हाय! कितरो अठै अंधारो है।

ड़रप मत, एक, पण अंगारो है।

देस आखै’ई अंधारो दीसै है

रावळै रूप रो नजारो है।

छिदाम री रुखाळी में रिपियो

राज है कै कोई रुळियारो है।

पलक में पड़ै, पलक चढ़ जावै

मिजाज आपरो है, पारो है।

ओठ नैं दाब, थोड़ा द्रिढ़ रैवो

मुसीबत मिनख रो जमारो है।

स्रोत
  • पोथी : गुनैगार है गजल ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : कला प्रकाशक जालोर
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