जोर भूखां रो आजमावण नैं

मिळो, सै मिलो महल झुकावण नैं।

कंगूरा कोट रा खिर नैं रैसी

छौण झूपा रै सिर सजावण नैं।

विपद रो हिमळो जुड़ जावण दो

मनां में एक गंगा लावण नैं।

हाल काळी रो खप्पर खाली है

रगत चइजै जगत सजावण नैं।

गीतड़ा फाग रंग बरबासी

उगेर तो खरी कीं गावण नैं।

स्रोत
  • पोथी : गुनैगार है गजल ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : कला प्रकाशक जालोर
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