तूं आलोक उजास धणी!

कळमष रो कर नास धणी!

सिमरथ तूं सबळो सखरो

थां सूं लूंठी आस धणी!

तूं जगती रो भलचाहू

मन में दृढ विश्वास धणी!

किरपा कर, कर मै’र अबै

जीयाजूण उदास धणी!

मिनख हुया स्सै विवश अठै

पीवै सीली सांस धणी!

निरमळ बायरियो बैवा

धरती अर आकाश धणी!

स्रिष्टी सैमूळी मुळका

हिवड़ां भर हिंवळास धणी!

गावै जीवण; बंद हुवै

अबै मौत रो रास धणी!

राजिंद जाचक री सुणलै

अरजी अर अरदास धणी!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेंद्र स्वर्णकार
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