सवालां सूं भरियोड़ी जूण

तलवार री धार माथै जूण।

बैतो पाणी है जूण

अलेखू मोड़ा सूं भरी जूण।

उठ्यो समंदां देख जवार

भाखर सूं टकराई जूण।

भटकता रैया आखी ऊमर

पण मौत सूं अळगी जूण।

खुद री उदासी रो नी कारण

आई बला नै टाळी है जूण।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : सुशील एम.व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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