पियर में छोड आई बाबुल को आसरो

कर दी म्हूं पराई दहेज मल्यो साबरो

दे तो ल्यूं मुरझाया मन ने दिलास—

थोड़ा सा ठहरो पिया लाज्याँ लजाऊं।

धीरज रखाणो सैयां मन की बुझाऊं॥

कानाँ में गूँज रही भाइल्याँ की बातां

नैणा में डोल रही खेलबा की राता

पीयर की मौज हुअी सपना सूं दूर

आंगण की तुलछाँ को उतर्‌यो होगो नूर

भूखो बैठ्यो होगो म्हारो बाबुल उदास॥

गालां सूं मटर्‌या मायड़ का चूंबा

मोराँ पै दूख रह्या छोर्‌या का घूंबा

काळज्या में बसरी म्हारा पियर की पोळ

काना में पणघट की गूँजे रमझोळ

म्हारी जामण के अटकैगा गळ बीचै गास॥

ऊमर कद पूग गई जोबण के द्वारे बाबुल के

छूट गई म्हाँ सूं म्हारा अंगणा की धूळ

सैजां का फूल म्हानै लागै आज शूळ

तन पै सोळा संणगार पण मनड़ो उदास॥

बीरा की आस गई अब थांको आसरो

चांद सो पियर ग्यो मल्यो सूरज सो सासरो

पंचां की साखी में करदी थां की लार

गिरस्थी की नैया का था खेवणहार

जद तांईं पूणी रहे कातणो कपास॥ थोड़ा सा॥

सपना में देखी दूजा की काया

जामण को लाड देख्यो बाबल की छाया

बरत करर सीखी सबर मून लेर लाज

गौरी पूज धीर धर्‌यो पाया सरताज

म्हारा मन का मदरिया में थां को ही बास॥

थोड़ा सा ठहरा पिया मन की बुझाऊँ॥

स्रोत
  • पोथी : ओळमो ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • प्रकाशक : जन साहित्य मंच, सुल्तानपुर (कोटा राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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