जीवण रो दै मोल भलोड़ा

मिनख जलम अनमोल भलोड़ा

नसवर है देह थारली

धड़ा बराबर तोल भलोड़ा

चार दिनां रो है जीणो

क्यूं गाळै है कोल भलोड़ा

रणकार नी अै मंदिर रा

खट मोबाइल खोल भलोड़ा

दया प्रेम अर नेह मिल्योड़ी

जुगती रै मन डोल भलोड़ा

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : अब्दुल समद राही ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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