रात अँधारी, आँधी आई, बादळिया उमड़्या आवै हा!
चांद लुक्यो आभै-आंचळ में, तारा भी डूब्या जावै हा!!
सुपनो आयो राजकुँवर नै, थर-थर दिवलो दुख गावै हो!
तेल मुक्यो, पण 'लौ' सिसकै ही, मन बाती नै उकसावै हो!!
मन में आई, इण प्राणारो, मोह मानखै नै क्यूं भावै?
क्यूं ओ जबक बुढापो आवै, मौत मिनख नै क्यूं खा जावै?
कोई तो जंजाळ मिटादे, इसड़ो कोई पंथ दिखादे?
पीड़ा घुळ घुळ दीप जगादे, बुझती लौ नै आस बँधादे!
गौतम जाग्यो, गैल न सूझी, आँख्यां में चिंता घिर आई!
मिनखपणै रो दुख कद छटै, थी दुख-छाया मन पर छाई!!
सेज पड़ी सिसकारण लागी, हिवड़ै भीतर आग लगागी!
परणीता री आस पुकारी, प्रीत खड़ी ललकारण लागी!!
नान्हों सो बाळकियो सोयो, दूध चुँघाती मायड़ सोई!
गौतम री आँख्यां भर आई, प्रीत हियै भीतर कुरळाई!
रूप लुभाणी नारी सोई, पलकां भीतर सुपना बंदी!
मुखड़े पर झुक गौतम देख्यो, सांस सुणै ही मंदी मंदी!!
जोबन ममता दोनो उठग्या, चरण पकड़ गौतम रा रोया,
आंसू आया, सिसक्यां बँधगी, राजकुँवर रा सुपना खोया!!
बचपण आयो, बेटो बणके, बोल्यो, बापू! यूं मत छोड़ो!
माँ री प्रीत नहीं भावै तो, बाळकियै सूं नातो जोड़ो!!
मन में बोल्यो, मन रो वासी, गौतम सारा बंधन तोड़ो?
छोड़ो घर नै, छोड़ो धण नै, जीव-जगत सूं नातो जोड़ो!
सोई-सोई सांसा बोली, प्राण पिया थोड़ा मुड़ आओ!
खोयी-खोयी आँख्यां बोली, आँसूड़ा मत भर-भर ल्याओ!!
जाओ जाओ प्राण पुकार्या, म्हारा बंधन आज छुड़ाओ,
मैं नित आऊ-जाऊँ जग में, जलम-मरण रा पाप मिटाओ।
बादळिया धीरै सी घुळग्या, पो फाटो, परभाती मुळको,
रात अँधेरी धोळी पड़गी, दुख सुख में, सुख दुख में, घुळग्या॥