किरकांटियो आपरो रंग देखावै

भांत-भांत रा रंग देख लो

सुण्यो है कै रंग बदलै ढंग बदलै

सुख दु:ख रे भंवरजाल में

नैड़ा दीखै खुद का दुस्मी

कुण आपरो नै कुण खापरो

की ठा नीं पड़ै कुण करै

काढ़ देवै आपरा आंटा

सगळा बेरा में भांग घुळगी

अलूझियोड़ा सवाल ‌ओरूं अलूझग्या।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : सुशील एम.व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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