मिनख कैवै है कै दिवाळी है।

घणां सारु तो रात काळी है।

जिको गैला सा लागता बारै

मजै सूं कुरसियां रुखाळी है।

जड़ां-पतां नैं बाढ़ नांखैला

फूल सारु, इसा माळी है।

चौकीदारां रो वेस पैरण नैं

चोर कर रह्या रुखाळी है।

बाणियां रै तो जागीरां बधगी

भीमलौ हाल तलक हाळी है।

उणौ रै वोट पेटी में पड़िया

जिणां रै हाथ में दुनाळी है।

स्रोत
  • पोथी : गुनैगार है गजल ,
  • सिरजक : रामेश्वरदयाल श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : कला प्रकाशक जालोर
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