हेली, मत चुण अे घरकूंडा।
होसी इक दिन तो ये ढूंढा॥
नीमां खोदै लोभ मोह री, भरदे स्वारथ भाटा।
मद री डोळ्यां चुणले ऊंची, जुड़ दे ग्यान कपाटा।
काम कबाड़ा सूं घर भरदे, ले माया खर्राटा।
आणंद लिछमी नैं बैठा दे, बणा ओयरा ऊंडा॥
बणा आसरो चार दिनां रो, मत अतरो इतरावे।
भीतड़ला रीतड़ला होवे, जद हंसा उड़ जावे।
कांई बेरो कुण रहवैलो, कुण मैणत नैं खावे।
ढस्या कांगरा गढ़ किल्लां रा, लागै कितरा भूंडा॥
पत री पोळ चैक चेतण रो, मन मेड़ी तन माळ्यो।
पलक कपाटां खोल सेज पर, सुरतां ढोल्यो ढाळ्यो।
चमकी बीजळ ग्यान झरोखै, दीख्यो आणंद आळ्यो।
डोढ्यां बाजै अणहद बाजा, महलां मुळकै मूंडा॥