फूंक दे, फूंक! आग चेतेगा।
फूंकियां लोग—बाग चेतेगा॥
चेत रे पेल, माघ रे केड़े—
फागण्यो लाग फाग चेतेगा।
मोर नाचेह वीजळी राचे—
आज तो मेघ राग चेतेगा।
फूल पे रीझ र्यी रसिक तितली—
प्रेमपण ऊं पराग चेतेगा।
जोय को व्हे सतीह सावितरी—
तोय जातो सुहाग चेतेगा।
नित भला काम कर्यां ‘गुप्तेश्वर’—
एक दन देख! भाग चेतेगा।