव सुरजै रो है। आपां तो भाव री भाव बेचां। किणी भौमियै री बळै तो बळो। म्हारी के जट खोसै कोई।” बनवारी कैय’र देबी सूं हाथ मिलायो।

ईंरै साथै घेरो बणाय’र खड़्यै लोगां अेक सुर मांय हुंकारो भर्‌यो, “बात सई है। बात सई है। सोनै बरगी है बात।”

“...कोई छाती पर बाळां वाळो दे सकै बासो तो। बियां देखां तो डूब’र मरण वाळी बात है। सगळो गांव अेक पाटी उतरग्यो। सगळा अेक खंदै री माटी। अर कण हीयै में कांगसी कोनी फेरी के आपां के करण ढूक्या हां? कण कोनी सोच्यो कै नटणो ओछो काम है। अर औरां रो घर बतावणो बीं सूं ओछो। अर फेर खांडो घर बतावणो तो ओछैपण री तीसरी डिगरी। ...फिलहाल सुरजै रो घर खांडो है। घर तो लुगाई सूं कम्पलीट होवै... पण आज अेक खांडो घर आखै गांव पर टांग फेर्‌यां खड़्यो है।” देबी धरती पर थापी मारतो बोल्यो।

इणरै साथै लोगां रा कान खड़्या होग्या। लोगां न्यारी-न्यारी बतळावण सरू कर दी। इणी कड़ी में धर्मपाल काळू रो कुड़तियो खींच’र भीड़ सूं नाकै टाळतो बोल्यो, “देबियो तो भाऊ बाढै यार। आज कुण बतावै और रो घर? सुरजै तो उछाळ'र भाटो लियो है।”

“उछाळ’र भाटो?” काळू माथै में सळ घाली।

“हां, जाण बूझ’र भोभर में पग दियो है। लाल चीरड़ै पर मरग्यो डैण।” धर्मपाल काळू कानी आंख मारी।

कालू ताळी पीट’र हांस्यो। इणरै साथै बठै भीड़ ऊभगी। चीकणै पर कीड़ी ज्यूं भेळा होग्या लोग।

काळू कड़्यां रै हाथ लगाय’र खांगी नाड़ करतै थकां बोल्यो, “कोडा करस्यो के यारो! बतळा लेवण द्‌यो किणी नैं।”

उणरी झिड़की सूं कीं उरळाई होई।

धर्मपाल भळै बात रो सिरो पकड़्यो, “अै तीन फिरै नीं जकी आंगण मांय हंसणी-सी। आं रो जादू है सगळो।”

“आं रो जादू और कठै कोनी फिर्‌यो..?”

“फिर्‌यो तो हो पण फिरण कोनी दियो।”

“कण..?”

“तेरै बाप..! ...परनै मर नी, तेरै सागै बात करण रो मजो कोनी आवै। अंगरेजी बोलूं के म्हैं? हरेक बात नैं उळझेड़ी आडी मानै। ...म्हैं दे देंवतो बासो। पण देवण कोनी दियो। ...अब और पूछ लै कण?”

“ना-ना-ना, समझग्यो। इड्डो गधो तो ना मान यार म्हनैं।” काळू खिलखिलाय’र उणरी हथेळी पर हथेली मारी।

“औ गधापणो नीं तो और गधी री पूंछ है, हरेक बात रो म्यानो पूछणो। ....थनैं इत्तो तो ठाह होवणो चाइज्यै कै छछवारी नैं छछवारी सुहाई कदै के..? सरीकी नैं चावै कोई के? पछै लुगायां में तो कुत्तै-बिल्ली रो संबंध होवै। अर ऊपर सूं अै फिलम वाळी। डाकण अर जरख चढ़ी। ...आंख मारणो तो आं रै मां रो दूध है। अर बा तळलो होठ दाब’र। थनै ठाह कोनी यार, बेसरमाई कित्ती पसरगी फिलमां में। चुम्मो गाल सूं सरक’र होठां पर आयो खड़्यो है। अब बोल, जे लुगाई देखल्यै तो माला कोनी मंड बैठै आपणै। लेणा रा देणा कोनी पड़ ज्यावै के? सुळझाई कोनी सुळझै। तलाक तांईं री नौबत आय सकै। अब हीयै में कांगसी फेर, कोई घरबारी आं नैं बासो देय’र ठाठियो खिंडा ल्यै के आपरो?”

“बात तो सोळा आना है तेरी यार। स्यात जदी अठै आय’र पूर पटक्या है आं।”

“स्यात क्यां री। कारण है। क्यूंकै भूवा जाऊं जाऊं करै ही जर फूंफो लेवण आयग्यो। बियां दिवाळ तो के है। भोत तेज है अै। घाट-घाट रो पाणी पीयोड़ो है आं रो। ...पण इण भाव में के मूंधी है। न्हाया उत्तो पुन्न। पांच-सात दिन रो मनोरंजन चोखो। सुख री तो घड़ी लाख री।”

“हां, सुख में तो के कमी है। अै नीं आवती तो डाग लारै हांफरड़ै होवण रो सुख कठै पड़्यो।” कैय’र काळू जोर सूं हांस्यो।

दूर-दूर री निजरां उणसूं टकराई। दो-तीन जणां तो मांचा छोड’र इण छिलोर बाड़ै मांय रळग्या। बिसनो आवतो बोल्यो, “इड्डो के लाधग्यो। म्हनैं दे दे काळिया। पांती आयो।”

