अबलावां रो अपहरण, डाकुआं री आड़ में

पेट थोड़ो फूल ज्या, देश जाओ भाड़ में।

धोल पोस म्हे बणा, नाम थोड़ो फैलज्या

बान्दर बांट कर धरां, दो जणा दी राड़ में।

लैरलै चुनाव मांय, लांग काडी कालियै

बैर सारो काढ़णो इब मूत-मूत बाड़ में।

ढबर्‌या था काल तांई, बोद अर भूख सूं

आज कोठी ठोक दी, बावनी उजाड़ में।

जातियां रै नाम पर, मानखो, लड़ावणो

आबरू तक बेचद्‌यां वोट कै जुगाड़ मैं।

गांधीजी रो रूप देख, वोट दीप म्हे दियो

खोद्‌यां पाछै नीसरी, मूसरी पहाड़ मैं

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : प्रदीप शर्मा ‘दीप’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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