“कितरी बार लगा दी, कमरै रा किंवाड़ खोलणै मांय। कुणसा पान कतरै ही या बहरी हुयगी जमां ई।” पसेव सूं भीज्योड़ा दयालजी, कमरै मांय बड़बड़ाता आया अर ऊळै हाथ मांय थामी बैंत नै भींत सारै खड़ी कर दी, सूंवै हाथ मांय थाम राखी पांच किलो आटै री थैली नै कमरै रै फरस माथै पटक दी जोर सूं। पछै टेबल फैन चला’र पिलंग माथै पसरग्या जियां भोत समान ढो’र ल्याया होवै।

“थे तो कितरी करड़ावण सूं कई सीठणा सुणा दिया। जदकि थानै ठाह है कै गोडां रै दरद री मारी तो बेगी सी उठ सकूं अर जल्दी-जल्दी चाल सकूं म्हैं।”

उणां री जोड़ायत करूणा गोडां रै दरद सूं टसकती कैवण लागी रीस भरी “थारै तो हुकम री तामील तुरत-फुरत हुवणी चाइजै। हरेक काम वास्तै खाताई मचाण री आदत है थारी तो सदा सूं ई। म्हारै दुख-तकलीफ सूं थानै कोई मतलब कोनी, चिंता है।”

धोयोड़ै गाभा नै समेटती बा धणी कानी थाकल आंख्यां सूं देखै ही। उणा कानी गौर सूं देखणवाळी खास बात कोनी ही। सो थ्यावस सूं गाभा नैं सांवटती रैयी।

दयालजी नै पंखै री ताती हवा भी आछी लागै ही। पसीनो सूकग्यो डील मांय कीं ठंडक बापरी, कीं थकेलो भी उतर्‌यो। पिलंग रै कनै पड़ी झारी सूं पाणी लेय’र पीयो गिलास सूं। कीं देर पछै उठ्या बै, कमीज नै उतार नै खूंटी माथै टांग दी। आटै री थैली उठा’र रसोई आगै धर, हाथ-पगां नै धोवण वास्तै बाथरुम कानी उठग्या।

रसोई मांय पीढै माथै बैठ’र करूणा पीपैं मांय आटो घालतां बोली “अजी सुणो हो के...? निमक तो कोनी ल्याया थे। अब के करूं अलूणी बणाऊं के साग-रोटी? जांवती टेम बार-बार ताकीद करी ही म्हैं तो, याद राखियो।”

“अरै भागवाण, म्हनै तो याद नीं रैयो निमक ल्यावणो। अेक दिन अलूणी साग-रोटी खावण सूं किसा मरां हां बावळी..! अब म्हारी तो हिम्मत कोनी आग ज्यूं बरसती गिरमी मांय औज्यूं जा’र लूण ल्याणै री।” थकेलै अर लाचीरगी सूं इयां कैवता बै मूढै माथै बैठ’र हाथ-पगां नै गमछै सूं पूंछण लाग्या अर हळवां-सी पूछ्यो “अनिल आयो के?”

“अजी, थे जाणो कोनी आपणो नुगरो कपूत अब क्यां खातर आसी अठै..? फेर भी रोज पूछो,अनिल आयो हो के..?”

साग बंदारती बा कैवण लागी, “अब बेटो बूढा मायतां कनै क्यामी आसी? उणरी बीनणी अर टाबर तो है बीं कनै। बुढापै री बीमारियां, पीसै री तंगी, आछै इलाज नै तरसता आपां तो जीवां चायै मरां। उणरी बला सूं। आंख ओट, पहाड़ ओट।”

उणरो अंतस दुख-दरद रो तंदूर बणग्यो। इयां लागै जाणै दुरभाग री काळी-पीळी आंधी ईं परवार माथै छायगी।

जद तो घर मांय मसाणां री सी सूनेड़ छाई रैवै। जिंदगाणी सूं सुख-सांती तो बिदा हुयगी अर लारै पिछतावो।

पचासेक साल तो धणी-जोड़ायत अेकमेक होय’र कदे हांसता, कदे मुळकता अर दुख-गमी मांय रोवता बिताया हा। अेक-दूजै नै धीरज बंधायो। कोई बात नीं, ताती-ठंडी तो मिनख जमारै मांय लागती रैवै।

घर मांय छायेड़ी आंधी सैंग सूं बेसी तो धिराणी री मोतियाबिंद आयेड़ी आंख्यां मांय दिखाळी देवै है। दयालजी रै जम्योड़ै पगां नै भी स्यात इण आंधी रै फटकारां हला दिया है। हांसणो-मुळकणो तो उडग्यो अर उणरी जगां व्यापगी उदासी।

गोडां रै दरद सूं टसकती, कुरळाती उण जियां-तियां कर अलूणी रोटी-साग बणा’र थाळी परोसी अर धणी रै साम्हीं पड़्यै स्टूल माथै ले जाय’र मेल दी। बै खाट माथै बैठ्या रोटी नै उडीकै हा।

“अलूणा रोटी-साग बणाया है तो नींबू ल्या दे। साग कीं तो चोखो लागसी।” रोटी रो गासियो तोड़ता दयालजी अणमणा होय’र बोल्या।

“म्हैं तो भूलगी नींबू मंगावणो अर अब कीं कनै सूं मंगाऊं..? पोता-पोती हा, जद तो भाज’र चीज ल्या देंवता दुकान सूं। अब तो आंपा नै छोटी-छोटी चीज बस्त खातर भी इयां तरसणो पड़सी।

गोडां नैं दोनां हाथां सूं दाबती-सैलाती अर रिणकती कैयो धिराणी। कीं देर मून रैय’र बीं हळवा-सी पूछ्यो, “हैं जी, उणां रै घरै भी गया हा के..?”

