सगळी बातां अचांणचकै ई व्हेगी ही जांणै। सगाई अर ब्याव बीचलौ आंतरौ इत्तौ कमती रह्यौ के उणनै दूजौ कीं सोचण-बूझण रौ मौकौ ई नीं मिळियौ। बीनणी री पोसाक में नवा गाभां में गुडि़या समान वा अठी सूं उठी यूं करीजती रही जांणै उणरी आपरी मरजी के मतै-अणमतै रौ कीं अरथ ई नीं हुवै । बस इत्ती-सी जांणकारी अवस ही के अमुक तारीख नै उणरै साथै औ हुवणौ है। उणरौ मून ई उणरी रजामंदी ही। अलबत गांव री बडी-बडेरणां रै सुर में अचांणचाक आवती हमदरदी सूं उणनै कीं अंदेसौ तौ अवस हुयौ के जरूर कीं नवी बात हुई है, पण पछै आ ई सोच’र आपरी धुन में लाग्योड़ी रही के इसी हमदरदी तौ मां-बायरी बेटी सारू अैड़ा मौकां माथै हुया ई करै। उण घणी गिनार नीं करी। यूं उण जैड़ी छोरियां नै सरू सूं आ ई सीख दिरीजती रही के मां-बाप अर घर रा बडा-बडेरा जिकौ कीं करै, औलाद रौ आछौ-भलौ देख-सोच’र ई करिया करै।
गौधूळी रै सावै परवांण वा घड़ी पण बैगी ई आयगी। उणनै घर-परिवार रा रीत-कायदां परवांण सजा-संवार नै बगत माथै ब्याव री चंवरी सांम्ही लाय’र बिठाय दीवी। चंवरी री धीमी झळ कांनी देखतां अेकर उणरी इंछा पण हुई के उण हळकै उजास में वा आपरै हुवणवाळै खांवद नै अेक निजर देख तौ अवस लेवै, पण बीनणी रै गोटै-किनारीदार पैरवेस अर गाढै घूंघटै रै पार कीं सफीट देखीजणौ ओखौ हौ। उजास रै नांव माथै फगत दो लालटेणां जगै ही, जिकी आखती-पाखती री भींतां माथै टंगियोड़ी ही। चंवरी में धुकती समिधा रौ धुंवौ सीधौ उणरी आंख्यां कांनी आवै हौ। जावती सड़दी रौ ठाडौ असर हाल हवा में कायम हौ अर धुंवै रै कारण इण भांत जीव अमूंजै हौ के लिलाड़ रौ पसेवौ अर आंख्यां रौ पाणी रळ-मिळ’र इकसार हुवै हौ। कोई दूजौ मौकौ हुतौ तौ वा कदेई उठ’र अळगी हुय जावती। बडियाजी री सीख मुजब वा चंवरी में काठ री मूरत बण्योड़ी बैठी रही। अेकाध दफै अमूंजै में धांसी कर गळौ साफ करण री इंछा ई हुई, पण जतन सूं उण धांसी नै कंठां मांय ई मोस लीवी। पिंडतजी हथळेवै रै ओळावै पैली दफै जद जोड़ै बैठ्यै अणसैंध आदमी रै हाथ में उणरौ कंवळौ हाथ पकाड़ायौ तौ अेक ठाडै अर खुरदरै परस सूं उणरी रूंआळी ऊभी-सी हुगी। रीत परवांण वांरी हथाळियां रै बिच्चै पिंडतजी मेंहदी रौ अेक पींडियौ पण राख दिया, जिण सूं हथेळियां रौ गरमास आपौ-आपरै आंगै कायम रह्यौ। हथळेवै रै उण बंधण नै वां अेक दूजै गाभै सूं ढक दियौ हौ। फेरां री रस्म रै दरम्यांन वा खुदनै अेक खुरदरै परस अर ठाडै बंधण में बंधियोड़ी-सी अणभव करती रही।
आखै अनुस्ठान में चंवरी सूं अगनी री झाळां अर धुंवौ उठतौ रह्यौ अर पिंडतजी अेक खास पूजा-पाठी लहजै में मंत्रोचार करता रह्या। बिच्चै-बिच्चै वै वांसूं कोई सबद कै मंतर दोहरावण सारू कैवता रह्या, जिणमें उणरी भागीदारी नीं-समान ई रही -- कीं तौ संकै रै कारण अर कीं स्यात् खुद कांनी आवतै धुंवै रै कारण। वांरी पूठ में गांव री लुगायां गीत गावती रही। उणरै कनै ई दो-तीन साईनी छोरियां, अजब-सै अंदाज में हंसती रही। वांरी धीमी बतळावण अर फुसफुसाट सूं इत्तौ जरूर लखायौ के वांरी हंसी रौ सिरौ किणी-न-किणी रूप में उणरै हुवणवाळै धणी सूं अवस जुडि़योड़ौ है, पण इणसूं आगै वा कोई खास अरथ नीं निकाळ सकी। चंवरी रै अेक पसवाड़ै बडियाजी अर बाबोजी गंठजोड़ौ करियोड़ा बैठा हा। वांनै इण रूप में बैठा देख’र वा फेरूं अेकर-सी मां-बायरी हुवण रै विचार सूं बिलखी पड़गी। जे मां जींवती होवती तौ आज वा अर उणरा बापूजी ई इण जिग्यां बैठा हुवता। बडियाजी अर बाबैजी री मौजूदगी रै कारण ई स्यात् छोरियां घणी खुल’र बात कोनी करै ही। अेकाध दफै बाबैजी वांनै डकराय पण दीवी ही। फेर पूजा, अनुस्ठान, सेवरां, गऊदान अर गीतां रै बिच्चै कद उणरै भाग रौ निवेड़ौ हुयग्यौ, उणनै उणरी कीं सुध नीं रही।
