गीत जांगड़ौ
इळ पर इखियात देस इक इटली,
जठै रतन नर जायौ।
गहरी कूंत अनूप गुणां रौ,
उजास निजरां आयौ॥
साहित अर भाषा रौ सूरज,
आथमणी दिस ऊगौ।
च्यार दिनां री करण चांदणी,
पूरब मांही पूगौ॥
रामायण पर शोध-ग्रंथ रच,
जग में साख जमाई।
धारातीरथ हन्दी धरती,
भरतखंड मन भाई॥
इटली सूं मुरधर में आयौ,
धोरां रौ बण धोरी।
कुण डिंगळ जग चावी करतौ,
तो बिन तैस्सीतोरी॥
चारण-साहित कियौ चांनणौ,
खूब प्रगट की ख्यातां।
मरुभाषा व्याकरण मांडियौ,
जाय नहीं जुग जातां॥
‘छंद जैतसी’ ‘रतन वचनिका’,
कायब डिंगळ कैणी।
‘क्रिसन रुकमणी वेलि’ प्रसिध की,
तीनूं रसां त्रिवेणी॥
शिलालेख चित्रांम सोधिया,
रागां मारू रीधौ।
ऊंठां चढ़ गांमां अळगां में,
कठण पयांणौ कीधौ॥
दुनियां एक कडूंबौ दीठौ,
सागर छौळां सोरी।
डिंगळ पांण हेत री डोरी,
तिरग्यौ तैस्सीतोरी॥
इटली मायड़भोम अंजसै,
पूत जिकण औ पायौ।
भारत-माँ खोळै में भरतां,
इधकौ अंजस आयौ॥9॥
पुसप जाय मुरझाय प्रिथी पर,
रहै वामना रूड़ी।
तैस्सीतोरी इण विध तोरी,
जग रहसी जस-जूड़ी॥
पूरा बरस बत्तीस न पाया,
लक्षण बतीसूं लीना।
चोखा क्रीत झरोखा चित्रण,
काज अनोखा कीना॥
उदय हुवौ तूं नगर उदीने,
विभनौ पुर वीकांणै।
पूरब पिच्छम नेह तणौ पुळ,
बांध्यौ जगत बखांणै॥
आसी मास दिसम्बर औरूं,
सन आसी सितियासी।
वसुन्धरा इटली रौ वासी,
ऊ नह पाछौ आसी॥