लहरावण नै खेत गोरी रो हिय हुळसावण नै

टाबरियां री टोळ, मुळकतो तेजो गावण नै

गाज-गूंजतो, पळका करतो लूम-झूमतो छाव

मेघा आव रे! म्हारोड़ै गांव रे!

तिसिया जीव-जीनावर बिलखै, पड़ै तिंवाळो खाय रे

सिसकत सांस गळै में अटकै, अड़क मौत मरजाय रे

मरतोड़ां रा प्राण बचावण डैर-डूंगरां छाव

मेघा आव रे! म्हारोड़ै गांव रे!

तिसां मरता रूंख सूखग्या, पंछीड़ा कुरलाय रे

ताप बिखै में पड़ी बिजोगण चंद्रबदन कुम्हलाय रे

बिलखतड़ां रो ताप मिटावण, गांव-गोखड़ां छाव

मेघा आव रे! म्हारोड़ै गांव रे!

हाळी हळिया हाथ संभाळै, सुरंगा सुगन मनाय रे

नर-नारी-नारा नखराळा, कर मनवार बुलाय रे

मीठी टेर सुणावण तेजो, खेत-खेड़ां पर छाव

मेघा आव रे! म्हारोड़ै गांव रे!

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला भीम पांडिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : भवानीशंकर व्यास 'विनोद' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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