चंवरी रौ काम बैगौ ई निवड़ग्यौ। घर री ड्योढी माथै गंठजोड़ौ खुलण रै समचै वा गीत गावाती लुगायां रै साथै पाछी घर रै आंगणै आयगी। गीत पूरौ हुयां उणनै पाछी उणी अंधारै ओरै में लाय बैठाय दीवी, जठै कीं घड़ी पैली वा बीनणी रै वेस में सजाईजी ही।
वा आंगणै बिछायोड़ी राली माथै कीं ताळ अबोली बैठी रही। भींत रै आळै में छोटकी भाभी उण सारू पांणी रौ लोटौ लेय’र आई अर मनवार कर नै पांणी पाय दियौ। घर में फगत वा भाभी ई इत्ती मन-मेळू ही, जिकी उणरी मनगत नै आछी तरै समझती। बारै आंगणै में लोगां रौ आवणौ-जावणौ जारी हौ। स्यात् जान नै जीमावण री त्यारी हो रही ही। चंवरी रै धुंवै अर अमूंजै रै कारण उणरौ माथौ पण भारी हौ, जीव हळकौ करण खातर वा थोड़ी जेज उणी बिछावणै माथै आडी हुयगी अर कीं पळां में ई उणरी आंख लागगी।
आपरै कांन कनै भाभी री धीमी आवाज अर हाथ माथै पेरवां रै दबाव सूं जद उणरी पाछी आंख खुली तौ बारै लुगायां रौ हाकौ सुणीजै हौ। बिच्चै-बिच्चै जीमण रा परोसगारा हाथां में धामा अर बाल्टियां लियां घूम रह्या हा।
‘‘इत्ता बैगा ई सोयग्या, गीताबाई!’’ भाभी हंसती थकी पूछै ही।
‘‘यूं ई थोड़ी आंख लागगी, भोजाई!’’
‘‘आछौ, चालौ अबै रोटी जीम लौ।’’
‘‘नीं भोजाई, म्हनै बिल्कुल ई भूख कोनीं...’’
‘‘अबै उठौ, जित्तौ थांरौ जी करै! देखौ, बारै आंगणै में सगळी साथण्यां थांनै ई उडीकै।’’ भाभी री मनवार नै वा घणी जेज नीं टाळ सकी अर उठ’र बारै आंगणै में आयगी। बारै लुगायां रै बिच्चै अेक थाळी माथै उणरै कड़ूंबै री बैनां अर भोजायां उणनै वाकेई बैठी उडीकै ही। आज पैली दफै उणनै घर में कोई यूं मनवार कर नै जिमावै हौ। उणनै वाकेई भूख मैसूस हुई अर फेर जीमती-जीमती खुद में ई बिलमगी।
गीता रै जलम रै डौढ बरस बाद ई उणरी मां अेक मामूली-सी बेमारी री फेट में आय’र चालती रही। दूबळी तौ वा पैली सूं ई ही, गीता नै जलम दियां बाद औरूं दबगी। कनलै गांव रै वैद नै दिखायां उण बतायौ के खून री कमी है, थोड़ौ खावाणौ-पीवणौ सुधारौ। गीता रै बाप जीयाराम टाबरां रै हिस्सै री खुराक काट’र आपरी लुगाई नै बंचावण री भरपूर कोसीस करी, पण वा नीं बच सकी। अेक रात आकरौ ताव चढ्यौ अर तीजै दिन दिनूगै ई उण प्राण त्याज दिया।
गीता आपरी मां री सातवीं औलाद ही। अेक भाई अर अेक बैन तौ बाळपणै में ई गुजरग्या हा। बाकी तीन भाई अर बैन हीरां उणसूं बडा हा। सगळां सूं बडौ भाई गोमौ घणा बरस पैली घर सूं न्यारौ हुयग्यौ हौ। उणरै ब्याव री बगत गीता तीन बरस री टाबर ही। बिचेटियौ भाई रूपौ बाप रै साथै खेत में हाड-तोड़ मैहनत करतौ पण काळ आगै दोन्यूं बाप-बेटौ परबस हा। रूपै सूं छोटौ दुरगौ संजोग सूं कनलै कस्बै में ई जंगळात रै मैकमै में चैकीदारी रौ काम करतौ। उणरी वजै सूं काळ बरस में ई घर में थोड़ी-घणी मदद हो जाया करती। उणरी बैन हीरां दुरगै सूं दो बरस छोटी ही अर अबार तीन बरस पैली ई जीयाराम जमानै रा आछा आसार देख’र दोन्यूं भाई-बैनां रौ अेक हफ्तै रै आंतरै में ई ब्याव मांड दियौ हौ। संजोग सूं वांनै छोटी बीनणी तौ मन-रुचती मिळगी पण बेटी कांनी सूं वै नचीता नीं हो सक्या। जंवाई यूं तौ दसवीं तांई पढ्यौ-लिख्यौ हौ, पण बेरोजगारी अर माड़ी संगत सूं वौ चिड़चिड़ौ-सौ बणग्यौ। वौ केई दफै हीरां साथै मार-कूट ई कर लेवै। हीरां केई वार सासरै सूं हारियोड़ी बाप रै घरां पाछी आ जावै, जठै बिचेटकी भाभी रै आकरै सुभाव रै कारण घर में आयै दिन गोधम मच्योड़ौ रैवै। गीता अर उणरी छोटकी भाभी रै साथै ई बिचेटकी रौ बैवार कीं ओपरौ ई रैवै।
