जितरी जड़ां जमीं में होसी उतरी साख बधीजैला
जितरी रूई कतरण राखै, उतरौ सूत कतीजैला।।
जिण पिणघट पर प्रीत न पावै, उण घट पाणी पीणौ के,
मन रो मोद मनां में मुरझै, इसौ जमारौ जीणौ के,
बतळायां सूं बोलै कोनी, काम पड्यां क्यारी काटै
जां रै मन री मंगजी फाटी, बी नै पाछी सीणौ के।
जितरा पाट पड़ौसी रैसी उतरौ मंयौ पिसीजैला
जितरी रूई कतरण राखै उतरौ सूत कतीजैला।
आसमान पर खेत फळे नीं, जै तारा थारा कोनी,
समदर छोळां हेत बधानीं, औ धारा थारा कोनी,
ओस बूंद कद माळा पोवै, सपनां किण रा सांच हुया
छाया रौ चितराम बावळा, उणियारा थारा कोनी
जितरी नजर भंवीजै भरमै, उतरौ हियौ तपीजैला
जितरी जड़ां जमीं में होसी, उतरी साख बधीजैला।
इण जग रौ है उलटौ धारौ, बोल कठै अर चाल कठै,
गंठजोडै री गांठां उळझै, कोल कठै अर ताल कठै,
काया तौ कागद री माया जो लिखणौ सो लिखदै रे
मन रै बड़लै साख हजारूं मूळ कठै अर डाळ कठै
जितरी तिरस बुझाणौ चासी, उतरी तिरस बधीजैला
जितरी रूई करण राखै, उतरौ सूत कतीजैला।
पाणी धारा नाव डुबोदै, पण नोका रौ जीवण पाणी,
उड उड जावै घणा पतंगा, प्रीत जोत में बळवा ताणी,
मरण सांच नै सो जग जाणै पण जीवण हित जुध लड़ै
प्रीत पांगळी लूली-गूंगी, पण इण तूं है खींचाताणी
जितरा सबद भाव में भीजै, उतरा गीत लिखीजैला
जितरी जड़ां जमीं में होसी, उतरी साख बधीजैला।