क्यूं बुहावै बावळी! बिरथा नयण रो नीर!

क्यूं थारै अेकली रै नहीं है पीर!

चान्द रै चैंठ्यो हियै पर

पीर रो है दाग!

तेजसी-तपसी सुरज नै

बाळ रैयी आग!

है नहीं सिंसार में किणरो अछूतो भाग!

कुंडळी मार्‌यां न, जिणमें पीर रो है नाग!

समझ स्याणी! जिन्दगानी पीर री जागीर!

क्यूं थारै ‌अेकली रै नहीं है पीर!

मेवला रोवै, निभावै

पीर री रीत!

बीतग्या जुग, पण पायी

पीर उपरां जीत!

बीजळी तड़पै घणी, पण कुण पिछाणै प्रीत!

आज-लग गावै पपैयो, पीर रा गीत!

मोरलां रै पग बंध्योड़ी, पीर री जंजीर!

क्यूं बुहावै बावळी! बिरथा नयण रो नीर?

पून समदां सूं उठावै

है कदै जळधार!

अर कदै आंध्यां लियां

भाजै घणी लाचार!

पीर रो आयो कोई अन्त, कोई पार!

तूटग्या कितरा जलम, कितरा मरण रा तार!

पण अटळ रैयी हमेसा, पीर री तकदीर!

क्यूं थारै अेकली रै नहीं है पीर!

है जठै हिरदा, बठै तू

पीर वासो जाण!

पीर कद राखी किणी री

इण जगत में काण!

जद पछै रोणो किस्यो, धोणो किस्यो अणजाण!

चाल रैयो है जमानो, पीर रै पाण!

आंख रा आंसू बदळ सक सी कियां तासीर!

क्यूं बुहावै बावळी! बिरथा नयण रो नीर?

स्रोत
  • पोथी : मरवण तार बजा ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकांत ,
  • प्रकाशक : कल्पनालोक प्रकाशन (रतनगढ़)
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