काळ-कुसमै रा दिनां में आदमी रौ चित्त अर विवेक आपरै सही ठिकाणै कमती ई रैवै, इण वास्तै जीयाराम नै लारला दो बरसां में आ चिन्ता मांवौ-मांय खायां जावै ही के किणी तरै उणरी बेटी गीता रा हाथ पीळा हो जावै। बेटी आगलै घर पूगै तौ वा ई सुखी रैवै अर खुद उणरै जीव रौ ई संताप मिटै। बेटां में आपसरी में संपत नीं हुवैला तौ आपौ-आपरा घर बसाय’र न्यारा रैवैला।
लारलौ बरस जमानै रै लिहाज सूं कीं ठीक रह्यौ तौ जीयाराम नै लाग्यौ के औ ई आछौ मौकौ है। कुण जांणै आगै कांई हुवै, इण वास्तै उण च्यारूंमेर आपरी रिस्तेदारियां में बेटी सारू वर ढूंढण रौ काम सरू करवा दियौ। गीता ई अबै उगणीस बरस री जोध-जवान हुयगी ही। यूं कद-काठी रै लेखै ई आछी काया कमाई ही। जीयाराम बेटी रौ ब्याव तौ जरूर करणौ चावतौ, पण घर में साधनां रौ तोटौ उणरी मोटी चिन्ता ही। वौ अैड़ै घर अर वर री खोज में हौ, जठै लेण-देण री घणी मांग नीं व्है। वौ सगळां नै अेक ई बात कैवतौ के वौ जान अर गिनायतां नै दो टंक भरपेट जीमाय देवैला अर जरूरी गैणै-गाभै साथै बेटी नै हंसी-खुसी विदा कर देवैला। इणी सोच रै साथै उण बेटी रौ रिस्तौ करण रौ मानस बणा राख्यौ हौ, पण औ काम वांरी सोच जित्तौ सोरौ नीं हौ।
अेक दिन जीयाराम रा बडा भाई रावतराम रै सासरैवाळां री कांनी सूं घर-बैठां अेक रिस्तौ आयौ। खुद रावतराम वांरै साथै रिस्तै री बात लेय’र आया हा। इण रिस्तै री खास बात आ ही के लड़कै वाळा आपरी मरजी सूं छोरी रै बाप नै कीं ओपती रकम देवण नै त्यार हा अर वांरी आप कांनी सूं कोई मांग नीं ही। आछौ खावतौ-पीवतौ घर है। इण प्रस्ताव सूं जीयाराम रै मन में आ संका हुई के स्यात् लड़कै में कोई खोट-खामी है। उणरै जोर देय’र पूछ्यां रावतराम बतायौ के खोट-खांमी कीं कोनी, फगत लड़कौ दूज-वर है, उणरी पैलड़ी लुगाई दो बरस पैली चालती रही। उणरी दो छोटी बेटियां है, पण ऊमर कोई ज्यादा कोनीं, आ ई कोई बत्तीस-पैंतीस रै बिच्चै कहीजै। जीयाराम सोच्यौ बत्तीस-पैंतीस तौ कोई घणी ऊमर नीं व्है। उण लड़कै नै देखण री इंछा दरसाई, तौ आ बात रावतराम नै आछी नीं लागी। वां कह्यौ के लड़कौ खुद वांरै आछी तरै देख्यौ-भाळ्यौ है, इणरै उपरांत ई जे वांरी बात माथै विस्वास नीं हुवै तौ जद मरजी हुवै लड़कै नै जाय’र देख आवौ। जीयाराम नै बडै भाई माथै विस्वास नीं करण वाळी बात ठीक नीं लागी, इण वास्तै वां घणी हूजत नीं करी अर रिस्तै सारू हामळ भर दी। रकम लेवण री बात नै वां आ कैय’र टाळ दीवी के उणरौ उपयोग वै लड़की रै गैणै-गाभै में कर लेवै। बात पक्की हुवतां ई वां ब्याव सारू दो महीणां बाद री तारीख मुकर कर दीवी। जीयाराम आपरी त्यारी सारू थोड़ी औरूं आगै री तारीख चावता, पण रावतराम ब्याव री सगळी जिम्मैवारी आ कैय’र खुद माथै ओढ लीवी के गीता नै तौ उणरी बडिया हरमेस आपरी कूंख री बेटी समान ई गिणती आई है, इण वास्तै औ ब्याव तौ अेक तरै सूं वांनै ई साजणौ है।
इण भांत गीता रौ ब्याव वांरी मन-मरजी परवांणै संपन्न हुयग्यौ।
