पड़दै रै भीतर मत झाकी।
ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी,
ढक्योड़ो भरम उधड़ जासी,
जीवण में गांठया घुळ जासी॥
थू जाणै कितरा देख अठै बैठा है मूंड मुंडायोड़ा।
थू जाणै कितरा देख अठै दुगला नर भेख बणायोड़ा।
थू जाणै कितरा देख अठै मठधारी तिलक लगायोड़ा
बैठा कितरा अवधूत अठै, तन गाही राख रमायोड़ा।
भगत री भगती नै मत देख,
धरम री धज्जियां उड़ जासी।
पड़दै रै भीतर मत झाकी,
ढक्योड़ो भरम उधड़ जासी॥
पीछै पड़दै री छाया में, थू जाणै छळ री माया है।
दस तेरा कै बीसा पंथी, थू जाणै सब उळझाया है।
गाभा में सैंग उघाड़ा है, हर पाव तिसळता पाया है।
मिनखां नै कांई दोस अठै, वे-देव लुढकता आया है।
जम्योड़ी रजी मती उड़ाय,
पेड़ री जड़ा उखड़ जासी।
पड़दै रै भीतर मत झाकी,
ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी॥
भीता भीतर सू खोळी है, ऊपर तो रग रनोळा है।
चोळा तो ऊपर का खोळा, भीतर लै समद हबोळा है।
देख्या सू घण पिसतावैलो की नहीं पोल का गोळा है।
सागर री लैरा देखी पण, भीतर किण नै टटोळा है।
सोनै रो झोळ उतरता ही,
ठाकुरजी पीतळ रळ जासी।
पड़दै रै भीतर मत झाकी,
ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी॥
धरम री चादर ऊपर ताण, सूता कुण मौजा माणै है।
कुणीं नै नीत बिगाड़ी देख, कुणा रो जीव ठिकाणै है।
करै कुण किरतब काळी रात बा नै के थू नहीं जाणै है।
हवा में खोज मंडै बिण रा पागी थू पग पिछाणै है।
भेद री बाता नै मत खोल
पोल रो ढोल बिखर जासी।
पड़दै रै भीतर मत झाकी
ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी॥
आप री अपणायत नै देख अणेसो मन में आवैला।
थारा नै निजरा सू निहार घिरणा सू नाक चढावैला।
परवाड़ा बाच्या जे पाछा नैणा री नींद उडावैला।
चालै ज्यू चालण दै चरखो आख्या री सरम गमावैला।
जीवण सू मती करी खिलवाड़
कागदी फूल बिखर जासी।
पड़दै रै भीतर मत झाकी
ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी॥
पड़दै रै भीतर मत झाकी ढक्योड़ो भरम उघड़ जासी।
ढक्योड़ो भरम उधड़ जीवण में गाठया घुळ जासी।