उगतो सूरज राम-राम सा
छिपती बखतां कांई काम सा।
सौ को नोट नीत डिगादे
कमा’र खाणो आज हराम सा।
मांगण आया बांथां घाली
जीत्यां पाछै कांई नाम सा?
जकै दिनां बां पूंछ हलाई
आज होयगा म्हे गुलाम सा।
रिश्वत तरकी खूब करादे
बिन पीसां तो पूर्ण विराम सा।
परसराम जण्या जण धरती
आज जलम री सुखराम सा।
गैलै-गैलै चल्यो ‘दीप’ तो
थूं रै ज्यासी बिना मुकाम सा।