सेवट बाप रै घर सूं बेटी री विदाई री वा घड़ी-पुळ ई आयगी, जिणरौ आमनौ करण री हिम्मत किणी में नीं बंची। सूरज अबै आथूंण कांनी ढळण लाग्यौ हौ। कोई च्यार बज्यां रौ टेम रह्यौ हुवैला। दिनूगै सूं लेय’र अबार तांई री सगळी रीत-रिवाजां में गीता अेक निरजीव पूतळी रै उनमान मांय-बारै लाईजती रही। उणरै मन में नीं कोई उछाव हौ अर नीं कोई पिछतावौ। वा आपरै मने-ग्याने सगळौ आगौ-लारौ देख चुकी ही। पसंद-नापसंद अर राजी-बेराजी हुवण रा सगळा सवाल लारै छूटग्या हा। दिनूगै जद देव-थानां री फेरी सारू उणनै बींद रै साथै बैठाई, तद उण आपरै झींणै घूंघटै री ओट सूं उणनै फेरूं अेकर देख्यौ। वौ उदास हौ। यूं बींद रा गाभां में इत्तौ कठरूप पण नीं लाग्यौ उणनै, पण औस्था रौ फरक तौ सांप्रत दीखै हौ। दोफारां रोटी जीम्यां बाद वा थोड़ी सुस्ताय लीवी, उणसूं जीव कीं हळकौ लागै हौ, पण मन री उदासी रौ उणरै कनै कोई उपाव नीं हौ।
विदाई रै निमत जद गांव री लुगायां सीख गावणी सरू करी तौ मतै ई उणरा कंठां में रूंधीज्योड़ी रुलाई बसक्यां में फूट पड़ी। हर कोई नै लाग्यौ के औ रोवणौ कोई रीत रौ रोवणौ नीं हौ। जिण सीख नै वा खुद आपरी साथण्यां रै साथै कदेई उछाव सूं गाया करती, उणरा बोलां में छुप्योड़ी वेदना खुद आज पैली दफै आपरै हीयै में ऊतरती मैसूस कीवी :
आंबा पाका अे आंबली अे-
इतरौ बाबल कैरौ लाड, छोड नै बाई सिध चाली
अे आयौ सगां रौ सूवटौ, वौ तौ लेग्यौ टोळी मांय सूं टाळ
कोयल बाई सिध चाली!....
सीख गावती लुगायां रै अेकठ सुर अर गीता री वेदनाभरी रुळाई सूं अेक अजीब करुण वातावरण बणग्यौ हौ। आड़ोस-पाड़ोस री लुगायां अर उणरी साथण्यां इण रुळाई रौ मरम जांणती। सगळां री आंख्यां गीली ही। जद बेटी बाप रै सांम्ही पूगी, तौ बूढौ जीयाराम खुद नै संभाळ नीं सक्यौ। उणरौ काळजौ मांय-ई-मांय चूंटीजै हौ। मांयलै अपराध-बोध रै कारण उणरी जीभ ताळवै चिपगी ही। कनै ऊभा लोगां किणी भांत बाप-बेटी नै अळगा किया। औ ई हवाल भायां अर भोजायां रौ रह्यौ। नरसाराम इण सगळै माहौल में अजीब-सी दोगाचींती अर पिछतावै में मांय-ई-मांय खुद नै कोसतौ रह्यौ -- उणनै कांई जरूत ही अेक अबोध लड़की रै साथै इण भांत छळ करण री, जिकी उणरी बडी बेटी सूं स्यात् च्यार-पांच बरस मुस्कल सूं बडी हुवैला। वौ तौ सरू सूं ई इण ब्याव रै पख में नीं हौ, पण मां-बाप री अणूंती जिद रै आगै सेवट उणनै हार मानणी पड़ी। वौ वांरौ अेक ई बेटौ हौ। उणरी पैलड़ी लुगाई दो बेटियां री मां व्हियां बाद चालती रही। बेटौ नीं हुवण रौ अणेसौ मां-बाप नै तौ हौ ई, कठैई खुद रै मन में ई इण बात रौ पिछतावौ अवस हौ। बस उणी अेक दब्योड़ी इंछा रै कारण उण हामळ भर दीवी। पण अबार उणनै लाग रह्यौ हौ के औ स्यात् ठीक नीं हुयौ।
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सूरज छिप्यां तांई बारात पाछी आपरै गांव आयगी। लुगायां बधावौ गावतां बींद-बीनणी नै घर मांय लिया। अगवाणी री रसम पूरी हुयां उपरांत बींद-बींनणी रौ गंठजोड़ौ खोल दियौ अर बीनणी नै गांव री लुगायां अेक न्यारै ओरै मांय लेयगी। ओरौ खासा बडौ हौ अर मांय तीनूं कांनी रा आळां में लालटेणां जगै ही। दरवाजै सूं जीवणी भींत माथै अेक मेंहदी रै हाथ रौ छापौ अर गैरूं सूं मांडणा मंड्योड़ा हा। उणी छापै स्सारै सजायोड़ै बाजोट माथै अेक लालटेण औरूं मेल राखी ही अर कनै ई बैठण सारू जाजम बिछायोड़ी। लुगायां बीनणी नै उण माथै बिठाय’र खुद उणरै च्यारूंमेर बैठगी। गीता री भाभी अर उणरौ भाई दुरगौ उणनै सासरै पुगावण सारू साथै आया हा।
सासरै री लुगायां रै बिच्चै दो जणी कनै आय’र गीता नै उणरै नांव सूं बतळाई तौ खुद गीता अर उणरी भोजाई वांनै ओळख लीवी। वै गीता रै गांव री ई बेटियां ही - पारो अर तुळसी। पारो रिस्तै में गीता री काकै-बेटी बैन लागती अर बाळपणै में साथै रम्योड़ी ही। वां गांव री लुगायां अर छोरियां नै थोड़ी जेज सारू गीता रै कनै सूं आ कैय’र अळगी कर दीवी के नवी बीनणी नै थोड़ौ आराम करण देवौ। बारै आंगणै में गांव री लुगायां गीत गावै ही अर गांव रा दूजा लोग जीमा-जूठै में लाग्योड़ा हा। घंटै-डौढ-घंटै में औ सगळौ काम नीवड़ग्यौ अर लोग ई आपौ-आपरै घरां सिधायग्या।
