मिली निजर तो म्हैं घबरायो।
थी बा ई घबरायोड़ी सी।
रूप रंग को के जिकरो है
राम की खुद बणायोड़ी सी।
बाल हवा में लैरा र्या यूं
काली घटा सी छायोड़ी सी।
नैण कहूं कै समदर कैद्यूं
बिल्लोरी शरमायोड़ी सी।
सिर सूं पग तक रस टपकै अर
अल्लहड़ता गदरायोड़ी सी।
शरम लाज अर शंका मानो
अपणै आप समायोड़ी सी।
देखी तद सूं लगी जिन्दगी
इब तक बिरथ बितायोड़ी सी।
सांस ‘दीप’ की इब तक उखड़ी
अर तबियत थर्रायोड़ी सी।