ऊंडो ऊंडो फिरै झेरणो, झागां भरी बिलोवणी
झांझर कै उठ झाल नैतणो, करै बिलोणो मोवणी
कोई आंगण ऊभी सोवणी
चुड़लो खणकै नेवर्यां ठणकै, छाछ झबळका खायजी
मिनड़ी ताकै टाबर झांकै, बाटकड़्यां खिसकाय जी
माखण लूंदालूंद नीतर्यौ, पण बहुवड़ डरपाय जी
बा कींया घालै टाबरियां नै, बैठी चूल्है जाय जी
नाख बाटक्यां टाबर रूस्या, बांरी सूरत हुयगी रोवणी
हियो पसीज्यो उठी’क सासू, सामी ढूकी जोवणी
बा तो पाछी मुड़गी मोवणी
आ आंगण कळपै सोवणी
आ झागां...
गाळयां काढण लागी बूढळ, पाड़ोसण सीखाई जी
किटक्यां भरती आंगण फिरती, जाणै काळका माई जी
माखण लै ओरै में बड़गी, आडी खाट ढळाई जी
हाथ सुमरणी जीभ कतरणी, बेट्यां री भड़काई जी
टाबरियां नी माखण चाख्यो, हुयी कळह री बोवणी
कळझळ करै काळजो कांपै, आ कामण धांधण धोवणी
ईरी आँसू भीजी ओढणी
आ तो आंगण डरपै मोवणी
आ झागां...
हार्या थाक्या मिनख खेत सूं, जद सिंझ्या घर आया जी
देखी बूढळ बड़-बड़ बोलै, थर-थर धूजै काया जी
सुसरै पूछ जेठजी पूछ्यो, पण समझी नी माया जी
‘दादी माखण कोन्या घाल्यो! टाबरिया बिलखाया जी
खाट परीकर दादै माखण, दीधौ हरखी मोवणी
मन्नै राम उठावै कोनी, बूढळ भड़की चौगुणी
ओ जी बहुवड़ हरखी सौगुणी
आ आंगण मुळकै सोवणी
आ झागां...
ईं बैरी माखण रै खातर, बात बधी अणहोवणी....