आधी रात नै जद सगळै घर में सांयती बापरगी, गीता नै उणरी बैन पारो, तुळसी अर उणरी भाभी घर री दूजी लुगायां साथै खाणौ खायां बाद घर रै अेक आसरै मांय ले आई अर उण नवै बणतै आसरै में बिछायोड़ै पिलंग कनै लाय’र खुद पगो-पग पाछी नीसरगी। आसरौ हाल नवौ ई बण्यौ हौ। दरूजै माथै हाल किवाड़ चढणौ बाकी हौ अर भींत रै गोळ घेरै माथै लकडि़यां जोड़ नै छाजण सारू आधार त्यार कर राख्यौ हौ। आभै में चिलकतै चांद री चांनणी रै कारण बारै आंगणै अर आसरै में हळकौ उजास हौ अर ऊपर सूं खुलौ हुवण रै कारण हवा ई आछी आवै ही। वा पिलंग कनै अणमणी-सी ऊभी होगी। जिकी साथण्यां अर लुगायां उणनै अठै पुगावण नै आई ही, वां मांय सूं तुळसी अर उणरी भाभी नै छोड’र सगळी पाछी बारै आयगी ही। दो-चार पळ में तुळसी ई विदा लेयगी।
भाभी उणनै मनाय’र पिलंग माथै बिठाय दीवी अर खुद ई कीं ताळ उणरै कनै बैठगी। आपसरी में बातां करती लुगायां री बंतळ दूर जावती लागै ही अर आगलै ई पळ उणनै आसरै रै बारणै सूं मांय आवतौ अेक मिनख दीख्यौ। जंवाई नरसाराम नै मांय आवतां देख गीता री भाभी ऊभी हुई अर धीमै-सै उणरौ हाथ दबावतां उणसूं विदा लेय आसरै सूं बारै आयगी। गीता री इंछा हुई के वा ई भाभी रै साथै पाछी उठ जावै, पण सरम अर संकोच सूं वा खुद में ई सिंवटगी। आसरै में अेकर सरणाटौ-सौ वापरग्यौ। उण आसरै रै आखती-पाखती स्यात् वांरै सिवाय दूजौ कोई कोनी हौ। सगळा घरवाळा ब्याव वाळै घर में ई हा। जिकी लुगायां अबार उणनै छोड’र गई ही, बारै गळी में ओजूं वांरै हंसणै-बोलणै री आवाजां सुणीजै ही। वौ हौळै-सी उणरै कनै आयौ अर फेर बिना कीं बोल्यां पिलंग री ईस माथै बैठग्यौ। वा उणी भांत आपरी ठौड़ माथै ऊभी रही। कीं ताळ बोलौ-बोलौ बैठ्यौ रैवण रै उपरांत उण आपरी जेब सूं अेक बीड़ी निकाळी अर सिळगावण सारू तूळियां री पेटी हाथ में सांभ लीवी। जगती तूळी रै उजास में अेकरसी उणरै चैहरै माथै उणरी निजर पड़ी। अेक अधेड़-सौ औसत उणियारौ, जिकौ आगलै ई छिण अंधारै में अेक आकार बण’र रैयग्यौ। फेरूं अेकर उण कस खींच्यौ अर पीळौ उजास उणरै चैहरै माथै वापरग्यौ अर बुझतौ-सौ आकार पाछौ अंधारै में डूबग्यौ। अब चैहरौ देखण में उणरौ कोई उछाव नीं रह्यौ। धुंवै रौ अेक गोटौ अचांणचक उणरै मूंडै सूं बारै नीकळ्यौ अर उण कांनी बधग्यौ। स्यात् हवा री दिस उण कांनी ही। धुंवै रै कारण वा धांसी में उळझ’र रैयगी।
‘‘कांई हुयौ?’’ कैवतां उण बीड़ी अेकांनी फैंक दीवी अर ऊभौ हुय’र उणरै खुंवै माथै हाथ राखतां उणसूं पिलंग माथै बैठण री मनवार करी, ‘‘आवौ, ऊपर बैठौ।’’
वा बिना कोई विरोध करियां उणसूं दूर पिलंग माथै बैठगी। उण नैड़ौ सिरक’र पूठ माथै हाथ फेरण लाग्यौ। आपरै सुर में थोड़ी औरूं नरमी लावतां फेर पूछ्यौ, ‘‘कियां तबियत तौ ठीक है नीं, इत्ती अळगी क्यूं बैठी, थोड़ी नैड़ी बैठ जा।’’
इण अजांण अर अपरोखै-सै लागतै मिनख सूं खुद नै मुगत राखण री कोसीस करतां उण इत्तौ ई कह्यौ, ‘‘जी, म्हैं अठै ई ठीक हूं।’’ अर वा सिराणै कांनी सिरकती-सी पाछी उणसूं दूर बैठगी।
