आप मिलबा न आया
घरां दो घड़ी
हूक हिवड़ै उठी
नैण बिरखा-झड़ी
आप मिलबा न आया।
सांझ री मांग में
रोज हिंगळू घुळै
आज मनस्या न मन री
भुलायां भुलै
च्यांनणी चांद रै संग
चौसर रमै
रात रोवै दुहागण
सितारां जड़ी
आप मिलबा न आया।
भोर रै आंगणै
रंग-रोळी उड़ै
भायलां रै घरां
मौज मेळा जुड़ै
विरहणी म्हैं झुरूं
रात दिन अेकली
वाट जोऊं हठीला
झरोखां खड़ी
आप मिलबा न आया।
बाग मैं फूल
चंपा-चमेली खिलै
राग में जद कळी स्यूं
भंवर आ मिले
बेल बळ खाय लिपटै
बिरछ रै गळै
पून पुरवा भटकती
फिरै बापड़ी
आप मिलबा न आया।
अब तौ आऔ गुमांनी
भंवर थै घरां
साज सोळा सजां
दूब देळी-धरां
काग मेड़ी उड़ाऊं
चढू डागळै
प्रेम गळियां भंवरजी
घणी सांकड़ी
आप मिलबा न आया।