ओढ्यां जा चीर गरीबां रा

धनिका रौ हियौ रिझाती जा

चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै, अै लिछमी दीप बुझाती जा।

हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं, तिल-तिल करसौ छीज्यौ हो

ऊनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ

कुण जाणै कितरा दुख झेल्या, मर-खपनै कीनी रखवाळी

कांटा-भुट्टा में दिन काढ्या, फूला ज्यूं लिछमो नै पाळी

पण बणठण चढगी गढ-कोटा, नखराळी छिण में छोड साथ

जद पूछ्यो कारण जावण रौ, हस मारी वैरण अेक लात

अधमरिया प्राण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा

चूंदड़ी रौ अेक झपटौ दै, अै लिछमी दीप बुझाती जा!

जे घड़ी विधाता रूपाळी, सिणगार दियौ है मजदूरां

रखडी बाजूबंद तीमणियो, गळहार दियौ है मजदूरां

लोई में बोटी बांट-बांट, जिण मेंहदी हाथ लगाई ही

फूलां ज्यूं कंवळा टाबरिया, चरणां में भेट चढाई ही

घर री बू-बेट्यां बिलखी, पण लिछमी थनै सजाई ही

इक थारी जोत जगावण नै, घर-घर री जोत बुझाई ही

पण अैन दिवाळी रै दिन वैरण, साम्ही छाती पग धरती

ठुमकै सूं चढी हवेली में, मन मरजी रा मटका करती,

जे लाज बेचणी तेवड़ली, तो पूरो मोल चुकाती जा

चूंदडी रो अेक झपेटौ दै, अै लिछमी दीप बुझाती जा!

इतरा दिन ठगती रैई है, थूं भोळी बण छळ जाती ही

खाती ही रोटी माटी री, पण गीत वींरै रा गाती ही

जे हमें जांण रौ नांम लियौ, तौ जीभ डांम दी जावैला

जे निजर उठी मैलां कानीं, तौ आंख फोड़ दी जावैला

जे हाथ उठायौ हाकै नै, नागोरी गहणौ जड़ दांला

जे पग धर दीनां सेठां घर, तौ पगां पांगळी कर दांला

महलां गढ़ कोटां बंगळां रा, वे सपना हमें भुलाती जा

चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै, अै लिछमी दीप बुझाती जा!

स्रोत
  • पोथी : चेत मांनखा ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण
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