मेरै कनै अठै के है देवण नैं। आंगणै में जावो। बै माळा पोवण लागरी।”

“जूत कोनी पड़ै के। सूनी फिरै के ईयां..! हरख है तो पिता’ लै। घाल’र देख लै बळद रै सींगां में सिर। ...दीखै कोनी के आळै बूकियांळा। अेक मौकै तो आखै गांव नैं आगै कर सकै अै। ...देखै के है, अै बॉडीगार्ड है आं रा। राफ तिड़कावै ...उघाड़ी पड़ी है के ईयां। पण तेरो के कसूर है लाडी। खून री पुकार है तो। जार नैं बेस्या बेस्या दीखै।”

सेर नैं सवा सेर मिलग्यो। काळियो पींदा में पूंछ घाल’र सरकग्यो। उण काळियै नैं तानै रै सुर मांय हेलो मार्‌यो, पण बो भीड़ मांय भेडां भेळी भेड होग्यो। बिसनी बड़बड़ायो, “काची बात के करै आदमी। सरम रो तोड़ो।”

बैठ्या-बैठ्या लोग आखता होग्या। ढूंगा तपग्या। कुरसी गडण लागगी। अैड़ै में होळै-होळै लोग खिसकण लागग्या। आपस में कानाफूसी होवण लागगी “सुरजो कोनी आवै। क्यामी बैठ्या हो अठै? उडीक री कोई सींव होवै। ...अर फेर सुरजै रो के हठ है। किणी और सूं करवा लेवै... घणा मौजीज बैठ्या है अठै। बो सरपंच बैठ्यो। गांव रो प्रधानमंत्री। ...उणसूं बडो है के सुरजो। ...पण साचकै बडै-छोटै रो सवाल कोनी अठै। अठै तो सवाल है अैसान रो। ...अठै सरण मिली है नीं आं नैं। ...सुरजै रै अैसान तळै दबग्या, साळा ...पण बियां देखां तो सरण सूं ऊंचो अैसान के हो सकै। दबै तो सरी बापड़ा। ...पण सुरजै नैं कित्ती’क देर उडीकसी गांव। जकै रो कीं थोह कोनी। खोज-खबर कोनी। बो कोई भात में थोड़ो गयोड़ो है। मामलो बेराही डाग से है नीं। बरवाळी कानी भाजती-भाजती सोती कानी मुड़तां कोई पालै बीं नैं। सुरजै रो बावड़णो कोई तै कोनी भीया। क्यूंकै बात तो डाग रै पकड़ावणै सूं जुड़्योड़ी है। जकी जाबक तै कोनी। जे पकड़ावै तो आंख झपकतां पकड़ाज्यै। अर पछै नीं पकड़ावण रो तो कोई पार कोनी। घंटा-दिन-हफ्ता-महीनां-साल अर कदै नीं।

...म्हे भोत देख्या है अैड़ा, जिकां नैं महीनां तांई पग-तुड़ाई कर’र छेकड़ सूनी मौरी मोढै लेय’र घरां बावड़णो पड़्यो है। ...ढुंढाऊ री पीड़ रो पार कोनी भीया।

...ढुंढाऊ तो किणी दुसमण नैं नीं बणावै रामजी।”

बगत री नजाकत देखतै थकां कलाकारां सुरजै नैं उडीकणो वाजिब नी समझ्यो। बां गांव रै सरपंच सूं करा लियो मुहूरत। ताळियां री गड़गड़ाट साथै फंक्सन पूरो होयो।

पाणी ल्यावती लुगायां सुरजै रै घर सूं निकळती भीड़ नैं मुड़-मुड़ देखती बगै ही। सगळां रै हाथां में ठूंगा हा। लोग बूंदी-भुजिया फाकता बगै हा। लागै हो, जाणै अबी-अबी सुरजै रै छोरां रो टीको होयो है। दो सौ कोस रो आंधो पैंडो काट’र छठै दिन तीनूं बाप-बेटो खाली हाथ गांव में बड़्या तो कोई बड़गे कोनी निकळै हो बां में। फांसी खाइजण रै डर सूं सांढरी मौरी अेक बोझै पर फेंक दी ही बां। ...बां री हार रो पार नीं हो। बां री टूटन अर थाकैलो मौत रै लोवै-लोवै हो। बै खुरड़ा घींसता-घींसता बारणै तांई आया। अर जद किवाड़ां पर लटकतो ताळो देख्यो तो बां रा गोडा टूटग्या। बै धम्म देणी बारण आगै बैठग्या। बां नैं इण भांत बैठ्या देख पड़ोसी घर सूं अेक लुगाई आई अर ताळो खोल’र चाबी सूंपतै थकां बोली, “फिलम वाळा तो काल चल्या गया। पांच दिन रैया गांव में। जावता चाबी म्हनैं सूंपग्या।”

बै लड़खड़ावता-लड़खड़ावता आंगणै में पूग्या अर आप-आपरै कमरां में जाय’र लांबी ताण ली। तीनूं तंगोटियां सूं सुबकण री आवाज आवै ही अर आंसुवां सूं गाबा गीला होवै हा।

स्रोत
  • पोथी : सनागत ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान ,
  • संपादक : जितेंद्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत ,
  • संस्करण : प्रथम
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