न जाणै कद अर कुण कै सीस भूत सवार हो जावै।
बरफ की कांकरी, बळतो हुयो अंगार हो जावै।
जवानी बावळी आंख्यां हिया की फोड़ नाखै जद,
गधी भी अपसरा लागै ज ऊंसैं प्यार हो जावै।
जगत कर पीड़ को बिस पी’र मीरां मांत दे शिव नै,
सरप फुंकारतो ऊंका गळा को हार हो जावै।
समरपै नाव जीवण की नचीतो हो’र भवनिधि नै,
उफणता ज्वार ऊंका पाल अर पतवार हो जावै।
गनां, तोपां’र पैटनटैंक गोळा मोड़ ले मूंडा,
अड़’र रणभोम मैं ऊबा मृदंग सितार हो जावै।
मिनख की जूण में भोग्या हुया वै पल सफळ समझो,
कै जद अणजाण में अणजाण को उपकार हो जावै।
न पलकां, घूंघटा, पड़दा, किंवाड़ां की करै परवा,
कदै वै छिब दिखाबा नै मनै जद त्यार हो जावै।
न पत्तो एक भी ऊं पेड़ को झड़ै, सूखै, बळ पासी,
भलांई बीजळ्यां पड़ै, मेह मूसळ धार हो जावै।
दया ऊंकी बणी है तो, न होवै बाळ भी बांको,
भलाईं 'बुद्धि' को बैरी सकल संसार हो जावै।