बाई चाली सासरिया में
मनड़ो धड़ धड़ धड़का खावै
अरमान सजाया मनड़ा में
बा ठुमक ठुमक चाली जावे।
बाबाजी पाळ बड़ी करदी
माऊजी लाड लडाया हा
भाई बेणां की साथ-साथ
म्हें डूल्यी पूंत्या खेल्या हा।
साथण री साथ चान्दणी में
म्हे आंख मिचौणी खेली ही
घूमर खाती दौड्यां जाती
बा बणगी बात पहेली ही।
बाबाजी को मनड़ो भरसी
मायड़ री छाती फाटैली
बीरा कै आसूं ढलकैला
और बेणां फूट-फूट रोसी।
सब साथ सहेल्या आवैली
और गीत बिदाई गावैली
म्हारा मन में अरमान लियां
मैं सासरिया में ज्यांऊंली
बाबुल री पोल छूटसी जद
आख्यां डब-डब भर आवैली
साथण रो साथ छूटसी जद
छाती धड़का खा ज्यावैली।
पण रीत सदा की ही आई
रहणो है सासरिया मांही
अब मन काठो करणूं पड़सी
और हेत छोडणों ही पड़सी।
सासू ने राजी राखांला
सुसरा रो कहणो मानाला
देवर नणदां सूं भाई बेण सो
नातो गाढ़ो जोड़ालां।
हाथां में चूड़ो दांती को
चूंदड़ में गरजोड़ो बन्ध्यो
पगल्या में मेंहदी राच रही
बीछूड्यां छम छम बाजै ही।
नैणां री पुतली नीचे ही
थोडी बिच बिच उठ जावे ही
बीठी का एक नगीनां में
बनड़ा नै निरख्या जावै ही।
मनड़ो हरख्यो बनड़ो देख्यो
ऐ घणा फूटरा लागै है
लम्बा चौड़ा गौरा सुन्दर
ऐ बीन्द सोवणां लागै है
सारी उमर की सोच रही
अब ऐ के साथै रहणों है
सब घरका न राजी राखां
मां को भी ओ ही केवणों है।
आ बात ढाणली मनड़ा में
बाई चाली सासरिया में
लाज्यां मरती धीरे चाल्यी
पुल़कित मनड़ो हरकावै हो।
सासूजी दौड़या ही आया
खोल्यां में ले बे मुस्काया
तनै कठ बिठाऊँ सहजादी
थारा पगल्या मैला हो ज्यास।
पण टूट गयो मनड़ो जद तो
सासूजी बगसो खोल रहया
बे गचुन्द गचुन्द गाबा फेक्या
और मूंडा नाक मरोड़ रहया।
कांई दियौ बाप थारो तनै
तूं खोल बता दे हे म्हानै
गाबा तो सारा सड़या बूस
गेणां रो मोल बता म्हानै।
बगसा रो तालो खोल रही
आंगलियां कंप कंप कांपै ही
नैणां सूं मोती बरस रह्या
धड़ धड़ धड़ छाती धड़कै ही।
सासूजी तो रीसायोड़ा
बोल्या तूं चली बाप के जा
बेटा न ओरूं परणास्या
और बडो डायजो म्हे लास्या।
मोटर गाड़ी घोड़ा गाड़ी
और साथ लाडी ल्यांवाला
गैणों दूणों कपड़ो दूणो
गाजा बाज्या से आवांला।
नगदी तो पेली ले लेस्या
छोरां नै पाठ पढ़ावांला
बाकी की लिस्ट बणा देस्या
और ब्याव होवता ही लेस्या।
बाई को मुख पीलो पड़ग्यो
और ढल ढल आंसू ढळकै हा
रोता छोड़या माँ बापा ने
भाई बैणा और साथण ने।
आ रीत किस्या घर की आई
अबला की आस कुचल खाई
जल्मी बेटी भाटो बोल्या
परणी तो हो गई परायी।
बा घर की है न घाट की है
दर दर की ठोकर यूं खाई
माँ बाप नचीता हो बैठया
बाई है सासरिया मांही।
मनड़ो चावै म्है मर जाऊं
पण कलंक बाप के लाग ज्यासी
इसड़ी बाता मायड़ सुणसी तो
जीते जी बा मर ज्यासी।
दुखड़ो चावै कितरो ही हो
रहणो तो है सासरिया में ही
दुख की घूटां पीता ज्यास्या
और ऊपर सूं हंसता ज्यास्या।
मनड़ा में गांठ बांध ली बा
पण देख सामने चिरलाई
परण्यां रो हाथ पकड़ बोली
फेरा में परण करयो कांई।
सुसराजी घासलेट नाख्यो
सासूजी पेटी सिलगाई
लपटां संग बाज्यो रेड़ियो
बाई की चीख न सुण पाई।