‘‘लेवौ!’’ मनवार करतां नरसाराम आपरौ हाथ गीता कांनी बधायौ। उणरै हाथ में कीं किरचा, इळायची अर गोळियां ही स्यात्। उण संकीजतां-सी मनवार रौ मांण राखण सारू सुपारी रौ अेक किरचौ उठाय’र हाथ में राख लियौ, पण खायौ कोनीं। वा आपरै मन में उणसूं बात करण रौ कोई उछाव नीं मैसूस कर सकी। वौ पिलंग री आधी जिग्यां घेरतौ कनै ई सोयग्यौ अर उणरै कंवळै हाथ नै आपरी खुरदरी आंगळ्यां सूं सैळावण लाग्यौ। उणनै फेरूं उण खुरदरैपण सूं सिहरण-सी हुवण लागी, पण हाथ छुडावण री उण कोई कोसीस नीं करी। हौळै-हौळै वा उण परस सूं सहज व्हेण री कोसीस करण लागी। इण कोसीस रै उपरांत ई ओजूं अपणापै रौ भाव कठैई अळगौ-नैड़ौ ई नीं हौ। उणरै संकेत सूं वा उणरै जोड़ै पौढ तो अवस गई, पण साव अणमणी अर अणसैज-सी। बातचींत अर सुर-सुभाव री नरमाई सूं वौ उणनै भलौ मांणस लाग्यौ, पण मने-ग्याने उणनै कबूल कर लियौ हुवै, वा बात पण हाल नीं बणी। साथै ई उणनै थोड़ौ इचरज पण हुयौ के उणरै वैवार में जवान मिनख सरीखौ कोई उछाव, आवेग कै ऊंतावळी रौ भाव कठैई नीं दीख्यौ। उणरै बोलण रै लैजै में ई अेक खास तरै री सुरताई अर थ्यावस ही। वौ घणी रात तांई आपरै घर अर खानदान बाबत उणनै बतावतौ रह्यौ। स्यात् आपरी नीजू जिनगाणी बाबत ई कीं बतावाणी चावतौ हौ, पण वां बातां नै जांणण में उणरी कोई इंछा ई जांणै नीं रही। उणरौ मन अेकदम उचाट खायग्यौ। बेमन सूं सुणतां-सुणतां कद उणरी आंख लागगी, खुद उणनै ई उणरौ चेतौ नीं रह्यौ।
घणी रात ढळियां खुद रै डील माथै बधतै दबाव सूं जद उणरी आंख खुली तौ उण पैली वार अेक अजांण मरद री बावां अर उणरी देह रै बंधण में खुद नै परबस मैसूस करी। मन री थकांण अर काची नींद रै असर में चंवरी अर फेरां रै ताजै प्रसंगां नै ई वा अेकरसी चेतै सूं उतार चुकी ही, स्यात् इणी कारण अणफैम में उणरै मूंडै सूं चीस-सी नीकळगी। आगलै ई पळ उण लाड सूं डपटतां आपरी हथाळी उणरै मूंडै माथै राख दीवी अर किणी अणहोणी री आसंका सूं डरती थकी वा खुद ई सहमगी। सेवट वौ ई हुयौ जिकौ जोरामरदी उण करणौ चायौ। इण अणसैज बैवार अर दैहिक पीड़ा नै आपरै मन रै उपरांखर सैवती अर अेक दूबळै दबाव हेठै चींथीजती वा खुदो-खुद में सिंवट्योड़ी पड़ी रही। थोड़ी-सी ताळ में सगळौ उफांण सान्त हुयग्यौ, पण इण जोरावरी सूं उणरै मांय जिकी असांयती भरीजी, उणरौ निवेड़ौ उणनै कठैई नैड़ौ-अळगौ ई नीं दीख्यौ। आखी रात वा आपरै मन में पसवाड़ा फोरती उण आधै पिलंग माथै वा पड़ी रही, पण उणरी आंख ई भेळी नीं हुई।
दिनूगाळी रै उजास में जद पैली वार उण गौर सूं आपरै साथै सूतै धणी रौ चैहरौ गौर सूं देख्यौ तौ उणनै आपरौ काळजो मूंडै कांनी आवतौ-सौ लाग्यौ। कोई चाळीस नैड़ी अधेड़ औस्था नै पार करतौ नरसाराम अबै उणरौ खांवद नांवजद हो चुक्यौ हौ। नींद में उणरौ मुखोळ औरूं विडरूप दीखै हौ - माथै ऊपर बीखरियोड़ा अधपाक्या केस, बीड़ी अर तमाखू पीवण रै कारण काळा पड़ता होठ, ढीली पड़ती चांमड़ी अर पक्कौ गेहुंवौ रंग। हाथां-पगां री नाडि़यां उफस्योड़ी अर खुरदरी हथाळियां। खांवद रै रूप में मिळी इण मानवी-छिब नै देख’र वा घबरायगी अर अेकाअेक पिलंग सूं नीची ऊतर अेकांनी ऊभगी। उणनै भंवळ-सी आवण लागी। वा आसरै बिचाळलै थांभै रौ स्सारौ लियां कुण जांणै कित्ती जेज तांई उण सूतै मिनख नै फाट्योड़ी आंख्यां सूं देखती रही। उणरौ ध्यांन तद भंग हुयौ, जद बारै आंगणै में कोई रै आवण रा पग बाज्या। वा आपौ संभाळ’र भारी मन सूं आसरै सूं बारै आई तौ सांम्ही भाभी नै देख आपरै मन माथै काबू नीं राख सकी। वा भाभी रै खुंवै आपरौ माथौ देय’र सुबक पड़ी।
