देख तो कतनी अंधारी रात है

बोल थारा मन में कांई बात छै

वास्तै दुष्टां के तू चंडी बणीं

म्हारे लेखै तो दयालु मात छै

ओळमों अबला को हो छै जै थनै

सोच वां मरदां की खईं औकात छै

कोख थारी सूं जलम्यो छै जगत

सगळो दमखम ईं को थारा हाथ छै

थारी ये गजलां जमाना के तईं

‘पंकज’ इक अणमोल सी सौगात छै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : हेमन्त गुप्ता ‘पंकज’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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