“हां गयो हो। दोनूं टाबर तो नौकर सागै बैठ्या टीवी देखै हा। अर बीनणी गयेड़ी बताई ब्यूटी-पार्लर।” दयालजी बतायो, “म्हैं घर सूं नीसर्‌यो जद बीनणी पूंची।”

“आपणां हाल-चाल पूछ्या हा के बीनणी?” धिराणी उतावळी सी पूछ्यो।

“बा क्यूं पूछती..? आपणी के गरज है बींनै। जद आपणो बेटो आपणै सूं हेत-हियाव नीं राखै, कदे आय’र हाल-चाल, दुख-तकलीफ नीं पूछै तो बा पराई जाई क्यूं पूछसी ? बा तो चिंता करैली आपरै धणी री, जिणसूं फेरा लिया है, जिणरै साथै जिंदगाणी बिताणी है।”

दयालजी भोत दुखी भाव सूं बोलै हा, “कंपनी मांय हाकम लागतां रैवण खातर सोवणो-सो बंगलो अर कार मिलगी। नौकर राख लियो घर रै कामां खातर। गैली तनै ठाह कोनी के, कीड़ा-मकोड़ा, माखियां तो गुड़ माथै मंडरावै है। अब के है आपणै कनै। नीं मूंडै मांय दांत अर नीं पेट मांय आंत।”

“जिण घर मांय जलम्यो, जिण घर मांय खेल-कूद’र बडो हूयो, खूब पढ्यो भी, अब हाकम बणतां घर बींनै काळ-कोठड़ी, मुर्गीयां रो दड़बो-सो लागण लागग्यो।” थाळी मांय चळू करतां दयालजी भळै कैयो।

बा औंठी थाळी नै रसोई मांय ले जावती किरोध सूं बोल पड़ी “अजी, हजारां रुपयां री तनखा लेवणवाळो बेटो, अब थोड़ी-सी पिन्सणवाळै बाप रै घरां कियां रैय सकै है। नीं रैवै तो ना सई, बंध्यो रैवै लुगाई रै नाड़ै सूं। बा है उणरी सो क्युं। काळजै री कौर, जीव री जड़ी ! आपां तो अब जीवता मर्‌या समान हुयग्या हाकम बेटै खातर तो।”

“अरै गैली, बीनणी रो दोस कोनी। घोड़ी तो नाचै है खूंटै रै ताण ई। जे अनिल कंपनी मांय आवतो-जावतो आपणां हालचाल पूछज्या कै पिताजी, ठीक-ठाक हो नीं। मां, थारै गोडा रो दरद अब कियां है..? कोई चीज-बस्त, कोई दवाई या कोई बीजो समान ल्याणो है तो बताओ, म्हैं ल्या’र देस्यूं थानै। इसी गरमी में घर सूं बारै ना निसरियो।”

बहू सूं बेसी दोसी हुवै है बेटो ई, जिको हाकम बणन री गुमराई मांय भूलग्यो कै म्हारा अै सब ठाट-बाट, रईसी, म्हारै मां-बाप री बदोलत मिली है म्हनै, जिका म्हारो भविस सजाणै-संवारणै खातर नीं तो आछो खायो, नीं आछो पैर्‌यो कदे भी।

लाडेसर अनिल जिकी भी चीज खातर बाद कर लेवतो, बींनै लेय’र मानतो। पण आज हर तरां सूं लाचार बां दोनां री हिम्मत नीं हुवै, बेटै नै कीं भी कैवण री, कोई जरूरत री छोटी-मोटी चीज-बस्त मंगाणै री।

क्यूंकै पुत्र राज हुवै है परेत राज। जवान मोट्यार हाकम बेटो जाणै कद कीं बात माथै बूढै मायतां नै दड़का दे, दकाल दे तो मरण हो जासी।

सोच’र घणकरा बूढा मायत बेटै सूं कोई भी बात कैवण सूं पैलां कई-कई दिनां ताईं सोचै है। दुबिधा मांय पड़्या रैवै है बेटै नै कैवां कै नी..?