गीता री बसक्यां अर भाभी री थ्यावस-थपक्यां सूं स्यात् मांय सूतै नरसाराम री नींद खुलगी ही। वौ खैंखारौ करतां उठ्यौ अर आपरा गाभा-जूता पैर नै आसरै सूं बारै आयग्यौ। सरम सूं संकीजतौ-सौ वौ दोन्यां रै कनै सूं नींसरग्यौ। उणरै गयां बाद वा रोवणखाळी-सी हुयोड़ी उणी आसरै में पाछी बड़गी अर थांभौ पकड़’र बसक्यां चढगी। नीं वा खुल’र रोवण जोगी रही अर नीं खुद नै संभाळण जोगी। उणरी हालत अर रोवणौ देख’र भाभी री आंख्यां ई भरीजगी। उण भरियोड़ै गळै सूं गीता नै थ्यावस बंधावण री घणी कोसीस करी, पण उणरी मनोदसा आगै सगळी कोसीस अकारथ ही। वां दोन्यां री ऊमर में कोई खास फरक नीं हौ अर वा गीता रै दरद नै आछी तरै समझै ही। वा खुद ई इण ब्याव रै पख में नीं ही, पण आपरै सुसरै अर बडेर सुसरै री इंछा आगै परबस ही। उण आपरै धणी अर गीता रै भाई दुरगै नै घणौ ई कह्यौ, पण वौ ई आपरै बाप अर बाबै री मरजी सांम्ही खुद नै लाचार मानतौ।
दिनूगै नवी बीनणी री मूंडौ देखाई री रीत समचै गांव री लुगायां अर छोरियां फेरूं भेळी हुयगी। रिस्तै में सासू अर जेठाण्यां नै तौ नवी बीनणी सूं पगे-लगाई रौ नेग ई देवणौ हुवै, पण देराण्यां अर छोटी छोरियां सारू अैड़ौ कोई बंधण नीं हुया करै। पारो अर तुळसी तौ गीता रै गांव री बैनां हुवण रै रिस्तै सूं इण नेगचार सूं आगूंच ई बारै गिणीजै ही। पारो रै आकरै सुभाव नै सगळी छोरियां जांणती, इण वास्तै अेकरसी तौ सगळी अळगी हुयगी। फगत अेक छव-सात बरस री अेक छोटी-सी बच्ची दरूजै रौ पल्लौ पकड़्यां डरूं-फरूं-सी ऊभी रही। पारो उणनै आवाज देय’र कनै बुलाय लीवी, ‘‘अरे, अठै आव पन्ना, देख कुण आई है?’’
तुळसी पारो अर उण बच्ची नै रोकणी चावती, पण जित्तै टाबर उणरै कनै आयगी ही। गीता ई झीणै घूंघटै रै मांय सूं उणनै देखली ही। नवा गाभां में सजियोड़ी मासूम-सी आ टाबर उणनै पैली निजर में ई सोवणी-सी लागी, पण समझ नीं सकी के वा कुण है? पारो आगै कीं बोलती उणसूं पैली ई तुळसी उणनै रोक दीवी अर टाबर नै बारै खेलण रौ कैय’र उठै सूं भेज दीवी। फेर वै घणी जेज गीता सूं आपरै गांव अर बाळपणै री बातां करती रही। बारै आंगणै में गांव री लुगायां रौ आव-जाव अर वांरा गीत जारी हा।
पारो बातेरण कीं ज्यादा ई ही। उण तुळसी रै बरजतां-बरजतां ई आ बात उण गीता नै बिगताय ई दीवी के वा छोटी बच्ची उणरै धणी री दूजी बेटी है। अेक बडी बेटी तेरह बरस री औरूं है, जिणनै अबार नानेरै भेज राखी है।
आ बात जांणतां ई फेरूं अेकर गीता रै मन में धक्कौ-सौ लाग्यौ। वा काल रात सूं ऊमर रौ अेक लूंठौ फासलौ तै करण में लाग्योड़ी ही। इत्ती बडी बेटियां री जांणकारी सूं तौ जांणै उण फासलै में अणमाप बधोतरी हुयगी ही। वा घणी जेज तांई सूनीं आंख्यां सूं पारो अर तुळसी नै देखती रही अर देखतां-देखतां उणरी आंख्यां सूं अबोला आंसुवां री धार-सी बैवण लागी। उणरी भाभी गीता नै थ्यावस देवण री घणी कोसीस करती रही, पण उणरी आंख्यां सूं पांणी बैवतौ ई रह्यौ। तुळसी आपरी दबी जुबान सूं पारो नै ओळमौ ई दियौ अर गीता नै थ्यावस देवण लागी के यूं जी छोटौ नीं करै। पारो री तौ यूं ई अणूंती बातां करण री आदत है। उणरा सासू-सुसरौ बौत भला लोग है। खुद उणरौ धणी ई बौत सूधै सुभाव रौ मिनख है। वौ उणनै किणी बाात रौ फौड़ौ नीं पड़ण देवैला।
पारो नै ई अबै आपरी बात माथै अफसोस हुवै हौ। वा जांणती के आ हकीकत हौळै-हौळै मतै ई उणरै सांम्ही आ जावती। वै आप कांनी सूं बात नै परोटण सारू री पूरी कोसीस करती रही, पण वै इण बात नै दर ई नीं समझ सकी के आ नवी बीनणी ऊमर रै इण अबखै आंतरै नै अेक ई रात में पार करण सारू किण भांत खुद सूं जूंझती रही है। इण चालती जीवण-जातरा में उण वास्तै आ बात कीं अरथ नीं राखती के सासू-सुसरौ किसा-क है, कै घर में कांई साधन-सरतर है। धणी जिसौ है, वा देख चुकी ही। देखणी फगत आ ही के उणनै आपरी जिनगाणी री सरूवात कठै सूं करणी है?
