माळीड़ा, मत चूंट फूल तो

आपै ही कुमळासी

घड़ी स्यात अै और मुळकल्यै

फेर कदे ना आसी

लेज्या पूजा थाळ आज तो

खाली ही निरमोही

सुण ले साची बात बताई

आगै तनैं कोई

झरै जठै ही प्रभू रा पग है

तपै बठै ही कासी

नास कर्‌यां स्यूं हुवै बावळा

कद राजी अविनासी

माळीड़ा, मत चूंट फूल तो

आपै ही कुमळासी

घड़ी स्यात अै और मुळकल्यै

फेर कदे ना आसी

मर्‌यां निरदई सगळा पाछा

कांटा बण-बण आवै

झर सकै बै साथ फूल रै

कर्‌या पाप भुगतावै

फेर कर्‌यां पिसतावो गूंगा

कद छूटै चौरासी

चेत मानखा जोत जगा ले

रातड़ली घुळ जासी

माळीड़ा, मत चूंट फूल तो

आपै ही कुमळासी

घड़ी स्यात अै और मुळकल्यै

फेर कदे ना आसी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल सेठिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर ,
  • संस्करण : तीसरा
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