जदकि बूढा मायत तर माल, माल-मलिदा तो खा नीं सकै। अर नित नवी पौसाकां पैरण रो कोड भी नीं हुवै उणानैं। खेल-तमासा देखण री भी चावना, कोड हुवै है। हां मिंदर-देवरै जाण खातर तो उणा रो मन भोत उमावै है। पण अेकला तो जा नीं सकै अर बेटै नै टेम नीं मिलै।

अेकर मां डरती-सी कैयो हो “बेटा, म्हे रामसुखदासजी रै सत्संग मांय जाणो चावां हां, जे तूं कैवै तो...।”

“ना-ना, कोई जुरत कोनी सत्संग मांय जावण री, कठैई आखड़नै पड़ग्या अर टूटग्या हाड-पांसळा तो कुण करसी थारो गू-मूत। अब हार्‌यां हर भज्यां सूं के थानै सुरग मिल जासी..?”

“बेटो जिकै दिन मां नै इसी दकाली ही कै फेर कदे भी नाम नीं लियो सत्संग मांय जावण रो। फेर बडेरा मायत तो चावै कै बुढापै रै जानी-दुसमण अेकलपणै सूं कीं देर वास्तै सही, दोय घड़ी कनै बैठ’र बेटो, दुख-सुख री, दुनियादारी री बातां तो करै हेत-हियाव सूं। मायतां नै जतावै कै थारै सूं रोजीणां अेकर आय’र मिल्यां बिनां म्हनै जक नीं पड़ै।”

दयालजी पिलंग माथै आडा हुवता दुखी सुर मांय बोल्या “थोड़ी-सी तनखा मांय भी बेटै नै खूब महंगी पढाई करायी ही, सोच’र कै अेक दिन म्हे भी राज रजांगा बेटै री हाकमाई माथै।”

“पण बै सुणैरा सपणां बदरंग कर दिया गुणहीण, नुगरै कपूत अर अब नितको रोवणो-झींकणो पल्लै पड़्ग्यो ईं दुखदायी बुढापै मांय। हर घड़ी रै संताप अर ब्याथा सूं कळपता-कुरळातां रो पूजा-पाठ, माळा-मणकै, क्यां मांय भी मन नीं लागै।”

“जद जलमेड़ी औलाद आंख्यां फेर ले है तो सांवरियै नै के ओळमो देवां आपां। कदे भी तो सांचै मन सूं दो घड़ी थ्यावस सूं बैठ’र याद नीं कर्‌यो भगवान नै।”

“अब थारै मोतियाबिंद रो अपरेसण नीं हो सकै रुपियां बिना तो के अनोखी बात है जद इसो बेपरवा बेटो हुवै।” दयालजी उबासी लेवतां कैयो।

“अजी, छोरै अेकर कैयो तो हो कै मां थारै मोतियाबिंद रै अपरेसण रो खरचो म्हैं दे देस्यूं। पण अब तो जिकर नीं करै।” उण मर्‌यै सुर मांय कैयो।

“के धूळ दे देसी खरचो।” बै रीसां में बोल्या “लुगाई रै नित नवा बेस-बागा, लाली-टीकी अर गैणा खरीदण सूं कद टेम मिलै बींनै, जद तो कीं धन-धन करै। आपणी गळती री सजा तो आपां नै ही भुगतणी पड़सी। बेटै रो भविस संवारण वास्तै आपां तो हुयग्या-हर तरै सूं कंगाल।”

“अब तो बस, सांवरै रो आसरो है, भरोसो है अर अरदास करणी चायै, दीन-दुखिया रा दाता बुढापै री दुख तकलीफ सहण करणै री सगती देई मालकां…!” इयां पछतावां अर सांवरै सूं बीणती करतां नै नींद आयगी बांनै।

धणी नै सूत्या जाण बा रसोई में जाय’र गैस पट्टी माथै फैल्यै समाण नैं समेटण लागी, गोडां रै दरद सूं टसकती थकी। उणरो हाड-हाड दूखै गठिया रै कारण। पण सोवै कियां..? अबी तो औंठ्या बासण मांजणा है, दही जमाणो है, गोडां नै सेकण खातर पाणी गरम करणो है। दरद कम हुवण री गोळियां भी तो गिटणी है, धणी रै पिलंग कनै धरी झारी मांय पाणी भरणो है। पैड़्यां री सांकळ लगा’र दरूजै रै भी ताळो जड़णो है।

जाणै कद लारो छूटसी, घर-गिरस्ती रै ईं जंजाळ सूं..? इयां सोचती रो मन भरीजग्यो उणरो। हीयो उझळण लाग्यो दुख-दरद अर लाचारी सूं। आंख्यां सूं आंसूवां री झड़ी लागगी तो उण अपणै मन नै समझायो “जीवड़ा, रोणो-धोणो बेकार है। बहू रै करम मांय लिख्यो है सुख अर म्हारै भाग मांय लिख्यो है दुख अर रोणो-झींकणो। बेटै-बहू नै दोस नीं देवणो चायै। सांवरो उणा री हजारी उमर करै, म्हारी आत्मा तो आसीस देसी।”

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : सावित्री चौधरी ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान, डॉ. सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कथेसर प्रकाशन, परलीका ,
  • संस्करण : 24-25
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