जनम जो लेवे मोल चुकावे।
जलम भोम रे मोड़ बंधावे।
रुखी खा चाहे चाबो धाणी, ओसर सांरु दो कुरबाणी।
एड़ो कारज करो सपूतां, गरब करै मायड़ हिंदवाणी॥
किणरा जाया किण धरती रा, खुदरी माटी मोल पिछाणो।
ऊमर लेखे उजळो पाणी, अमर लिखी गाथा नै जाणो।
मायड़ पायो दूध पूत ने, चढ्या कसोटी नांही लजाणो।
आण-बाण मरजादा सांरु, दमक उठै करतब रो बाणो।
महक उठै हिंदवाणी आंगण, घर-घर गूंजे अमर कहाणी।
सांचा पूत जणयां मायड़ली, दुनियां बोले मूंडे वाणी।
गरब करै मायड़ हिंदवाणी॥
ढळै राम रो रुप कृष्ण सो, करम योग री गीता बांचे।
अभिमन्यु सतमन्यु बणकर, खरी आंच पर कुंदण राचे।
हरिचन्द सो होवे सतवादी, धूजी बण गौरव नै सांचे।
मनख जूण में मनखपणां रो, मनखपणो हिवड़ा म जांचे।
जान हथेळी लियां ऊतरे, खरी कसोटी सदा पिछाणी।
मिट जावे पर पाछो न न्हाळे, ये सासां तो आणी-जाणी।
गरब करै मायड़ हिन्दवाणी॥
वीर शिवा राणा बण जोधा, रण खेतां म अलख जगावे।
भगत सिंह आजाद बण्योड़ा, कुरबाणी री नींव लगावे।
मनसूबा म फूल महकता, सोरम फूटे महक लुटावे।
जलम भौम रो गौरव भरतां, धरम-करम री साख जुड़ावे।
कोख उजागर हुवै मायड़ी, मुळक पड़े सारी जिन्दगाणी।
तारा तोड़ सरग रा ला दे, हीमत चढियो ढळै न पाणी।
गरब करै मायड़हिन्द वाणी॥