म्हारी नणदल बाईसा रा बीर, चाकरी छोड, हजूरी छोड

अबै थे घरां पधारो राज! खेत में द्‌यो हळकारो राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी।

काळी कळायण घिर-घिर आवै, गरज-गरज बिजळी चमकावै

रिमझिम-रिमझिम बरस मेवड़ो, झड़ी लगावै राज!

मोरिया सोर मचावै राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी।

सरवर-ताळ-तळायां भरगी, मुळकण री रुत आयी सुरंगी

ऊंचो मुळकै चांद, धरा नीचै मुसकावै राज!

जीव सै खुसी मनावै राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी।

खेत बाट मुळकण री जोवै, हळ हाळी बिन आंसू खोवै

नागौरी बळधां री जोड़ी झाला देवै राज!

हेत सूं ढींक बुलावै राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी।

थे बांध बीजियो खेत सिधाज्यो, मुळक-मुळक तेजो भल गाज्यो

मोठ बाजरी बीज खेत में, अन्न उपजाज्यो राज!

काळ नै दूर भगाज्यो राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी

हूं चूर-चूरमो भातो लास्यूं, मूलां-मूलां बीज तोपास्यूं

काकड़िया मतीरा खा-खा मौज मनास्यां राज!

धान रो ढेर लगास्यां राज!

आपणी धरती में राजन! आपणी धरती में बरसी बिरखा मोकळी।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला भीम पांडिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : भवानीशंकर व्यास 'विनोद' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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