धन म्हारी पोशाळ, इण री कितरी देण महान।
उरिण कदे नी हो पावा, चाहे लाखों करां बखांण॥
सत्यं शिवं सुन्दरम् राचे, अमर उजागर गाथा।
चेलां र सिर मोड़ बांधती, उसंग भरै तन राता।
शिक्षा री सोरम नै बांट, मायड़ली भर बाथां।
विद्या मंदिर तीरथ न्हावै, ऊंचा जण-मण साथां।
छत्तर छाया सुरसत न जाणे, कुण दुश्मण कुण स्थाण॥
ज्ञान मान रो मोड़ बांध नै, निजर दूर तक राखे।
भुजा पसार्यां दोन्यू बाजू, हेत बांधती सागे।
फूल कंवर नै गोदी लेवण, मायड़ हिवड़ो ताके।
टोळ अठै आ बणै मूरतां, दूध ज्ञान रो चाखे।
आसिरवाद फळे फूलां पर, पग-पग हुवे पिछाण॥(धन)
यो मंदिर है यो तीरथ है, सुरसत करै बसेरो।
या मायड़ या जरणी जाणो, संस्कृति रो यो डेरो।
बाड़ी वाळी मालण जीके, फूलां वाळो घेरो।
कितरा पूत रुंखड़ा सींचे, ज्ञान गरत रो बेरो।
फूले फळै दिन-रात चोगुणी, हिवड़े भर्यां उफाण॥
हेत भर्यो समता रो सागर, झांकी मनड़ो हरती।
फूल कंवर नै गोद बिठायां, आंचल ममता भरती।
इण धूळी अठखेल्यां कीनी, यादां घणी उभरती।
हेत उमड़तो चित्तर मंडता, आख्यां लारै भरती।
अमर उजाळो ग्यान जोत रो, उजळो इजरो मान।
जलम भोम विद्या मंदिर री, यादां भूली न जावे।
पाथर हिवड़े मोम पीघळे, देख्यां मन उगमावे।
बाळ पणा रो बाल गोठ रा, चित्तर उमड़या आवे।
ईने म्हारो तीरथ कहतां, तन-मन सब पुळकावे।
सदा समरपण थारे चरणां, शत-शत थने प्रणाम॥