जगती सूं अब नहीं डरूं मैं

जग बंधण नै जितरो जोयो

आपोआप आप नै खोयो

मेरी राह पाधरी मिळतां क्यूं ना आगै पांव धरूं मैं

जगती सूं अब नहीं डरूं मैं

अकड़ै जग अर आंख दिखावै

बो तो खारो आक लखावै

मनै भरोसो म्हारै भुजबळ मन री अपणै आप करूं मैं

जगती सूं अब नहीं डरूं मैं

जगत मानतो घणो मनातो

दूणी दर सूं मूळ चुकातो

मनै चालणो म्हारै मारग उण पर ही निरभय विचरूं मैं

जगती सूं अब नहीं डरूं मैं।

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर