तकदीरां री बातां अै

बिण साजण री रातां।

वारै आंगण रोज बिलोणौ

इण घर फगत परातां अै।

सुपना देखा सोनल रा

बस ओळूं री ख्यातां अै।

कोकर जीव पतीजैला

न्यारी-न्यारी न्यातां अै।

सोच-समझ नै पग धरजै

घोळै दिन री घातां अै।

म्हैल घणा चौखा है

चूवै घर री छातां।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : अशोक जोशी 'क्रांत' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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