पांन कूंपळा काढ़िया रै, रंग सुरंगी रेत

ऊगौ अळियौ घास अणूतौ, आथूणै भरेत

करसा चेत सकै तौ चेत

पैली करले रै निदांण!

साटौ घास सिनावड़ौ जी, बेकरियौ नै कांटी

सळियौ खेत करै नीं जद तक खेती बधै लांठी

लागै तीखी धार कसी रै, बादै जड़ा समेत

करसा चेत सकै तौ चेत

पैली करले रै निदांण!

चूसै घास खात नै पांणी, गाढ़ धांन रौ गाळै

थूं कांई जांणै थारी मैणत, पेट कितां रा पाळै

भरी गवाड़ी रैवै जद तक, करै मांनखौ हेत

करसा चेत सकै तौ चेत

पैली करले रै निदांण!

देख जमीं में जड़ां तूंतड़ा, जोर जमाणौ चावै

जीणौ व्है तो बांध मोरचौ, लांबी जेज लगावै

बोलै ज्यांरा बिकै बूंमड़ा, खड़ै जकां रा खेत

करसा चेत सकै तौ चेत

पैली करले रै निदांण!

स्रोत
  • पोथी : चेत मांनखा ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : कोमल कोठारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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