सारी-सारी रैण काट ली अणबोल्यां म्हे।

मन की गांठा मांय राखली अणखोल्यां म्हे॥

बात चिन्ही सी ही बे बोल्या मन म्हारो हरसावै,

सूनी पड़ी हथेल्यां मेहंदी मांडो सावण आवै।

मैं बोल्यो अब ईं उमर में कांई मांडू मेहंदी,

कांई केवैली थांकी सखियां सैंदी-अणसैंदी।

रूस पोढगा बे तो रहगा हाथ मल्या म्हे॥

म्हारी जिद पै'ली बे बोलै बे चावै मैं बोलूं,

हियै लगाऊं और मनाऊं पछ निजरा सूं तोलूं।

पहली-पहली मन में करता रात आयगी आधी,

मधुर मिलन की बेल्यां दोनूं जिद कै मांय गंवादी।

दोनूं रहगा रस प्रेम को अणघोल्यां ही म्हे॥

तारां छाई रात सुहाणी नींद कुणा नै आवै,

पसवाड़ा फोरां दोनूं पण बतळायो नीं जावै।

चांद ढळ्यो मुर्गो बोल्यो तो प्रीत हिया में जागी,

पल में सगळी आंट पिघळगी गौर काळजै लागी।

आंसूड़ा बरसावण लाग्या अण तोल्या म्हे॥

सारी सारी रैन काट ली अणबोल्या म्हे॥

स्रोत
  • सिरजक : धनराज दाधीच ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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