कोई आवै होट रचावे

कोई हूँस खाडबा काण।

कोई अमली अमल करै अर

कोई छाणै सतरा छाण॥

कतना समझ्या सागर आवै, कतना नपट अनाड़ी।

सब को लेखो बाँच रह्यो चौराया को पनवाड़ी॥

जिंदगाणी का पत्ता पै सुख-दुख को कत्यो-चूनो

कोई मांगै सारा-सूरो कोई नपट अलूणो

चिमटी भरी बहार दो घड़ी का सुख की सतूनो

होळ्यो भरी सुपारी संधर्णा सूं लड़बो दूणो

लाम्बी ऊमर नकदी फांकै

ओछी उमर उधारी

सबकी किस्मत जांच रह्यो चोराया को पनवाड़ी॥

चौराया का चारूं गैला थारै द्वारै आबै

भरम्यो मनख बारणै आ-आ पाछो ही चल जावै

समझाबा सूं कुण समझ्यो अर हेला पै कुण आयो

जे भी आयो थारी चौखट अपणी गत सूं आयो

रीतो आयो रीतो ठेल्यौ—

भरियो लियो अघाड़ी॥

समरथ के संग नाचरहयो चोराया को पनवाड़ी॥

उगती सूं ढळती तांईं तू कतनी सांसाँ गणतो

सबका स्वाद पछाण राखतो, सौ सौ रिश्ता बणतो

नागरबेल खिलाबा हाळो तीन पनौती बाटै

यो बे अकल मनख जाणैं, लख चौरासी काटै

थारा दर पै नंगो आयो

ओढ़ चदरिया फाड़ी॥

‘जल में मीन पियासी’ सुण-सुण हांस रहयो पनवाड़ी।

सबको लेखो बांच रह्यो चोराया को पनवाड़ी॥

स्रोत
  • पोथी : ओळमो ,
  • सिरजक : मुकुट मणिराज ,
  • प्रकाशक : जन साहित्य मंच, सुल्तानपुर (कोटा राजस्थान) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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