थोथी रीत निभार्‌या लोग

झूठी पूंछ हलार्‌या लोगा।

खराब जमानो आगो इब तो

सदियां सूं बतळार्‌या लोग।

मुंह फिरतां छुरो घोप दें

साम्हीं मुस्कार्‌या लोग।

रोज घरां सूं सीता उठ री

रावण बणता जार्‌या लोग।

कैई पी रैया जूस, मैकडोल

तिस मरता दु:ख पार्‌या लोग।

हाय डार्लिंग, हेलो डैड इब

यो कल्चर आपणार्‌या लोग।

कांधै पर अरथी बाबै की

स्कोर पूछता जार्‌या लोग।

मीरां, तुलसी, कबीर भूल कै

पॉप धुना पर गार्‌या लोग।

राम बड़ो है गूगै सूं पण

सांच नहीं कै पार्‌या लोग।

मन में छळ है घणो ‘दीप’ पण

फिर बी हाथ मिल र्‌या लोग।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : प्रदीप शर्मा ‘दीप’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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