सवारता-सवारता सौ बार हो गई।

जिंदगाणी लीर तार-तार हो गई॥

जाण-अणजाण री पिछाण खूटगी।

खाज खिणता आंगळी सू आंख फूटगी।

खींच्या पैली डौर नै कबाण टूटगी।

खाली पड़ी खणक बन्दूक छूटगी।

खार-खार मार मन हार हो गई।

सवारता-सवारता सौ बार हो गई।

जिंदगाणी लीर तार-तार हो गई।

एक तीर आखिरी रियो कबाण में।

टूट गियो तटकै भरे मैदान में।

मर गियो कानिया झूठै ऊफाण में।

आग दे कोई नहीं नजर मसाण में।

ब्याज-दर-ब्याज करजदार हो गई।

तेज रफ्तार मझधार हो गई।

सवारता-सवारता सौ बार हो गई।

जिदगाणी लीर तार-तार हो गई॥

रात अधियाळी परभात धुंधळी।

मौत खड़ी बारणै पे सांकड़ी गळी।

छियां सू डर लागै मची खळबळी।

छाछ फूंक-फूंक पीवै दूध सूं जळी।

डरवाळी ठौड़ सू तो पार हो गई।

घर के मकान में सिकार हो गई।

सवारता-सवारता सौ बार हो गई।

जिंदगाणी लीर, तार-तार हो गई॥

आजाद उडतै पंछी रै मार पंख पर।

घायल-सो करद्यो बेहाल ढंग कर।

पूछती खड़ी है भीड़ हर मकान पर।

लगाम-सी लगाय दी कोई जुबान पर।

बोलै चालै बीमार हो गई।

मरण-जीण इकसार भार हो गई।

सवारता-सवारता सौ बार हो गई।

जिंदगाणी लीर तार-तार हो गई॥

स्रोत
  • पोथी : मुरधर म्हारो देस ,
  • सिरजक : कानदान ‘कल्पित’ ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन बीकानेर
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