सासरै री सगळी हलगगल, गाजा-बाजा अर बधावै रा गीत अब उणरै वास्तै अकारथ हा। पारो अर तुळसी कद उणरै कनै सूं उठ’र रवाना हुगी, उणनै कीं सुध नीं रही। उणनै औ मैसूस हुयौ के अबै वा उगणीस बरस वाळी गीता नीं रही, जिकी काल तांई आपरै पीहर री गळियां में बेरोक घूमरा काढती ही अर नीं इण घर में आयोड़ी कोई नवी-नवेली बीनणी, जिणरै वास्तै अणूंतौ उच्छब करीजै। उणनै तौ असल में आपरी जिनगाणी ठीक चवदा बरस आगै उण जिग्यां सूं सरू करणी ही, जठै पूग उणरै धणी री पैली लुगाई आपरी जीवणलीला पूरी करी ही।
नवी बीनणी री अगवाणी अर मैमाणां री आव-भगत पूरी हुयां पछै आधी रात नै घर रै अेक सज्योड़ै ओरै मांय जद उणनै धणी री सेज तांई पुगाईजी, तद तांई वा अेक दूजी लुगाई में तब्दील व्हे चुकी ही। दीयै रै निमधै उजास में वा मांय आय पिलंग माथै बैठगी। थोड़ी ताळ में उणनै आपरै धणी नरसाराम री धीमी आवाज सुणीजी। वै आपरी भोजाई सूं कैवै हा, ‘‘नीं भोजाई, म्हैं अठै बारै ई ठीक हूं। थे बिना बात जिद मत करौ।’’
‘‘कैड़ी अचूंकी बात करौ देवरजी, घर में नवी बीनणी आयां उपरांत ई कोई यूं दूर रह्या करै कदेई?’’
‘‘वा बात ठीक है, पण...’’
‘‘अबै पण-वण कीं नीं! हद करौ थे ई, बापड़ी वा बीनणी ... आज दूजी रात है उणरी इण घर में... आछौ, अबै म्हैं चालूं... आप ई मांय जाय आराम करौ...।’’ इत्ती बात कैवण रै साथै ई वै स्यात् पाछी उठगी ही अर दोन्यां री बंतळ बंद हुयगी ही। मतै ई उणरी आंख ओरै रै दरूजै माथै अटकगी।
नरसाराम भारी मन सूं मांय आयग्यौ। ज्यूं ई वौ पिलंग कांनी आयौ, गीता आपरी जिग्यां सूं उठ’र ऊभी हुयगी। उणनै लाग्यौ के स्यात् वा ओरै सूं बारै नीसर जावैली। उण सोच लियौ हौ के जे वा जावणी चावैला तौ वौ उणनै रोकण री कोसीस नीं करैला। वौ ई कीं पळ यूं ई अणमणौ-सौ ऊभौ रह्यौ। फेर पिलंग माथै बैठग्यौ। गीता हाल उणी जिग्यां पिलंग रै कनै अबोली ऊभी ही।
‘‘कांई बात हुई, बैठौ कोनीं?’’ उण अणचींत्यां ई गीता नै पूछ लियौ, पण अेक गैरौ पिछतावौ उणरै मन माथै बोझ बण्योड़ौ कायम हौ। वौ खुद नै ई माफी देवण नै त्यार नीं हौ। बीती रात में सुहागरात री सिसकियां जांणै ओजूं उणरै कानां में गूंजै ही। वा हाल उणी भांत खुद में डूब्योड़ी-सी ऊभी ही - शान्त अर गुमसुम! उणनै मनावण सारू वौ औरूं कीं बोलतौ उणसूं पैली वा हौळै-सी उणरै कनै आय’र ऊभगी। उणनै लाग्यौ के वा कीं कैवणी चावै, इण वास्तै वौ ई उणरै मूंडै सांम्ही देखण लाग्यौ। वा हौळै-सी इत्तौ ई बोल सकी, ‘‘थांनै बडी बेटी नै नानेरै नीं भेजणी चाहीजती, उणनै घणौ दुख हुयौ हुवैला। हो सकै तौ काल ई उणनै पाछी घरां बुलवाय लेवौ!’’ इत्ती-सी बात कैवतां उणरौ गळौ भरीजग्यौ अर वा आगै कीं नीं बोल सकी।
नरसाराम नै अेकाअेक आपरै कानां माथै विस्वास ई नीं हुयौ। उण निमधै उजास में वौ कीं पळ अबोलौ-सौ उणरै सांम्ही देखतौ ई रहग्यौ – इण ऊंचै कद-काळजै वाळी दूजी लुगाई रै वाछळ विगसाव कांनी, जिणरै आगै उणरौ खुद रौ आपौ अर सीस मतै ई उणरी गोद में निंवग्या। घणी रात ढळियां तांई वौ उणरी निरमळ गोद में आपरौ माथौ दियां सुबकतौ रह्यौ अर वा उणी हिंवळास सूं उणरौ माथौ पळूसती रही।