गांवड़लै री बात, बावळा चमक चांदणी रात,

कोई गीतड़लो गावै रे, कोई मन भरमावै रे।

कुईक-कुईक कोई कोयर तेवै, खीली काढै रे,

भरिया खेळी कोठां माथै छांगां लाडै रे।

पावै ऊंट बकरड़ी गाय, गोइंदो गाडीणा ले जाय,

लुगायां लाखो गावै रे, कोई मन भरमावै रे।

सावणियै रा लोर गरजता पाणी लावै रे,

कोयरियै नै बिसर मानखो खेतां जावै रे।

जद घूमर घालै मोर, थामलै बळधां री कुण डोर,

धरा सोनो निपजावै रे, कोई मन भरमावै रे।

ऊंची ताण मचाण गोफणी बावै हाळी रे,

बाड़ां सिगळी छाप करै खेती रखवाळी रे।

पिवजी छाछ-राबड़ी खाय, गोरड़ी मन ही मन मुळकाय,

घूंघटै में सरमावै रे, कोई मन भरमावै रे।

गेहूं-मूंग-तिल-बाजरी रा पकग्या सिट्टा रे,

खावण लाग्या काचर- बोर-मतीरा मीठा रे।

फळी जद मक्की, मोठड़ी, ज्वार, गोरड़ी कर सोळे सिणगार,

खेत भातो ले जावै रे, कोई मन भरमावै रे।

धान भरी छाट्यां नै देख, टाबरिया नाचै रे,

अमल गळतां देख गोरड्यां मैंदी राचै रे,

चांद तारां री ऊपर बेल, धरा आभै सूं कर रही खेल,

बायरो जी बिलमावै रे-कोई मन भरमावै रे।

गांवडलै री बात, बावळा चमक चांदणी रात,

कोई गीतड़लो गावै रे, कोई मन भरमावै रे।

स्रोत
  • पोथी : पणिहारी ,
  • सिरजक : बुलाकी दास बावरा
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