बै’ता ढाणा ठौर ठिकाणा, कुण जाणै किण पाळ कठै

म्हे बिणजारा गीतड़लां रा, आज अठै अर काल कठै

हंसता गाता टेर लगाता, गीत सुणाता लोगां नै

म्हे सबदां रो बणज करणियां, बेचां साचो माल अठै

सुन्दर सुपनां में बिचरणियां, जीवां सदां कळपनां में

चिंतन में अंबर स्यूं ऊंचा, चढ ज्यावां तत्काल अठै

म्हे मनवारां रा लोभीड़ा, मनड़ै नै मनुवार मिल्यां

अणगायोड़ा भी गाज्यावां, मिल ज्यावै सुर-ताल जठै

म्हे मनमोजी रमता जोगी, घर-घर अलख जगावणियां

मेळा रै रेळां में डोलां, गाता फाग-धमाल अठै

म्हे तो पंछी रैण बटेऊ, भोर पड्यां उडज्यावाला

जाणै कल री रात कठै अर किण तरुवर री डाळ कटै

भाट भगत रा दास कलम रा, वंसज सूर कबीरै रा

हाल फकीरी में होर्‌यां हां, म्हे तो मालामाल अठै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : ताऊ शेखावाटी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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