किण मद-छकी रै मोह री मनवार है गजल?

किण गोरड़ी रै रूप रो सिणगार है गजल?

नट जावणौं, नैं नेह नैंणा निरखतो रै’णो

आपरै जिसी गुनैंगार है गजल।

हिमळास इसो, हेत ओ, हामळ खरी-खरी

हस-हस हमेस मुकरणै री वार है गजल।

रूप रो रतन जतन घणैं अवेरियो

पल एक फकत दरस री दरकार है गजल।

हिय में उमंग-रंग बिखरियो, ज्यूं हींगळू

जो आप आवो, तीज रो तैवार है गजल।

दीठा कदै थे, कदै अदीठ नीं रह्या

इण दीठ बारै आपरै उणियार है गजल।

स्रोत
  • पोथी : गुनैगार है गजल ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : कला प्रकाशक जालोर
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